Maa Brahmacharini Katha: चैत्र नवरात्रि के दूसरे दिन जानें मां ब्रह्मचारिणी की कथा, इससे आपको धैर्य की शिक्षा मिलेगी
चैत्र नवरात्रि के दूसरे दिन देवी ब्रह्मचारिणी की पूजा की जाती है। मां दुर्गा के दूसरे रूप की पूजा करने से भक्तों को धैर्य, शांति और समृद्धि मिलती है। साथ ही, अपने कार्यों के प्रति समर्पण का आशीर्वाद भी प्राप्त होता है। मां दुर्गा के इस स्वरूप का नाम ब्रह्मचारिणी इसलिए पड़ा क्योंकि उन्होंने भगवान शिव की पत्नी होने का आशीर्वाद प्राप्त करने के लिए लंबे समय तक ब्रह्मचर्य जीवन व्यतीत किया था।
मां ब्रह्मचारिणी जन्म कथा
धार्मिक ग्रंथों के अनुसार, मां ब्रह्मचारिणी का जन्म पर्वतराज हिमालय और मैना देवी के घर उनकी पुत्री के रूप में हुआ, जिन्हें मां पार्वती के नाम से जाना जाता है। जब उनका जन्म हुआ तो देवी-देवताओं ने उन्हें पुष्प अर्पित किए और कुछ समय बाद उन्हें यह एहसास हुआ कि यह सती का पुनर्जन्म है, जो भगवान शिव से पुनर्विवाह करने के लिए हुआ है। यह एहसास होने के बाद उन्होंने भगवान शिव से विवाह करने का दृढ़ संकल्प लिया।
एक दिन नारद मुनि मां पार्वती के दृढ़ संकल्प को देखते हुए उनके पिता पर्वतराज हिमालय के पास जा पहुंचे फिर नारद जी ने उन्हें बताया कि उनकी बेटी का भाग्य भगवान शिव से जुड़ा हुआ है। साथ ही, उन्होंने देवी पार्वती को घोर तपस्या करने का सुझाव दिया, जिससे भगवान शिव को प्रसन्न किया जा सकता था।
जानिए क्यों पड़ा ब्रह्मचारिणी नाम
देवी पार्वती ने नारद मुनि की बात मान कर कठोर तपस्या शुरू की, जिसमें शुरुआत के हजारों साल तक उन्होंने केवल फल-फूल का सेवन करके तपस्या किया। इसके बाद उन्होंने सौ वर्षों तक केवल साग खाया और मिट्टी में रहकर भगवान शिव की आराधना की फिर तीन हजार वर्षों तक केवल बेलपत्र का सेवन कर भगवान शंकर की उपासना की। कुछ समय बाद उन्हें बेलपत्र का भी त्याग कर निर्जल और निराहार उपासना करना शुरू किया।
अंत में देवी पार्वती को इस तपस्या से भगवान शिव की प्रसन्नता प्राप्त हुई, और देवी पार्वती के इस रूप का नाम ब्रह्मचारिणी रखा गया। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, मां ब्रह्मचारिणी की पूजा करने से जीवन में स्थिरता आती है। साथ ही, मन के अनुकूल वर की भी प्राप्ति होती है।