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भगवान परशुराम भगवान विष्णु के छठे अवतार माने जाते हैं, जिनका जन्म ब्राह्मण कुल में हुआ था लेकिन उन्होंने क्षत्रिय धर्म अपनाया था। भगवान परशुराम के जन्म का उद्देश्य अधर्म और अत्याचार का अंत करना था। ऐसा कहा जाता है कि वे न केवल एक तेजस्वी योद्धा थे, बल्कि एक महान विद्वान, तपस्वी और न्यायप्रिय ऋषि भी थे।
रामायण की एक कथा है, जो भगवान परशुराम के चरित्र को और भी रोचक बनाता है। यह घटना सीता स्वयंवर की है। जब जनकपुर में सीता स्वयंवर के दौरान राजा जनक ने यह घोषणा की थी कि जो भी शिव के धनुष को उठाकर तोड़ देगा, वही सीता से विवाह करेगा। कई राजा और राजकुमार आए लेकिन कोई भी शिव धनुष को हिला भी नहीं सका। तभी अयोध्या के राजकुमार भगवान राम ने वह धनुष उठाया और जैसे ही उन्होंने धनुष की डोरी चढ़ाने का प्रयास किया, धनुष उनके ताकत से टूट गया। ऐसा कहा जाता है कि उस धनुष के टूटने की गूंज सारे ब्रह्मांड हुई।
भगवान परशुराम शिवजी के परम भक्त और धनुष के रक्षक माने जाते थे। इसलिए यह आवाज सुनकर भगवान परशुराम वहां प्रकट हुए और धनुष टूटने पर वे अत्यंत क्रोधित हो उठे। फिर सभा में आकर उन्होंने भगवान राम से पूछा कि उन्होंने यह साहस कैसे किया और क्रोध में भरकर उन्होंने भगवान राम को युद्ध के लिए ललकारा।
भगवान परशुराम के ललकारने पर भगवान राम ने अत्यंत विनम्रता से उत्तर दिया कि वे एक ब्राह्मण को युद्ध के लिए ललकार नहीं सकते, क्योंकि यह धर्म के विरुद्ध है। भगवान राम की इस बात ने परशुराम को चौंका दिया। तभी परशुराम ने भगवान राम से उनका परिचय पूछा और फिर भगवान राम ने अपने मीठे शब्दों से यह स्पष्ट कर दिया कि वे सामान्य मानव नहीं, बल्कि स्वयं श्री हरि विष्णु का अवतार हैं। इस बात को पहचानने में परशुराम को एक क्षण भी नहीं लगा। भगवान राम की दिव्यता को पहचानने के बाद भगवान परशुराम का क्रोध शांत हो गया और वे भावुक हो उठे।