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शीतला अष्टमी जिसे बसोड़ा भी कहा जाता है, हिंदू धर्म में अत्यंत महत्वपूर्ण पर्व है। यह पर्व विशेष रूप से उत्तर भारत में मनाया जाता है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, इस दिन माता शीतला की विधिपूर्वक आराधना करने से परिवार पर आने वाली बीमारियों का नाश होता है और घर में सुख-शांति बनी रहती है। माता शीतला को चेचक और संक्रामक रोगों की देवी माना जाता है, इसलिए इस दिन उनकी पूजा कर रोगों से बचाव की प्रार्थना की जाती है।
शीतला अष्टमी का सबसे बड़ा नियम यह है कि इस दिन घर में चूल्हा नहीं जलाया जाता और बासी भोजन ही माता को अर्पित किया जाता है। यह भोजन एक दिन पहले सप्तमी तिथि को तैयार किया जाता है। इस पर्व के साथ यह मान्यता जुड़ी हुई है कि माता शीतला ठंडी चीजों को पसंद करती हैं, इसलिए उन्हें ताजे भोजन की बजाय बासी भोजन का भोग लगाया जाता है। इस साल शीतला अष्टमी का व्रत 15 मार्च 2025 को मनाया जाएगा।
शीतला अष्टमी के दिन भक्तों को सुबह जल्दी उठकर स्नान करना चाहिए। स्नान के जल में गंगाजल मिलाना शुभ माना जाता है। इसके बाद स्वच्छ वस्त्र धारण कर मां शीतला की पूजा करनी चाहिए। घर के मंदिर में या किसी शीतला माता के मंदिर में जाकर विधिपूर्वक पूजा की जाती है।
पूजा सामग्री:
पूजा करने की विधि:
माता शीतला को शीतल और बासी भोजन अर्पित किया जाता है। इस दिन घर में चूल्हा जलाने की मनाही होती है। भोग के रूप में निम्नलिखित व्यंजन बनाए जाते हैं—
शीतला माता को स्वच्छता और स्वास्थ्य की देवी माना जाता है। माता के एक हाथ में ठंडे जल का कलश और दूसरे हाथ में झाड़ू होता है। उनकी सवारी गर्दभ (गधा) है। उन्हें चेचक और अन्य संक्रामक बीमारियों से बचाने वाली देवी माना जाता है।
इस दिन माता की पूजा करने से चेचक, खसरा, फोड़े-फुंसी और अन्य संक्रामक रोगों से रक्षा होती है।यह पर्व स्वच्छता और स्वास्थ्य के महत्व को दर्शाता है। घर में सकारात्मक ऊर्जा का संचार होता है और वातावरण शुद्ध होता है।शीतला माता की कृपा से परिवार में सुख-समृद्धि बनी रहती है।शीतला अष्टमी पर सही विधि से माता की पूजा करने और उनके प्रिय व्यंजनों का भोग लगाने से घर में सुख-शांति बनी रहती है और परिवार पर माता की कृपा बनी रहती है।