शक्तिपीठ (Shaktipeeth)

कौनसे शक्तिपीठ की पूजा से मिलेगा लाभ, जानिए कैसे हुई शक्तिपीठ की उत्पत्ति, क्या है पौराणिक मान्यता.


हिंदू धर्म में शक्तिपीठ के दर्शन करने का बहुत महत्व बताया गया है।  "शक्ति" यानि देवी दुर्गा, जिन्हें दाक्षायनी या पार्वती, लक्ष्मी या माता सती के रूप में भी पूजा जाता है। दरअसल शक्ति पीठ ऐसे पूजनीय स्थान हैं जहां माता सती के शरीर के अंग या फिर उनके आभूषण गिरे थे। मुख्य रूप से शक्ति पीठों की संख्या 51 बताई जाती है लेकिन कुछ स्थानों पर इनकी संख्या 52 होने का भी जिक्र मिलता है।  इसके अलावा देवी भागवत पुराण में 108, कालिका पुराण में 26, शिवचरित्र में 51,  दुर्गा सप्तशती या अष्टादश महाशक्तिपीठ स्तोत्र में 18 और तंत्र चूड़ामणि में 52 शक्तिपीठ के होने की जानकारी सामने आती है। माता के हर शक्तिपीठ का अपना अलग महत्‍व है और इनकी पूजा और दर्शन से अलग अलग फायदे भी होते हैं। भक्तवत्सल के इस आर्टिकल में हम आपको मां के शक्तिपीठ से जुड़ी सारी जानकारी देंगे, साथ ही बताएंगे कि ये सारे शक्तिपीठ क्या हैं, इनके दर्शन से क्या लाभ होता है और यहां कब और कैसे पहुंचा जा सकता है।


क्या है शक्तिपीठ की कहानी ?


पौराणिक कथा के अनुसार, माता सती प्रजापति दक्ष की 27 पुत्रियों में से एक थीं। प्रजापति दक्ष ने जहां अपनी 26 पुत्रियों का विवाह चंद्र देवता से कराया था तो वहीं उनकी एक पुत्री सती ने अपने पिता की इच्छा के विरुद्ध जाकर भगवान शिव से विवाह करने का फैसला किया था। प्रजापति दक्ष भगवान शिव को पसंद नहीं करते थे क्योंकि वह उन्होंने महज एक छोटा संन्यासी मानते थे जो नग्न रहता है। एक बार जब प्रजापति दक्ष ने महायज्ञ जिसमें सभी देवी-देवताओं को आमंत्रित किया गया। लेकिन दक्ष ने अपनी पुत्री सती और भगवान शिव को इस यज्ञ के लिए आमंत्रित नहीं किया। जिस पर माता सती क्रोधित हो उठीं और बिना बुलाए यज्ञ में पहुंच गई। जब वह यज्ञ में पहुंची तो दक्ष ने भगवान शिव का अपमान कर उनको अपशब्द कहे। माता सती को पति का अपमान सहन न हुआ और उन्होंने हवन कुंड में कूदकर अग्निस्नान कर लिया। 


माता सती के प्राण त्याग देने की खबर को भगवान शिव सह न सके और उन्होंने क्रोधित होकर प्रजापति दक्ष के यज्ञ समाप्त करने और दक्ष को मारने का प्रण ले लिया। उन्होंने अपनी जटा को तोड़कर उसके दो टुकड़े किए जिसमे वीरभद्र और भद्रकाली पैदा हुए। भगवान शिव ने वीरभद्र और भद्रकाली को अपनी सेना लेकर  प्रजापति को मारने के लिए भेजा। सती के शव को लेकर भगवान शिव तांडव करने लगे और पूरी सृष्टि में घूमने आगे। इससे पूरे ब्रह्मांड पर प्रलय आने लगी। यह देख भगवान श्री विष्णु ने अपने सुदर्शन चक्र से माता सती के शव के टुकड़े कर दिये। माता के शरीर के अंग और आभूषण 52 टुकड़ों में धरती पर अलग अलग जगहों पर गिरे। जो बाद में शक्तिपीठ बन गए। अगर आप भी माता सती के इन 52 शक्तिपीठों के दर्शन कर आशीर्वाद प्राप्त करना चाहते हैं तो यह जानना जरूरी है कि देवी के 52 शक्तिपीठ किस-किस स्थान पर स्थित हैं। साथ ही इन शक्तिपीठों के क्या नाम हैं।