नवीनतम लेख
हिंदू धर्म में भगवान परशुराम महान योद्धा और ऋषियों में से एक माने जाते हैं। वे भगवान विष्णु के छठे अवतार हैं, जिन्हें धर्म की रक्षा और अधर्म के विनाश के लिए जाना जाता है। परशुराम जयंती हर वर्ष वैशाख शुक्ल तृतीया को मनाई जाती है। इस दिन उनके बल, साहस और धर्म की रक्षा के लिए किए गए कार्यों को याद किया जाता है।
भगवान परशुराम द्वारा क्षत्रिय राजा सहस्रबाहु अर्जुन का वध एक अत्यंत महत्वपूर्ण कथा है, जो धर्म और अधर्म के बीच संघर्ष को दर्शाता है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, भगवान परशुराम के पिता ऋषि जमदग्नि एक तपस्वी और धार्मिक ब्राह्मण थे। उन्होंने घोर तपस्या करके इन्द्रदेव से कामधेनु नामक दिव्य गाय प्राप्त की थी। यह गाय चमत्कारी थी और किसी भी वस्तु या भोजन को उत्पन्न करने की शक्ति रखती थी। जब सहस्रबाहु अर्जुन को इस गाय के बारे में पता चला, तो वह जमदग्नि के आश्रम आया और अपने बल का प्रयोग करके कामधेनु को अपने राज्य ले गया।
धार्मिक कथाओं के अनुसार, जब भगवान परशुराम वन से लौटे और उन्हें यह बात पता चली कि राजा सहस्रबाहु ने उनके पिता से कामधेनु गाय छीन ली है, तो वे अत्यंत क्रोधित हो उठे। क्योंकि यह केवल एक गाय की चोरी नहीं थी, बल्कि एक तपस्वी ब्राह्मण का घोर अपमान भी था। फिर भगवान परशुराम ने पिता की प्रतिष्ठा की रक्षा और धर्म की स्थापना के लिए राजा सहस्रबाहु को दंड देने का संकल्प लिया और अकेले ही राजा सहस्रबाहु की विशाल सेना का सामना कर, युद्ध में उसे हरा कर उसका वध कर दिया।
महाभारत, हरिवंश पुराण और भागवत पुराण के अनुसार, सहस्त्रबाहु की मृत्यु के बाद उसके पुत्रों ने प्रतिशोध में ऋषि जमदग्नि की हत्या कर दी। उनकी माता रेणुका, पति की हत्या से दुखी होकर सती हो गईं। अपने माता-पिता की इस दुर्दशा से उदास होकर भगवान परशुराम ने प्रतिज्ञा ली कि वे अधर्मी हैहय वंश के समस्त क्षत्रियों का विनाश करेंगे। इसके बाद भगवान परशुराम ने 21 बार पृथ्वी से हैहय वंश के अधर्मी क्षत्रियों का संहार किया।