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आदि गुरु शंकराचार्य के अनुसार, चारों धाम एक विशेष युग का प्रतिनिधित्व करते हैं। इसी के अनुसार, जगन्नाथ मंदिर कलियुग का प्रतिनिधित्व करता है। यह मंदिर भगवान विष्णु के अवतार श्रीकृष्ण को समर्पित हैं। जगन्नाथ शब्द का अर्थ है- जगत के स्वामी अथवा जगत के नाथ। यह मंदिर ओड़िशा राज्य के तटवर्ती शहर पुरी में स्थित है। पुराणों में इसे धरती को वैकुंठ कहा गया है। यहां लक्ष्मीपति विष्णु ने तरह-तरह की लीलाएं की थीं। ब्रह्म और स्कंद पुराण के अनुसार यहां भगवान विष्णु पुरुषोत्तम नीलमाधव के रूप में अवतरित हुए और सबर जनजाति के परम पूज्य देवता बन गए। वैष्णव सम्प्रदाय के इस मंदिर में, भगवान जगन्नाथ, उनके बड़े भ्राता बलभद्र और भगिनी सुभद्रा की पूजा होती है। इस मंदिर को लेकर मान्यता है कि जब भगवान कृष्ण ने अपना देह त्याग किया तो उनका अंतिम संस्कार किया गया था। तब उनका बाकी शरीर तो पंच तत्वों में विलीन हो गया, लेकिन उनका दिल सामान्य और जिंदा रहा। कहा जाता है कि उनका दिल आज भी सुरक्षित रुप से भगवान जगन्नाथ की मूर्ति के अंदर है और वह आज भी धड़कता है।
इस मन्दिर का वार्षिक रथ यात्रा उत्सव विश्वव भर में काफी प्रसिद्ध है। जगन्नाथ रथयात्रा में तीनों मुख्य देवता, भगवान जगन्नाथ, बलभद्र और सुभद्रा तीनों, तीन अलग-अलग भव्य और सुसज्जित रथों में विराजमान होकर नगर की यात्रा को निकलते हैं। इस मंदिर से जुड़ी कई किवंदतियां और रहस्य भी हैं, जो इस आर्टिकल में हम आपको विस्तार से बताएंगे....
जगन्नाथ मंदिर से जुड़ी कथा
जगन्नाथ मंदिर से जुड़ी कई कथाएं है। जिनके अनुसार राजा इंद्रदयुम्न मालवा के राजा थे। इंद्रदयुम्न के पिता का नाम भारत और माता का सुमति था। एक बार राजा को सपने में जगन्नाथ के दर्शन देते हुए कहा कि नीलांचल पर्वत की एक गुफा में मेरी एक मूर्ति है उसे नीलमाधव कहते हैं। तुम एक मंदिर बनवाकर उसमें मेरी यह मूर्ति स्थापित कर दो। राजा ने अपने सेवकों को नीलांचल पर्वत की खोज में भेजा। उसमें से एक था ब्राह्मण विद्यापति। विद्यापति ने सुन रखा था कि सबर कबीले के लोग नीलमाधव की पूजा करते हैं और उन्होंने अपने देवता की इस मूर्ति को नीलांचल पर्वत की गुफा में छुपा रखा है। वह यह भी जानता था कि सबर कबीले का मुखिया विश्ववसु नीलमाधव का उपासक है और उसी ने मूर्ति को गुफा में छुपा रखा है। चतुर विद्यापति ने मुखिया की बेटी से विवाह कर लिया। आखिर में वह अपनी पत्नी के जरिए नीलमाधव की गुफा तक पहुंचने में सफल हो गया। उसने मूर्ति चुरा ली और राजा को लाकर दे दी।
