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स्कंद पुराण के तीर्थ प्रकरण में चार धाम यात्रा का काफी महत्व माना गया है। भारत की चारों दिशाओं यानि पूर्व-पश्चिम-उत्तर-दक्षिण में चार धाम बसे हुए हैं। देश के अलग-अलग कोनों में मौजूद चार धामों को आदि शंकराचार्य ने परिभाषित किया है, जिसके अनुसार प्रत्येक धाम एक विशेष युग का प्रतिनिधित्व करता है।
इनमें बद्रीनाथ सत्य युग का, रामेश्वरम त्रेता युग का, द्वारका द्वापर युग का, और पुरी कलियुग का प्रतिनिधि बताया गया है। लेकिन हम सब के मन में एक सवाल आता है कि आखिर चार धाम हैं क्या, इनकी उत्पत्ती कैसे हुई और किस तरह इनके दर्शन से इंसान को लाभ मिल सकता है। जानते हैं इन सवालों के जबाव इस आर्टिकल में…
चारधाम यात्रा का महत्व
सबसे पहले आपको बताते हैं कि चार धाम यात्रा करने का क्या महत्व है। दरअसल, पुराणों के अनुसार चार धामों के दर्शन करने से हर तरह के पाप खत्म हो जाते हैं और सकारात्मक ऊर्जा भी बढ़ती है। ये चार धाम, चार दिशाओं में स्थित है यानी उत्तर में बद्रीनाथ, दक्षिण में रामेश्वरम, पूर्व में जगन्नाथ और पश्चिम में द्वारका। प्राचीन समय में ये चार धाम तीर्थ के रूप मे मान्य थे, लेकिन इनके महत्व का प्रचार जगत गुरु शंकराचार्य जी ने किया था।
क्यों बनाए गए चार धाम?
धर्म ग्रंथों के अनुसार प्राचीन तीर्थ स्थलों पर जाने से उस जगह के बारें में पौराणिक ज्ञान बढ़ता है, देवी-देवताओं से जुड़ी कथाएं पता चलती है, और वहां मौजूद पॉजिटिव एनर्जी आपके भीतर समाहित होकर निगेटिव एनर्जी को खत्म करती है। चारधाम के मंदिरों से प्राचीन संस्कृति को जानने का मौका मिलता है। इसलिए चार धामों को अलग-अलग दिशाओं में स्थापित किया गया है।