सप्तऋषि (Saptrishi)

क्या आपने कभी आसमान में जगमगाहट बिखरते तारों के बीच सात तारे ऐसे देखे हैं जो अन्य तारों से तेज जगमगाते हैं और हमेशा एक ही आकार में होते हैं। अगर आपका जबाव हां है तो फिर आपके मन में ये विचार भी आया होगा कि ये तारे अन्य तारों की अपेक्षा में ज्यादा बड़े ज्यादा चमकीले और एक ही आकृति में क्यों नजर आते हैं। दरअसल वैसे तो आकाश गंगा में अनगिनत तारे हैं, लेकिन इन सभी से इतर सात तारों का एक मंडल ऐसा है, जिसके सभी तारे हमेशा ध्रुव तारे की परिक्रमा करते रहते हैं और लोग इन्हें सप्त ऋषि के नाम से जानते हैं। 

विशेष तारों का ये मंडल आकाश में फाल्गुन-चैत्र महीने से लेकर श्रावण-भाद्र महीने तक दिखाई देता है। इसमें चार तारे चौकोर तथा तीन तारे तिरछी रेखा में रहते हैं।  यदि एक काल्पनिक लाइन से इन तारों को मिला दिया जाए तो ये एक प्रश्न चिन्ह का आकार बनाते हैं। इन तारों के नाम सात ऋषियों के नाम पर रखे गए हैं और वैदिक साहित्य में इन सभी तारों के मंडल, स्थिति, गति, दूरी और विस्तार का बेहतरीन उल्लेख मिलता है। भक्तवत्सल के इस आर्टिकल में हम आपको सप्त ऋषियों से जुड़ी सभी जानकारी उपलब्ध कराने वाले हैं, साथ ही आपको बताएंगे कि सप्त ऋषियों का इस तारा मण्डल से क्या नाता है।

सप्त ऋषि क्या हैं?

दरअसल हिंदू धर्म ग्रंथों में चारों वेदों को ज्ञान का पिटारा कहा जाता है, यह सभी वेद देश विदेश में कई  रिसर्च में भी सहायक रहे हैं और इनसे मनाव उत्तथान के रास्ते भी मिलते हैं। वेदों और ग्रंथों में मंत्रों की रचना करने वाले महान कवियों को ऋषि माना गया है। 

पौराणिक कथाओं के अनुसार सप्तऋषियों की उत्पत्ति ब्रह्मा जी के मस्तिष्क से हुई है और स्वंय भगवान शिव ने इन्हें गुरू के रूप में ज्ञान दिया था। कहा जाता है कि सप्तऋषियों की उत्पत्ति सृष्टि में संतुलन बनाए रखने के लिए हुई थी और इन्हें संसार में धर्म, कर्म, मर्यादा आदि सभी गुणों के प्रचार-प्रसार एवं उसके विस्तार के लिए नियुक्त किया गया था। सप्तऋषि अपने प्रभाव से सृष्टि में शांति और सुख की स्थापना करते हैं।

एक अन्य कथा के अनुसार सप्तऋषि ग्रहों को भी नियंत्रित रखते हैं और ऐसा कहा जाता है कि व्यक्ति के कर्मों का फल देने में भी सप्तऋषियों की महत्वपूर्ण भूमिका होती है।

सभी सप्त ऋषियों को ब्रह्मर्षि भी कहा जाता है यानी कि ऐसे ऋषि जिन्होंने ब्रह्म का अर्थ पूरी तरह समझ लिया है। आमतौर पर भी कोई व्यक्ति केवल योग्यता के आधार पर ब्रह्मर्षि के स्तर तक नहीं पहुंच सकता है, लेकिन सभी सप्त ऋषियों में विश्वामित्र एकमात्र ऐसे ऋषि हैं जिन्होंने अपने तपोबल और गुणों के आधार पर ब्रह्मर्षि का पद हासिल किया है। इसके लिए उन्होंने हजारों वर्षों तक ध्यान और तपस्या की थी, जिसके परिणाम स्वरूप स्वयं ब्रह्मा ने उन्हें ब्रह्मर्षि की उपाधि प्रदान की थी।