विश्ववसु अपने आराध्य देव की मूर्ति चोरी होने से बहुत दुखी हुआ। अपने भक्त के दुख से भगवान भी दुखी हो गए। भगवान गुफा में लौट गए, लेकिन साथ ही राज इंद्रदयुम्न से वादा किया कि वो एक दिन उनके पास जरूर लौटेंगे बशर्ते कि वो एक दिन उनके लिए विशाल मंदिर बनवा दे। राजा ने मंदिर बनवा दिया और भगवान विष्णु से मंदिर में विराजमान होने के लिए कहा। भगवान ने कहा कि तुम मेरी मूर्ति बनाने के लिए समुद्र में तैर रहा पेड़ का बड़ा टुकड़ा उठाकर लाओ, जो द्वारका से समुद्र में तैरकर पुरी आ रहा है। राजा के सेवकों ने उस पेड़ के टुकड़े को तो ढूंढ लिया लेकिन सब लोग मिलकर भी उस पेड़ को नहीं उठा पाए। तब राजा को समझ आ गया कि नीलमाधव के अनन्य भक्त सबर कबीले के मुखिया विश्ववसु की ही सहायता लेना पड़ेगी। सब उस वक्त हैरान रह गए, जब विश्ववसु भारी-भरकम लकड़ी को उठाकर मंदिर तक ले आए।
अब बारी थी लकड़ी से भगवान की मूर्ति गढ़ने की। राजा के कारीगरों ने लाख कोशिश कर ली लेकिन कोई भी लकड़ी में एक छैनी तक भी नहीं लगा सका। तब तीनों लोक के कुशल कारीगर भगवान विश्वकर्मा एक बूढ़े व्यक्ति का रूप धरकर आए। उन्होंने राजा को कहा कि वे नीलमाधव की मूर्ति बना सकते हैं, लेकिन साथ ही उन्होंने अपनी शर्त भी रखी कि वे 21 दिन में मूर्ति बनाएंगे और अकेले में बनाएंगे। कोई उनको बनाते हुए नहीं देख सकता। उनकी शर्त मान ली गई। लोगों को आरी, छैनी, हथौड़ी की आवाजें आती रहीं। राजा इंद्रदयुम्न की रानी गुंडिचा अपने को रोक नहीं पाई। वह दरवाजे के पास गई तो उसे कोई आवाज सुनाई नहीं दी। वह घबरा गई। उसे लगा बूढ़ा कारीगर मर गया है। उसने राजा को इसकी सूचना दी। अंदर से कोई आवाज सुनाई नहीं दे रही थी तो राजा को भी ऐसा ही लगा। सभी शर्तों और चेतावनियों को दरकिनार करते हुए राजा ने कमरे का दरवाजा खोलने का आदेश दिया। जैसे ही कमरा खोला गया तो बूढ़ा व्यक्ति गायब था और उसमें 3 अधूरी मूर्तियां मिली पड़ी मिलीं। भगवान नीलमाधव और उनके भाई के छोटे-छोटे हाथ बने थे, लेकिन उनकी टांगें नहीं, जबकि सुभद्रा के हाथ-पांव बनाए ही नहीं गए थे। राजा ने इसे भगवान की इच्छा मानकर इन्हीं अधूरी मूर्तियों को स्थापित कर दिया। तब से लेकर आज तक तीनों भाई बहन इसी रूप में विद्यमान हैं। वर्तमान में जो मंदिर है वह 7 वीं सदी में बनवाया था। हालांकि इस मंदिर का निर्माण ईसा पूर्व 2 में भी हुआ था। यहां स्थित मंदिर 3 बार टूट चुका है। 1174 ईस्वी में ओडिसा शासक अनंग भीमदेव ने इसका जीर्णोद्धार करवाया था। मुख्य मंदिर के आसपास लगभग 30 छोटे-बड़े मंदिर स्थापित हैं।
जगन्नाथ मंदिर में दर्शन और आरती का समय
जगन्नाथ मंदिर में प्रात:काल साढ़े 5 से साढ़े 7 बजे तक मंगला आरती होती है। इसके बाद आम भक्तों के लिए मंदिर खोल दिया जाता है। इसके बाद सुबह 8 बजे से 9:15 तक मंदिर में गोपाल बल्लव पूजा होती है, इस दौरान मंदिर में दर्शन उपलब्ध नही होती है। इसके बाद मंदिर दोपहर 1 बजे तक खुला रहता है। इस दौरान सुबह 11:00 बजे से दोपहर 1:00 बजे तक महाप्रसादी का भोग लगता है। इसके बाद दोपहर 2 बजे मंदिर खुल जाता है, आप 5:30 बजे तक दर्शन कर सकते हैं। शाम 5:30 से 8:00 बजे तक संध्या धूप पूजा और आरती होती है, इस दौरान दर्शन उपलब्ध नही होते है। सायं 8 बजे से 9 बजे तक भक्त दर्शन कर सकते हैं। रात्रि 9:30 बजे से 10:30 बजे तक बड़ा श्रृंगार लगा भोग होता है,और फिर मंदिर के पट बंद कर दिए जाते हैं।
क्या है श्री जगन्नाथ रथ यात्रा और कब होता है इसका आयोजन ?
