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छठ पूजा में हाथ का सूप

छठ पूजा में हाथ का सूप

छठ पूजा में डोम जाति के लोगों के हाथों से बने बांस के सूप का है विशेष महत्व, जानें क्यों


छठ पूजा भारतीय संस्कृति और परंपरा का एक अत्यंत महत्वपूर्ण पर्व है। इसे मुख्य रूप से बिहार, झारखंड, पूर्वी उत्तर प्रदेश में बड़े ही उत्साह, उमंग और श्रद्धा के साथ मनाया जाता है। इस पर्व का केंद्र सूर्य देव और छठी मैया की पूजा है जो श्रद्धालुओं के जीवन में समृद्धि, स्वास्थ्य और संतान सुख का आशीर्वाद प्रदान करती हैं। इस चार दिवसीय पर्व में बांस के सूप और टोकरी का विशेष महत्व है। आइए इस लेख में विस्तार से समझते हैं कि छठ पूजा में बांस के सूप का महत्व क्या है और इसके पीछे की क्या मान्यताएं हैं।


डोम जाति के लोग बनाते हैं छठ के सूप 

 

हमारे ही समाज ने जिस डोम जाति को अछूत बना दिया वही छठ के लिए सूप, दउरा, डलिया इत्यादि बनाते हैं और सारे व्रती उसे स्वीकार करते हैं। ऐसा करते हुए हम उन्हें सम्मान भी देते हैं और सामाजिक समरसता के प्रति अपनी आस्था भी दिखाते हैं। छठ महापर्व हेतु डोम जाति के लोगों द्वारा बांस से बनाए सूप को अत्यंत शुद्ध माना जाता है। वहीं, दूसरे लिहाज से देखें तो यह पर्व खुद में ईको फ्रेंडली सोच को भी समेटे हुए है। कुछ लोग पीतल के सूप का भी इस्तेमाल करते हैं पर ज्यादातर लोग अर्घ्य में बांस से बनाए सूप, दउरा और डलिया का ही इस्तेमाल करते हैं। 


छठ पूजा में बांस के सूप का महत्व


छठ पूजा का यह त्योहार देश के विभिन्न हिस्सों में भी धूमधाम से मनाया जाता है। विशेष रूप से प्रवासी भारतीय विदेशों में भी इस पर्व को परंपरागत रीति-रिवाजों के साथ मनाते हैं। छठ पूजा की सबसे विशिष्ट बात यह है कि इसमें बांस से बने सूप और टोकरियों का बड़े ही श्रद्धा और पवित्रता से उपयोग किया जाता है। जब श्रद्धालु सूर्य देव और छठी मैया को अर्घ्य देते हैं, तब बांस के सूप में फलों, ठेकुआ, नारियल और अन्य पूजन सामग्री को सजाकर ले जाया जाता है। बांस के सूप के उपयोग के पीछे कई धार्मिक और सांस्कृतिक मान्यताएं भी हैं। 


  1. संपन्नता और समृद्धि का प्रतीक:- बांस भारतीय संस्कृति में शुभता और संपन्नता का प्रतीक माना जाता है। मान्यता है कि बांस से बनी वस्तुओं का उपयोग करने से धन-संपदा और संतान का सुख प्राप्त होता है। इसलिए, छठ पूजा में बांस के सूप और टोकरियों का उपयोग विशेष रूप से किया जाता है, ताकि परिवार में खुशहाली बनी रहे। साथ ही सामाजिक समरसता बनाए रखने में भी ये मददगार साबित होता है। 
  2. प्रकृति के प्रति सम्मान का प्रतीक:- छठ पूजा का एक महत्वपूर्ण पहलू यह है कि यह पर्व पूरी तरह से प्रकृति और प्राकृतिक चीजों के साथ जुड़ा है। बांस के सूप और टोकरियों का उपयोग यह दर्शाता है कि हम पर्यावरण के प्रति सम्मान रखते हैं और प्राकृतिक संसाधनों का उपयोग कर प्रकृति के साथ सामंजस्य बिठाते हैं।
  3. शुद्धता और पवित्रता का प्रतीक:- छठ पूजा में उपयोग होने वाली हर वस्तु को पवित्र माना जाता है। बांस के सूप को भी विशेष रूप से पवित्रता का प्रतीक माना गया है। मान्यता है कि बांस में नकारात्मक ऊर्जा को दूर करने की क्षमता होती है। इसलिए छठी मईया को अर्घ्य देने में बांस के सूप का ही इस्तेमाल किया जाता है।
  4. धार्मिक अनुष्ठान का हिस्सा:- सूर्य देव को अर्घ्य देने के समय, महिलाएं बांस के सूप में फल, ठेकुआ, नारियल, और गन्ना जैसी चीजें सजाकर जल में खड़ी होती हैं। यह सूप छठ पूजा के हर अनुष्ठान का एक अभिन्न हिस्सा होता है। 


छठ पूजा का महत्व


छठ पर्व में सूर्य देव और छठी मईया की पूजा के माध्यम से भक्त अपने और अपने परिवार की सुख-समृद्धि की कामना करते हैं। यह पर्व हमें अनुशासन, पवित्रता और स्वच्छता का भी विशेष ध्यान रखना सिखाता है। चार दिनों तक चलने वाले इस पर्व में उपवास, स्नान, सूर्य को अर्घ्य और व्रत का पालन किया जाता है।


  1. नहाय-खाय: पहले दिन घर की सफाई की जाती है, और श्रद्धालु केवल शुद्ध भोजन करते हैं।
  2. खरना: दूसरे दिन शाम को गुड़ की खीर का प्रसाद बनाया जाता है और व्रतधारी इसे ग्रहण कर अगले 36 घंटे का कठिन निर्जला उपवास शुरू करते हैं।
  3. संध्या अर्घ्य: तीसरे दिन, व्रतधारी डूबते सूर्य को अर्घ्य देते हैं।
  4. उषा अर्घ्य: चौथे और अंतिम दिन उगते सूर्य को अर्घ्य देकर व्रत का समापन किया जाता है।


छठ पूजा 2024 की तिथियां


इस साल छठ पूजा की शुरुआत 05 नवंबर 2024 से हो रही है और इसका समापन 08 नवंबर 2024 को उषा अर्घ्य के साथ होगा।


  • पहला दिन: नहाय-खाय – 5 नवंबर 2024, मंगलवार।
  • दूसरा दिन: खरना – 6 नवंबर 2024, बुधवार।
  • तीसरा दिन: संध्या अर्घ्य – 7 नवंबर 2024, गुरुवार।
  • चौथा दिन: उषा अर्घ्य – 8 नवंबर 2024, शुक्रवार।


बता दें कि षष्ठी तिथि, 07 नवंबर 2024 को सुबह 12:41 बजे शुरू होकर 08 नवंबर 2024 को सुबह 12:34 बजे समाप्त होगी। उदया तिथि के अनुसार, मुख्य छठ पूजा 07 नवंबर को मनाई जाएगी।


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नारद जयंती 2025 तिथि-मुहूर्त

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