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ज्योतिर्लिंग का परिचय
सौराष्ट्रे सोमनाथं च श्रीशैले मल्लिकार्जुनम्।उज्जयिन्यां महाकालं ओमकारम् ममलेश्वरम्॥
परल्यां वैद्यनाथं च डाकिन्यां भीमशङ्करम्।सेतुबन्धे तु रामेशं नागेशं दारुकावने॥
वाराणस्यां तु विश्वेशं त्र्यम्बकं गौतमीतटे। हिमालये तु केदारं घृष्णेशं च शिवालये॥
एतानि ज्योतिर्लिङ्गानि सायं प्रातः पठेन्नरः। सप्तजन्मकृतं पापं स्मरणेन विनश्यति॥
ऊपर लिखे श्लोक में सभी ज्योतिर्लिंग के नाम और उनके स्थानों का वर्णन किया गया है. पुराणों और धार्मिक मान्यताओं के अनुसार इन 12 ज्योतिर्लिंगों के दर्शन मात्र से ही मनुष्य के सारे पाप नष्ट हो जाते हैं, लेकिन क्या आप जानते हैं कि ज्योतिर्लिंग असल में क्या हैं और ये स्थापित हुए। जानेंगे इस लेख में ज्योतिर्लिंग से जुड़ी सभी मान्यताएं और उनकी पौराणिक कथाओं के बारे में। उसके पहले ऊपर लिखे श्लोक का अर्थ जान लेते हैं - “सौराष्ट्र प्रदेश (काठियावाड़) में श्री सोमनाथ, श्रीशैल पर श्री मल्लिकार्जुन, उज्जयिनी में श्री महाकाल, ओंकारेश्वर में अमलेश्वर (अमरेश्वर), परली में वैद्यनाथ, डाकिनी नामक स्थान में श्री भीमशंकर, सेतुबंध पर श्री रामेश्वर, दारुकावन में श्रीनागेश्वर, वाराणसी (काशी) में श्री विश्वनाथ, गौतमी (गोदावरी) के तट पर श्री त्र्यम्बकेश्वर,हिमालय पर श्रीकेदारनाथ और शिवालय में श्री घृष्णेश्वर ज्योतिर्लिंग स्थित है और जो भी मनुष्य प्रतिदिन, प्रातःकाल और संध्या समय, इन बारह ज्योतिर्लिंगों का नाम लेता है, उसके सात जन्मों के पाप इन लिंगों के स्मरण-मात्र से मिट जाते है।’
शिव का स्वयंभू अवतार है ज्योतिर्लिंग
दरअसल भगवान शिव को सृष्टि का संहारक कहा जाता है। मान्यताओं के अनुसार भगवान शिव के दो रूप हैं। जिनमें पहला है शिवलिंग और दूसरा ज्योतिर्लिंग। शिव का पहले रूप यानी शिवलिंग के दर्शन आपको पृथ्वी पर किसी भी जगह या मंदिर में हो जाते हैं लेकिन ज्योतिर्लिंग पूरे संसार में केवल 12 स्थानों पर ही हैं और ये सभी 12 स्थान भारत में है।
शास्त्रों के अनुसार शिवलिंग का अर्थ होता है जिसकी न तो कोई शुरुआत है और न ही कोई अंत। शिवलिंग भगवान शिव और माता पार्वती के आदि-अनादि एकल रुप हैं और इन्हें शिव पार्वती का रूप मानकर ही पूजा जाता है, जबकि ज्योतिर्लिंग का अर्थ शिवलिंग से थोड़ा भिन्न है।
ज्योतिर्लिंग का सही अर्थ भगवान शिव का ज्योति के रूप में प्रकट होना है। पुराणों के अनुसार ज्योतिर्लिंग मानव द्वारा निर्मित नहीं किए गए हैं बल्कि ये शिव के स्वयंभू रूप हैं। मान्यता है कि जिन 12 स्थानों पर ज्योतिर्लिंग की स्थापना की गई है वहां भगवान शिव ने वहां स्वयं एक ज्योति के रूप में प्रकट होकर दर्शन दिए थे।
ज्योतिर्लिंग की उत्पत्ति से जुड़ी पौराणिक कथा
ज्योतिर्लिंग की उत्पत्ति को लेकर शिव पुराण में एक कथा है। इस कथा के अनुसार, एक बार ब्रह्माजी और विष्णुजी में इस बात को लेकर विवाद हो गया कि दोनों में सर्वश्रेष्ठ कौन है और दोनों ही अपने आपको श्रेष्ठ साबित करने पर अड़ गए। इस भ्रम को दूर करने के लिए भगवान शिव एक ज्योति स्तंभ के रूप में प्रकट हुए, जिसकी न तो कोई शुरुआत थी और न ही कोई अंत। दोनों में से कोई भी ज्योति का छोर नहीं देख पाया। उसके बाद तय हुआ कि ब्रह्माजी और विष्णुजी से श्रेष्ठ यह दिव्य ज्योति है। इसी ज्योति स्तंभ को ज्योतिर्लिंग कहा गया और ये आगे चलकर देश के अलग अलग हिस्सों में स्थापित हुए।