नवीनतम लेख

चैत्र अमावस्या को क्यों कहते हैं भूतड़ी अमावस्या

Bhutadi Amavasya: चैत्र अमावस्या को भूतड़ी अमावस्या के नाम से भी जाना जाता है, जानिए इसकी वजह


चैत्र मास की अमावस्या को भूतड़ी अमावस्या भी कहा जाता है। ऐसी मान्यता है कि यह दिन नकारात्मक ऊर्जा, आत्माओं और मृत पूर्वजों से जुड़ा हुआ है। भूतड़ी अमावस्या भारत के विभिन्न राज्यों में मनाई जाती है और इस दिन की हर जगह अपनी विशेष मान्यताएँ हैं।


जानिए चैत्र अमावस्या को भूतड़ी अमावस्या क्यों कहते हैं


धार्मिक ग्रंथों के अनुसार, चैत्र अमावस्या की रात को वातावरण में नकारात्मक ऊर्जाएं अधिक हो जाती हैं और आत्माएं शक्तिशाली होने लगती हैं। इस रात आत्माएं अपनी अधूरी इच्छाओं को पूरा करने का प्रयास करती हैं, जिसके कारण इसे भूतड़ी अमावस्या का नाम दिया गया है।


भूतड़ी अमावस्या की प्राचीन कहानी


गरुड़ पुराण और अग्नि पुराण में भूतड़ी अमावस्या की चर्चा की गई है। प्राचीन काल में एक राजा ने मूर्खता से अपने पूर्वजों के श्राद्ध कर्म को नजरअंदाज कर दिया था। इसके कारण उसके राज्य में कई प्रकार की समस्याएँ खड़ी हो गईं और नकारात्मक शक्तियों का प्रकोप बढ़ने लगा। आखिरकार, महर्षि नारद की सलाह पर राजा ने चैत्र अमावस्या के दिन पिंडदान और श्राद्ध करके अपने पितरों को शांत कर उनका आशीर्वाद प्राप्त किया। तभी से यह दिन पितृ तर्पण और नकारात्मक शक्तियों से सुरक्षा के लिए विशेष महत्व रखता है।


भूतड़ी अमावस्या का प्रभाव


ऐसा माना जाता है कि इस दिन लोग इन नकारात्मक ऊर्जाओं से प्रभावित होते हैं और अस्वस्थ महसूस करते हैं। यह मनुष्य के दिमाग को भी बुरी तरह प्रभावित करता है, जिसके परिणामस्वरूप बेचैनी, चिंता और असहजता महसूस होती है। इस दिन, आत्माएँ उग्र और क्रोधी मानी जाती हैं, इसलिए इस समय शांत और संयमित रहना अच्छा माना जाता है।


भूतड़ी अमावस्या का इतिहास


यह त्योहार मुख्य रूप से दक्षिण भारत और राजस्थान, गुजरात और महाराष्ट्र जैसे राज्यों में मनाया जाता है। इस दिन लोग अपने घर की सफाई करते हैं और नकारात्मक ऊर्जा से खुद को बचाने के लिए हवन और पूजा-पाठ करते हैं। गरुड़ पुराण के अनुसार, भूतड़ी अमावस्या के दिन गंगा या किसी अन्य पवित्र नदी में स्नान करना चाहिए और पूर्वजों के तर्पण और नाम पर दान करना चाहिए। इससे पितृ दोष समाप्त होता है और जीवन में सुख-शांति बनी रहती है।


लाली लाली लाल चुनरियाँ (Laali Laali Laal Chunariya)

लाली लाली लाल चुनरियाँ,
कैसे ना माँ को भाए ॥

घर पर कैसे करें पितरों की पूजा

आश्विन मास के कृष्ण पक्ष में मनाए जाने वाले श्राद्ध को पितृ पक्ष कहते हैं। इस दौरान पूर्वजों का श्राद्ध उनकी तिथि के अनुसार श्रद्धा भाव से विधि-विधानपूर्वक किया जाता है।

दुर्गा चालीसा पाठ

धार्मिक मान्यता है कि मासिक दुर्गाष्टमी के दिन सच्चे मन से मां दुर्गा की पूजा-अर्चना और व्रत करने से जातक की हर मनोकामना पूरी होती है। इस दिन दुर्गा चालीसा का पाठ जरूर करना चाहिए।

सवारिये ने भूलूं न एक घडी(Sanwariye Ne Bhule Naa Ek Ghadi)

पूरन ब्रह्म पूरन ज्ञान
है घाट माई, सो आयो रहा आनन्द