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केदारनाथ ज्योतिर्लिंग, उत्तराखंड (Kedarnath Jyotirling, Uttarakhand)

केदारनाथ ज्योतिर्लिंग, उत्तराखंड (Kedarnath Jyotirling, Uttarakhand)

केदारनाथ ज्योतिर्लिंग 12 ज्योतिर्लिंगों में पांचवे स्थान पर आता हैं। केदारनाथ धाम दुनिया का एक मात्र ऐसा धाम है जो बारह ज्योतिर्लिंग में सम्मिलित होने के साथ चार धाम और पंच केदार का भी हिस्सा है। यह ज्योतिर्लिंग भारत के उत्तराखंड राज्य में हिमालय पर्वत की गोद में केदार पर्वत पर बसा है। केदार पर्वत के नाथ होने की वजह से यहां विराजे भगवान शिव का नाम केदारनाथ है। शिव पुराण और स्कन्द पुराण में इस ज्योतिर्लिंग का बहुत महत्व बताया गया है। यह मंदिर साल में 6 महीने (मई से लेकर अक्टूबर तक) के लिए खुलता है, बाकी 6 महीने ये बर्फ से ढंका रहता है।


मान्यता है कि जिन 6 महीने तक ये मंदिर बंद रहता है उस दौरान यहां स्वयं देवी-देवता ज्योतिर्लिंग की पूजा-अर्चना करते है। इस बात का प्रमाण ऐसे मिलता है कि जब मंदिर के कपाट 6 महीने के लिए बंद किए जाते हैं तब यहां एक दीपक प्रज्जवलित किया जाता है, आप ये जानकर हैरान होंगे कि ये दीपक 6 महीने बाद तक कपाट खुलने तक जलता ही रहता है। मान्यता अनुसार जब तक केदारनाथ धाम के दर्शन नहीं कर लेते हैं तब तक बद्रीनाथ की यात्रा सफल नहीं होती। तो इस आर्टिकल में केदारनाथ धाम से जुड़ी पैराणिक कथाएं और मंदिर से जुड़ी प्रमुख बातों को विस्तार से जानेंगे…


केदारनाथ ज्योतिर्लिंग से जुड़ी पौराणिक कथा


केदारनाथ ज्योतिर्लिंग की उत्पत्ति से जुड़ी कई कथाएं हैं, इनमें से एक कथा के अनुसार महाभारत का युद्ध समाप्त होने के बाद पांडव सभी कौरव भाइयों और अन्य बंधुओं की हत्या के पाप से मुक्ति पाना चाहते थें। इसके लिए उन्होंने भगवान शिव की कड़ी तपस्या करने के बारे में सोचा। इसके लिए वे भगवान शिव की खोज में हिमालय की ओर निकल पड़े। पांडवों की परीक्षा लेने के लिए भगवान शिव अंतर्ध्यान हो गए और केदार पर्वत पर चले घए। पांडव शिव की खोज में जब केदार पर्वत पहुंचे तो उन्हें देख भगवान शिव ने एक महीष यानि बैल का रूप धारण कर लिया और पशुओं के झुंड में शामिल हो गए। जब शिव को ढूंढते-ढूंढते पांडव थक गए तो भगवान शिव के दर्शन पाने के लिए पांडवों ने एक योजना बनाई। जिसके बाद भीम ने विशाल रूप धारण कर अपने दोनों पैर केदार पर्वत के दोनों और फैला दिए। सभी पशु भीम के पैरों के बीच से गुजर गए, लेकिन महीष यानि बैल के रूप में भगवान शिव ने जैसे ही पैरों के नीचे से निकलने की कोशिश की तो भीम ने उन्हें पहचान लिया।


भगवान शिव को पहचान कर भीम ने बैल को पकड़ना चाहा तो वह धरती में समाने लगा, लेकिन भीम ने बैल की पीठ को जमकर पकड़ लिया। भगवान भोलेनाथ पांडवों की भक्ति से प्रसन्न हुए और उन्हें दर्शन देकर उन्हें पाप से मुक्त कर दिया। पांडवों ने भगवान शिव से कहा कि आपने हमें तो पाप से मुक्त कर दिया लेकिन आने वाले समय में जो पाप करेगा उसे भी पाप मुक्त करने के लिए आप कृपया कर यहीं पर बस जाएं। कहा जाता है कि तभी से भगवान शिव यहां बैल की पीठ की आकृति के रूप में पूजे जाते हैं।