ब्रह्मर्षि इतने शक्तिशाली होते हैं कि वे पृथ्वी पर मौजूद हर हथियार को परास्त करने में सक्षम होते हैं, वे किसी के भविष्य की भविष्यवाणी कर सकते हैं और जीवन-मृत्यु के चक्र का भी उन पर कोई प्रभाव नहीं होता। सप्तऋषि शक्ति और धर्मपरायणता में देवताओं से भी बड़े माने जाते हैं और इनका स्थान देवता, राजर्षि और महर्षि जैसे ऋषियों से भी बहुत ऊपर होता है। कहा जाता है कि सप्तऋषियों की तीसरी आंख यानी ज्ञान चक्षु पूरी तरह से खुली हुई है और उनका अंतर्ज्ञान पूरी क्षमता से उपयोग किया जाता है। भक्तवत्सल के इस आर्टिकल में हम आपको सप्तऋषियों से जुड़ी सभी जानकारी के साथ विस्तार पूर्वक उनके बारे में जानकारी देंगे।

सप्तऋषि की उत्पत्ति 

मत्स्यपुराण के अनुसार, ब्रह्मा जी ने संसार में धर्म की स्थापना करने और सनातन संस्कृति का ज्ञान बनाए रखने के लिए अपने मस्तिष्क से सप्तर्षियों की उत्पत्ति की थी। भगवान शिव ने सप्तर्षियों का गुरु बनकर वेदों, ग्रंथो और पुराणों की शिक्षा दी। इसलिए उन्हें ज्ञान, विज्ञान, धर्म-ज्योतिष और योग में सर्वोपरि माना जाता है। वेदों में इन सात ऋषियों को वैदिक धर्म का संरक्षक माना गया है। इन्हीं ऋषिओं के नाम से कुल के नामों का भी पता लगाया जाता है। इन ऋषियों पर ब्रह्माण्ड में संतुलन बनाए रखने और मानव जाति को सही राह दिखाने की जिम्मेदारी है। माना जाता है कि सप्तऋषि आज भी अपने इन कार्यों में लगे हुए हैं। साथ ही सप्तऋषि ब्रह्मा के सात मानस पुत्र हैं जो एक समयावधि तक जीवित रहते हैं जिसे मन्वन्तर (306,720,000 पृथ्वी वर्ष) कहा जाता है। इस अवधि के दौरान वे ब्रह्मा के प्रतिनिधि के रूप में कार्य करते हैं और एक मन्वन्तर के अंत में, ब्रह्मांड नष्ट होते ही वापस ब्रह्मा में ही विलीन हो जाते। जिसके बाद पृथ्वी पर नए सप्तऋषियों के उत्पत्ति होती है।

सप्तऋषियों का ज्योतिष महत्व 

हिंदू संस्कृति में गोत्र का एक महत्वपूर्ण स्थान होता है और हमारी वंशावली में सप्तऋषि सीधे हमारे गोत्र से जुड़े हुए होते हैं। दरअसल व्यक्ति के जन्म के समय उसका जो गौत्र होता है उसका जीवन पर्यन्त वही गोत्र मान्य रहता है, ज्यादातर मामलों में ये पैतृक होता है। हिंदू परंपरा के अनुसार गोत्र शब्द का इस्तेमाल केवल ब्राह्मण, क्षत्रिय और वैश्य परिवारों की वंशावली के लिए किया जाता है। इसलिए, बच्चे को सप्तऋषियों के विशेष कुल के संबंध में एक विशेष गोत्र दिया जाता है। सप्तऋषियों को अक्सर बुद्धिमान प्राणियों के तौर पर दर्शाया जाता है और ऐसी मान्यता है कि हिंदू धर्म में जन्म लेने वाला प्रत्येक नागरिक सात ऋषियों में से ही किसी एक वंशज होता है। सप्तऋषि अपने प्रभाव से सृष्टि में शांति और सुख की स्थापना करते हैं और वह ग्रहों पर भी नियंत्रण रखते हैं।

अब जानते हैं सभी सप्त ऋषियों के बारे में विस्तार से: