Shri Vishnu Chalisa (श्री विष्णु चालीसा)

विष्णु चालीसा की रचना और महत्त्व


तीनों लोक के संचालन करने वाले त्रिदेवों में भगवान विष्णु का स्थान सबसे महत्वपूर्ण है। भगवान विष्णु सम्पूर्ण सृष्टि का संचालन करने वाले हैं। भगवान विष्णु को अनेक नामों से जाना जाता है, जैसे कि नारायण, हरि, केशव, माधव, शेषनाग, आदि। भगवान विष्णु के चालीसा का पाठ करने से भगवान विष्णु की कृपा प्राप्त होती है। विष्णु चालीसा एक हिन्दू धार्मिक स्तोत्र है, जिसमें भगवान विष्णु की स्तुति की गई है। इसमें 40 श्लोक होते हैं। इसकी रचना तिवारी गांव के सुन्दरदास ने दुर्वासा ऋषि के आश्रम में, संसार के कल्याण के लिए की थी। ये भी कहा जाता है कि विष्णु चालीसा के रचयिता संत तुलसीदास है, जो 16वीं सदी के कवि और संत थे। उन्होंने विष्णु चालीसा को आदित्य रात्रि में भगवान विष्णु की स्तुति के रूप में रचा था। विष्णु चालीसा का पाठ करने से भक्तों को शांति, सुख, और भगवान के प्रति आत्मिक समर्पण का अनुभव होता है। यह जीवन में सफलता प्राप्ति में मदद करती है। श्री विष्णु चालीसा का पाठ प्रत्येक व्यक्ति को प्रतिदिन करना चाहिए। विशेषकर गुरुवार का दिन भगवान विष्णु को समर्पित है, इसलिए इस दिन अवश्य रूप से चालीसा का पाठ करना चाहिए। कुंडली में गुरु दोष होने पर भी विष्णु चालीसा का पाठ करना चाहिए, भगवान विष्णु की कृपा से ये दोष समाप्त हो जाता है। विष्णु चालीसा का पाठ करने से ऐसे कई लाभ होते हैं, जो कुछ इस प्रकार... 


१) समाज में ऊंचा मान-सम्मान प्राप्त होता है।

२) सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं।

३) गुरु दोष का निवारण होता है।

४) सुख-सौभाग्य में वृद्धि होती है।

५) मन को शांति और जीवन में सफलता प्राप्त होती है।

६) व्यक्ति को ज्ञान व विवेक मिलता है।



।। दोहा ।।


विष्णु सुनिए विनय सेवक की चितलाय ।

कीरत कुछ वर्णन करूं दीजै ज्ञान बताय ॥


विष्णु चालीसा



नमो विष्णु भगवान खरारी, कष्ट नशावन अखिल बिहारी ।

प्रबल जगत में शक्ति तुम्हारी, त्रिभुवन फैल रही उजियारी ॥


सुन्दर रूप मनोहर सूरत, सरल स्वभाव मोहनी मूरत ।

तन पर पीताम्बर अति सोहत, बैजन्ती माला मन मोहत ॥


शंख चक्र कर गदा विराजे, देखत दैत्य असुर दल भाजे ।

सत्य धर्म मद लोभ न गाजे, काम क्रोध मद लोभ न छाजे ॥


सन्तभक्त सज्जन मनरंजन, दनुज असुर दुष्टन दल गंजन ।

सुख उपजाय कष्ट सब भंजन, दोष मिटाय करत जन सज्जन ॥


पाप काट भव सिन्धु उतारण, कष्ट नाशकर भक्त उबारण ।

करत अनेक रूप प्रभु धारण, केवल आप भक्ति के कारण ॥


धरणि धेनु बन तुमहिं पुकारा, तब तुम रूप राम का धारा ।

भार उतार असुर दल मारा, रावण आदिक को संहारा ॥


आप वाराह रूप बनाया, हिरण्याक्ष को मार गिराया ।

धर मत्स्य तन सिन्धु बनाया, चौदह रतनन को निकलाया ॥


अमिलख असुरन द्वन्द मचाया, रूप मोहनी आप दिखाया ।

देवन को अमृत पान कराया, असुरन को छवि से बहलाया ॥


कूर्म रूप धर सिन्धु मझाया, मन्द्राचल गिरि तुरत उठाया ।

शंकर का तुम फन्द छुड़ाया, भस्मासुर को रूप दिखाया ॥


वेदन को जब असुर डुबाया, कर प्रबन्ध उन्हें ढुंढवाया ।

मोहित बनकर खलहि नचाया, उसही कर से भस्म कराया ॥


असुर जलन्धर अति बलदाई, शंकर से उन कीन्ह लड़ाई ।

हार पार शिव सकल बनाई, कीन सती से छल खल जाई ॥


सुमिरन कीन तुम्हें शिवरानी, बतलाई सब विपत कहानी ।

तब तुम बने मुनीश्वर ज्ञानी, वृन्दा की सब सुरति भुलानी ॥


देखत तीन दनुज शैतानी, वृन्दा आय तुम्हें लपटानी ।

हो स्पर्श धर्म क्षति मानी, हना असुर उर शिव शैतानी ॥


तुमने ध्रुव प्रहलाद उबारे, हिरणाकुश आदिक खल मारे ।

गणिका और अजामिल तारे, बहुत भक्त भव सिन्धु उतारे ॥


हरहु सकल संताप हमारे, कृपा करहु हरि सिरजन हारे ।

देखहुं मैं निज दरश तुम्हारे, दीन बन्धु भक्तन हितकारे ॥


चाहता आपका सेवक दर्शन, करहु दया अपनी मधुसूदन ।

जानूं नहीं योग्य जब पूजन, होय यज्ञ स्तुति अनुमोदन ॥


शीलदया सन्तोष सुलक्षण, विदित नहीं व्रतबोध विलक्षण ।

करहुं आपकी किस विधि पूजन, कुमति विलोक होत दुख भीषण ॥


करहुं प्रणाम कौन विधिसुमिरण, कौन भांति मैं करहु समर्पण ।

सुर मुनि करत सदा सेवकाई, हर्षित रहत परम गति पाई ॥


दीन दुखिन पर सदा सहाई, निज जन जान लेव अपनाई ।

पाप दोष संताप नशाओ, भव बन्धन से मुक्त कराओ ॥


सुत सम्पति दे सुख उपजाओ, निज चरनन का दास बनाओ ।

निगम सदा ये विनय सुनावै, पढ़ै सुनै सो जन सुख पावै ॥

........................................................................................................
भोले ओ भोले आया दर पे (Bhole O Bhole Aaya Dar Pe)

भोले ओ भोले आया दर पे,
मेरे सिर पे,

बजरंगी महाराज, तुम्हे भक्त बुलाते है (Bajrangi Maharaj Tumhe Bhakt Bulate Hai)

बजरंगी महाराज,
तुम्हे भक्त बुलाते है,

कंस वध मनाने की परंपरा (Kans Vadh Manane Ki Parampara)

दीपोत्सव यानी दिवाली के ठीक 10वें दिन एक और पर्व मनाया जाता है, जो हमें सिखाता है कि कैसे हमेशा बुराई पर अच्छाई की विजय होती है।

होली खेल रहे नंदलाल(Holi Khel Rahe Nandlal)

होली खेल रहे नंदलाल
वृंदावन कुञ्ज गलिन में ।

यह भी जाने