कब है पितृ पक्ष का प्रदोष व्रत है, इस नियम से करें भगवान शिव की पूजा

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Team Bhakt Vatsal

पितृ पक्ष की शुरुआत हो चुकी है। जिसका समापन 2 अक्टूबर को होगा। इस अवधि में प्रदोष व्रत भी रखा जाएगा। प्रदोष व्रत में भगवान भोलेनाथ की पूजा-आराधना की जाती है।

मान्यता है कि ऐसा करने से महादेव अपने भक्तों की सभी मुराद पूरी करते हैं और धन, सुख-समृद्धि का आशीर्वाद देते हैं। हिंदू धर्म में रवि प्रदोष व्रत का खास महत्व हैं।

वैदिक पंचांग के अनुसार, आश्विन माह के कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी तिथि 29 सितंबर से शाम 4 बजकर 47 मिनट से शुरू होगी और 30 सितंबर को शाम 7 बजकर 6 मिनट पर समाप्त होगी।

रवि प्रदोष व्रत के लिए सुबह सूर्योदय से पहले उठकर स्नान करें और साफ कपड़े धारण करें। फिर मंदिर को साफ कर लें। इसके बाद भगवान भोले का ध्यान कर व्रत का संकल्प लें।

फिर छोटी चौकी पर लाल या पीला कपड़ा बिछाकर शिव परिवार की प्रतिमा स्थापित करें। अब शिव जी की विधिवत पूजा करें। इसके बाद संभव हो तो सायंकाल की पूजा के लिए दोबारा स्नान करें।

शिवजी पर जल, बेलपत्र, फूल, धतूरा, समेत सभी पूजा सामग्री अर्पित करें। पुरुष शिवलिंग पर जनेऊ चढ़ाएं। महिलाएं श्रृंगार की सामग्री अर्पित करें। फिर सफेद चंदन से महादेव के माथे पर त्रिपुंड बनाएं।

फिर घी का दीपक जलाएं और भगवान शिव को खीर का भोग लगाएं। पूजा के दौरान प्रदोष व्रत की कथा पड़ें। शिव जी के बीज मंत्र 'ऊँ नमः शिवाय' का रुद्राक्ष की माला से जाप करें।

फिर आरती करके पूजा का समापन करें और पूजा में हुई गलतियों के लिए भगवान से क्षमा मांगे। संभव हो तो इस दिन मंदिर जरुर जाएं और भोलेनाथ के दर्शन करें।

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