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Team Bhakt Vatsal

पितृ पक्ष में किसको है श्राद्ध करने का अधिकार?

पितृ पक्ष का समय हिंदू धर्म में बहुत महत्वपूर्ण माना जाता है। ऐसा कहा जाता है कि हर साल इस अवधि के दौरान हमारे पूर्वज भोजन और पानी स्वीकार करने के लिए पृथ्वी पर आते हैं।

यह समय बहुत खास होता है जब परिवार के दिवंगत लोगों को याद किया जाता है। श्राद्ध पक्ष 16 दिन मनाया जाता है। इस समय लोग पिंड दान और पितृ तर्पण जैसे अनुष्ठान करते हैं।

पितृ पक्ष को लेकर कई सारे नियम हैं, जिनका पालन करना आवश्यक होता है। दरअसल कई बार लोगों के मन में यह सवाल रहता है कि अगर कोई पुत्र नहीं है तो श्राद्ध कौन कर सकता है।

शास्त्रों के अनुसार, पिता का श्राद्ध पुत्र को ही करना चाहिए। अगर पुत्र न हो तो पत्नी श्राद्ध कर सकती है। अगर पत्नी नहीं है, तो सगा भाई  और उसके आभाव में संपिंडो को श्राद्ध करना चाहिए।

अगर एक से अधिक पुत्र हैं तो सबसे बड़ा पुत्र श्राद्ध कर सकता है। पुत्री का पति और पुत्री का पुत्र भी श्राद्ध के अधिकारी हैं। पुत्र के न होने पर पौत्र या प्रपौत्र श्राद्ध कर सकते हैं।

पत्नी का श्राद्ध पुत्र करता है। अगर पुत्र नहीं है तो पौत्र, पुत्री या फिर पुत्री का पुत्र कर सकता है। इसके अलावा भतीजा भी श्राद्ध कर सकता है। वहीं गोद लिया पुत्र भी श्राद्ध का अधिकारी है।

पितृ पक्ष में किया गया पितृ तर्पण पितरों को एक साल तक संतुष्ट करता है। वायु, गरुण और अन्य पुराणों में भी बताया गया है कि पितृ इससे संतुष्ट होते है।

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