एक दूसरी मान्यता ये भी है कि इस बैल का मुख नेपाल में निकला है, जहां भगवान शिव की पूजा पशुपतिनाथ के रूप में की जाती है।


केदारनाथ ज्योतिर्लिंग की उत्पत्ति से जुड़ी एक और कथा है जिसके अनुसार हिमालय के केदार पर्वत पर भगवान श्री हरि विष्णु के अवतार महातपस्वी नर और नारायण ऋषि तपस्या करते थे। उनकी भक्ति से प्रसन्न होकर भगवान शिव प्रकट हुए और उनकी प्रार्थना अनुसार ज्योतिर्लिंग के रूप में वहां सदा वास करने का वर प्रदान किया, और तभी से भगवान भोलेनाथ वहां केदारनाथ ज्योतिर्लिंग के रूप में वास करने लगे।


केदारनाथ मंदिर से जुड़ी कुछ खास बातें


भगवान शिव का यह मंदिर 85 फुट ऊंचा, 187 फुट लंबा और 80 फुट चौड़ा है। मंदिर के मुख्य भाग में मंडप है और गर्भगृह के चारों ओर प्रदक्षिणा पथ है। बाहर प्रांगण में नंदी विराजमान हैं। कार्तिक पूर्णिमा के दिन मंदिर में स्थापित शिव प्रतिमा को उखीमठ में ले जाया जाता है। बता दें कि केदारनाथ पहुंचने से पहले गौरीकुंड में स्नान का विधान है। गौरीकुंड के अलावा केदारनाथ में शिवकुंड, रेतकुंड, हंसकुंड, उदीकुंड आदि हैं। भैरोंनाथ जी के मंदिर की भी यहां बहुत मान्यता है। हर साल इन्हीं की पूजा के बाद मंदिर के कपाट खोले और बंद किए जाते हैं। मान्यता के अनुुसार मंदिर के पट बंद होने पर भैरव जी इस मंदिर की रक्षा करते हैं।


केदारनाथ ज्योतिर्लिंग के आस-पास दर्शनीय स्थल

केदारनाथ ज्योतिर्लिंग में दर्शन के अलावा भी आप कई अद्भुत जगहों के दर्शन कर सकते हैं, इनमें वासुकी ताल, भैरव नाथ मंदिर, गौरीकुंड, चंद्रशिला गांव आदि हैं।


 केदारनाथ ज्योतिर्लिंग: दर्शन और आरती का समय


केदारनाथ धाम के कपाट सुबह चार बजे खुल जाते हैं। कपाट खुलने के बाद 4 बजे ही महाभिषेक के साथ आरती शुरू होती है। जिसके बाद मंदिर दर्शनार्थियों के लिए खोल दिया जाता है। मंदिर दोपहर 3 बजे से शाम 5 बजे तक बंद रहता है। शाम साढ़े 6 से 7 बजे तक मंदिर में शयन आरती होती है। इसके बाद मंदिर के कपाट बंद कर दिए जाते हैं।


केदारनाथ ज्योतिर्लिंग दर्शन करने का सबसे अच्छा मौसम


केदारनाथ ज्योतिर्लिंग के दर्शन तीन फेज में कराए जाते हैं। पहले फेज में मई और जून के महीने में। दूसरे फेज में जुलाई और अगस्त के महीने में ,और तीसरे फेज में सितंबर और अक्टूबर महीने के बीच बाबा केदारनाथ के दर्शन कराए जाते हैं। हालांकि यहां दर्शन करने और घूमने का सबसे अच्छा मौसम गर्मी के समय का माना जाता है, अप्रैल/मई से लेकर जुलाई की शुरुआत तक यहां का मौसम यात्रा के लिए अनुकुल बना रहता है।


केदारनाथ ज्योतिर्लिंग कैसे पहुंचे?