हिंदू पंचांग के अनुसार, आषाढ़ के चंद्र महीने (जून-जुलाई) के उज्ज्वल पक्ष पर जगन्नाथ यात्रा का आयोजन किया जाता है। भगवान जगन्नाथ की रथ यात्रा आषाढ़ शुक्ल द्वितीया को जगन्नाथ पुरी में आरंभ होती है और इसका समापन दशमी तिथि को होता है। रथ यात्रा में सबसे आगे ध्वज पर श्री बलभद्र, उसके पीछे पद्म ध्वज रथ पर माता सुभद्रा और सुदर्शन चक्र होता है। अंत में गरुण ध्वज पर नंदीघोष नाम के रथ पर श्री जगन्नाथ जी होते हैं। यह रथयात्रा जगन्नाथ की अपनी मौसी गुंडिचा से मिलने की यात्रा का प्रतीक के तौर पर भी मानी जाती है। यात्रा के तीनों रथ लकड़ी के बने होते हैं जिन्हें श्रद्धालु खींचकर चलते हैं। भगवान जगन्नाथ के रथ में 16, भाई बलभद्र के रथ में 14 और बहन सुभद्रा के रथ में 12 पहिए लगे होते हैं।
रथ यात्रा की शुरूआत कैसे हुई?
वैसे तो ऐतिहासिक विवरण और शिलालेख बताते हैं कि यह त्यौहार 12वीं शताब्दी में राजा अनंतवर्मन चोडगंगा देव के शासनकाल के दौरान मनाया जाता था। हालांकि स्कंद पुराण, नारद पुराण, पद्म पुराण और बह्म पुराण में हमें भगवान जगन्नाथ की इस भव्य रथयात्रा का वर्णन मिलता है जो बताता है कि यह बहुत समय पहले से चलता हुआ आ रहा है। मान्यताओं के अनुसार, रथ यात्रा को निकालकर भगवान जगन्नाथ को प्रसिद्ध गुंडिचा माता मंदिर पहुँचाया जाता हैं जहां भगवान जगन्नाथ आराम करते हैं। गुंडिचा माता मंदिर में भारी तैयारी की जाती हैं एवं मंदिर की सफाई के लिये इंद्रद्युमन सरोवर से जल लाया जाता हैं।
रथ यात्रा के पहले होती है ये रस्में
पुरी रथ यात्रा से पहले, ज्येष्ठ पूर्णिमा यानि कि स्नान पूर्णिमा के दिन तीनों मूर्तियों को स्नान कराया जाता है, जिसके बाद उन्हें जुलूस के दिन तक अलग रखा जाता है क्योंकि स्नान के बाद 15 दिन के लिए भगवान बीमार हो जाते हैं। यात्रा के दिन, लोग मंदिर के चारों ओर इकट्ठा होकर जयकारे लगाते हैं, नाचते हैं और पुरी के राजवंश गजपती शाही परिवार के वंशज द्वारा मूर्तियों को मंदिर से बाहर लाने की प्रतीक्षा करते हैं। गजपती शाही परिवार के वंशज एकमात्र व्यक्ति है जिसका जगन्नाथ मंदिर पर पूरा अधिकार है। वह सोने के हैंडल वाली झाड़ू से रथ को साफ करते है और रथ के फर्श को फूलों से सजाते है, फिर वह रथों के सामने की जमीन को साफ करते है और चारों ओर चंदन का पानी छिड़कते है। यह यात्रा का एक प्रसिद्ध अनुष्ठान है जिसे छेरा पहरा कहा जाता है। 15 दिनों के बाद जगन्नाथ जी स्वस्थ हो जाते हैं और तब उन्हें उस कक्ष के बाहर लाया जाता है। फिर वह समस्त भक्त जनों को दर्शन देने के लिए आषाढ़ मास की द्वितीया के दिन अपने बड़े भाई बलराम और बहन सुभद्रा के साथ रथ यात्रा पर बाहर निकलते हैं और पूरे नगर का भ्रमण करते हैं।
