पूजा-पाठ में क्यों बजाते हैं शंख, जानें पौराणिक कथा
WRITTEN BY
Team Bhakt Vatsal
25th Nov 2024
धार्मिक कार्यक्रम और आयोजनों के दौरान हिंदू धर्म में शंख बजाना एक परंपरा है जो युगों से चली आ रही है।
शंख हमारे लिए सिर्फ एक वाद्ययंत्र के साथ ही धार्मिक संस्कृति और प्रथाओं का हिस्सा है। ये आध्यात्मिक चेतना का प्रतीक है।
शंख को पंच महाभूतों में से एक आकाश तत्व का प्रतिनिधि माना जाता है। शंख में चंद्रमा और सूर्य देवता का निवास है।
शंख की उत्पत्ति से जुड़ी कथा के अनुसार, राक्षस शंखासुर ने जब वेदों को गहरे समुद्र में छिपा दिया तब शिवजी ने उसका वध किया था।
राक्षस को शंकु के आकार के कान की हड्डी को आकाश में उड़ा दिया, जिससे शंख की उत्पत्ति हुई और ओम की ध्वनि निकली।
शंख की ध्वनि कर्तव्य, धार्मिकता और बुराई पर अच्छाई की जीत का प्रतीक है। शंख पवित्रता सकारात्मकता का संचार करता है।
शंख से निकलने वाली ध्वनि पर्यावरण को शुद्ध करती है और नकारात्मक ऊर्जा को दूर करती है। इससे वातावरण शुद्ध होता है।
शंख की ध्वनि ईश्वर को पुकारने के माध्यम के रूप में उल्लेखित है। ये देवी-देवताओं को आमंत्रण का प्रतीक भी है।
शंख ध्वनि पूजा की शुरुआत का संकेत, भगवान का आह्वान और भक्त को ईश्वर से जोड़ने का माध्यम है।
शंख बजाने से भगवान विष्णु और माता लक्ष्मी का आशीर्वाद मिलता है और रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ती है।
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