केदारनाथ जाने के लिए आपको उत्तराखंड सरकार द्वारा जारी की गई बेबसाइट या फिर ऑफलाइन रजिस्ट्रेशन कराना होता है, जिसके बाद सरकार से परमिट मिलने के बाद ही आप यहां दर्शन के लिए जा सकते हैं।

केदारनाथ शिव मंदिर दिल्ली से लगभग 458 किमी की दूरी पर है। यहां पहुंचने के लिए आप हवाई मार्ग, रेल मार्ग और सड़क मार्ग का उपयोग कर सकते हैं।


हवाई मार्ग से- यदी आप हवाई मार्ग से केदारनाथ जाना चाहते हैं तो आपको देश के किसी भी एयरपोर्ट से देहरादून के जॉली ग्रांट हवाई अड्डे के लिए फ्लाइट लेने होगी। यह हवाई अड्डा केदारनाथ के सबसे नजदीक है जो लगभग 238 किलोमीटर दूर है। आपको बता दें कि केदारनाथ में कोई एयरपोर्ट नहीं है। देहरादून से केदारनाथ जाने के लिए आपको सड़क मार्ग का उपयोग कर गौरीकुंड तक पहुंचना होगा। इसके लिए आप देहरादून से टैक्सी-कार किराये पर ले सकते हैं, या सरकारी बस से भी यात्रा कर सकते हैं। बता दें कि यह यात्रा का सिर्फ़ पहला भाग है। गौरीकुंड से केदारनाथ मंदिर तक पहुंचने के लिए आपको पैदल चलना होगा या फिर टट्टू/खच्चर या पालकी की सवारी भी कर सकते हैं। आपको बता दें कि उत्तराखंड में कई जगहों से हेलीकॉप्टर सेवा उपलब्ध है। जिसके जरिए केदारनाथ धाम तक आसानी से पहुंचा जा सकता है। कुछ प्रमुख स्थान जैसे देहरादून, गुप्तकाशी, सिरसी और फाटा से आप केदारनाथ के लिए हेलीकॉप्टर ले सकते हैं।


रेल मार्ग से- केदारनाथ धाम की यात्रा के लिए आप रेल मार्ग का उपयोग भी कर सकते हैं। वैसे तो केदारनाथ के पहाड़ों के बीच होने से यहां रेल मार्ग नहीं है लेकिन आप इसके नजदीकी स्टेशन पहुंचकर केदारनाथ पहुंच सकते हैं। देश के कई स्टेशन दिल्ली से अच्छी तरह से जुड़े हुए हैं, जिनमें ऋषिकेश (केदारनाथ से लगभग 216 किलोमीटर), हरिद्वार (लगभग 241 किलोमीटर) और देहरादून (लगभग 257 किलोमीटर) शामिल हैं। आप दिल्ली से इन स्टेशन तक आ सकते हैं जिसके बाद सड़क मार्ग से गौरीकुंड पहुंच सकते हैं। इन स्टेशन से गौरीकुंड तक जाने के लिए आप टैक्सी या कार किराये पर ले सकते हैं। गौरीकुंड से आपको केदारनाथ धाम तक पहुंचने के लिए एक सुंदर ट्रेक पर चलना होगा


सड़क मार्ग से-

केदारनाथ पहुंचने के लिए सड़क यात्रा भी कर सकते हैं। सड़क मार्ग से केदारनाथ धाम पहुंचने के लिए बस या कार किराये पर लें। सड़क मार्ग का अंतिम पड़ाव भी गौरीकुण्ड ही है यहां से आपको पैदल ही यात्रा करना होगी। दिल्ली से गौरीकुंड का मार्ग लगभग 450 किलोमीटर का है और ट्रैफ़िक के आधार पर इसमें 11 घंटे या उससे अधिक समय लग सकता है। सलाह ये रहेगी कि यदि आप पहाड़ों में ड्राइविंग करना अच्छे से जानते हैं तब ही सड़क मार्ग से कार से चलें। क्योंकि यहां कि सड़कें संकरी और घुमावदार होती हैं। हालांकि गौरीकुंड सड़क का अंत है, लेकिन आपकी यात्रा यहीं खत्म नहीं होती! यहां से, आप 16 किलोमीटर की चढ़ाई शुरू करेंगे या केदारनाथ के पवित्र मंदिर तक पहुंचने के लिए रास्ते के कुछ हिस्से के लिए टट्टू/खच्चर किराए पर ले सकते हैं।


केदारनाथ ज्योतिर्लिंग में इन Hotels में कर सकते हैं स्टे

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GMVN Cottages

Prithvi Yatra Hotel

Kedar Vallery Resort

Himalayan Camp

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