नवीनतम लेख
सप्तनदियां
भारत के इतिहास में बीती कई शताब्दियों से समय ने न जाने कितनी बार अपना रुख बदला है लेकिन देश में नदियों की दिशा और उनका महत्व कभी नहीं बदला। सालों से अपनी दिशा में बहने वाली नदियां अपनी पवित्रता को बनाए हुए निरंतर बहती चली जा रही हैं। सनातन धर्म के अनुसार नदियां सिर्फ जल का माध्यम नहीं हैं, बल्कि उन्हें देवी के रूप में पूजा जाता है और वे विभिन्न धार्मिक रीति-रिवाजों और मान्यताओं का केंद्र भी हैं।
प्राचीन भारतीय सभ्यता में, नदियां अस्तित्व और विकास के लिए महत्वपूर्ण थीं। इसलिए सप्तनदी या सात पवित्र नदियों की अवधारणा विकसित हुई। वैसे तो सनातन संस्कृति नदी और जल के सभी स्त्रोत का आदर करने की सीख देती है लेकिन इसमें साद नदियां ऐसी हैं जिन्हें सबसे ज्यादा पवित्र और पूजा के योग्य माना जाता है। इन सप्त नदियों में गंगा, यमुना, सरस्वती, सिंधु , नर्मदा, गोदावरी और कावेरी नदी के नाम हैं। इन सातों नदियों का संबंध अलग-अलग देवताओं से है। गंगा जी को भगवान शिव, यमुना को श्री कृष्ण, सरस्वती को भगवान गणेश, सिंधु को श्री हनुमान, नर्मदा को देवी दुर्गा और कावेरी को भगवान दत्तात्रेय से जोड़कर देखा जाता है। हिंदू धर्म में इन पवित्र नदियों में से प्रत्येक का अपना अनूठा महत्व और पौराणिक कथाएं हैं। शास्त्रों में भी स्नान करते समय सप्त नदियों को याद करने का विधान है।
एक श्लोक में कहा गया है -
गंगे च यमुने चैव गोदावरि सरस्वति।
नर्मदे सिंधु कावेरि जलेऽस्मिन् सन्निधिं कुरु।।
पवित्र नदियों में स्नान करने से व्यक्ति के सभी पापों का समन होता है और उसे पुण्य की प्राप्ति होती है, साथ ही आरोग्य और समृद्धि का आशीर्वाद भी मिलता है।
माना जाता है कि पवित्र नदियों का जल शरीर पर लगते ही अंतर्मन शांत होता है और व्यक्ति के दोष दूर होते हैं, इसके अलावा उसके जीवन से नेगेटिव एनर्जी दूर हो जाती है। मान्यताओं के अनुसार, इन पावन नदियों में स्नान करने से ग्रहों की दशा में भी सुधार भी होता है। योगियों व संन्यासियों को भी इन्हीं नदियों के तट अपने पूजा प्रार्थना और प्रायश्चित के लिए सर्वाधिक प्रिय रहे हैं। प्राचीन काल में कई साधु-संन्यासी ने इन्हीं पवित्र नदियों के जल में समाधि भी ली, लेकिन इन नदियों की महत्वता कई अन्य कारणों से भी रही है। भक्तवत्सल के इस आर्टिकल में आपको बताते हैं सप्त नदियों के बारे में विस्तार से...