जगन्नाथ पुरी दर्शन और एक्सप्लोर करने का सबसे अच्छा मौसम
जगन्नाथ पुरी आप 12 महीनों में कभी भी घूम सकते हैं लेकिन यदि आप पुरी क्षेत्र में घूमना चाहते हैं तो यहां सर्दियों यानि अक्टूबर से मार्च के बीच का समय सबसे अच्छा होता है। तब यहां का औसतन तापमान करीब 10ᴼC-18ᴼC रहता है, जो दर्शनीय स्थलों की यात्रा, समुद्र तट पर जाने और कई अन्य जगहों को एक्सप्लोर करने का बेहतरीन समय है। साथ ही आपको बता दें कि विश्व प्रसिद्ध जगन्नाथ यात्रा निकलने का समय जून माह में होता है, लेकिन तब यहां बहुत भीड़ होती है।
जगन्नाथ मंदिर कैसे पहुंचे?
देश की राजधानी दिल्ली से पुरी की दूरी लगभग 1,852.6 km है।
भगवान जगन्नाथ का ये पावन मंदिर ओड़िशा राज्य के पुरी में स्थित है। यहां आप फ्लाइट, ट्रेन , बस या अपनी प्राइवेट कार से आसानी से पहुंच सकते हैं। लेकिन पुरी के लिए कोई डायरेक्ट फ्लाइट नहीं है, क्योंकि यहां कोई एयरपोर्ट नहीं है। इसके लिए आपको कहां से फ्लाइट लेनी होगी, इसकी जानकारी नीचे दी गई है...
फ्लाइट से- फ्लाइट से पुरी पहुंचने के लिए आपको ओड़िशा की राजधानी भुवनेश्वर के बीजू पटनायक इंटरनेशनल एयरपोर्ट पर उतरना होगा, क्योंकि पुरी में कोई एयरपोर्ट नही है। यहां से पुरी की दूरी लगभग 60 किमी है। एयरपोर्ट पहुंचने के बाद, आपके पास पुरी पहुंचने के लिए कई ऑप्शन हैं। आप टैक्सी किराए पर ले सकते हैं, प्रीपेड टैक्सी सेवा ले सकते हैं, या उबर-ओला जैसी राइड-शेयरिंग सेवाओं का उपयोग कर सकते हैं, जो एयरपोर्ट पर आसानी से उपलब्ध हैं।
ट्रेन से- आप पुरी पहुंचने के लिए ट्रेन की यात्रा भी कर सकते हैं। पुरी रेलवे स्टेशन देश के प्रमुख रेलवे स्टेशनों से अच्छी तरह से जुड़ा हुआ है। जगन्नाथ मंदिर पुरी रेलवे स्टेशन से मात्र 3 किमी की दूरी पर स्थित है। रेलवे स्टेशन पहुंचने के बाद आप यहां से ऑटो या टैक्सी से आसानी से मंदिर पहुंच सकते हैं।
सड़क मार्ग से- पुरी देश के प्रमुख सड़क मार्गों से अच्छी तरह जुड़ा हुआ है,अगर आप सड़क मार्ग से यात्रा करना पसंद करते हैं, तो आपके पास कई विकल्प हैं:
सेल्फ-ड्राइविंग: आप अपने वाहन से पुरी जा सकते हैं। पुरी की ओर जाने वाली सड़कें आम तौर पर अच्छी स्थिति में हैं, और ड्राइव एक मनोरम अनुभव हो सकता है।
बस से- आस-पास के शहरों और कस्बों से पुरी के लिए कई सरकारी और निजी बस चलती हैं।
जगन्नाथ पुरी में इन धर्मशाला, आश्रम या होटल्स में कर सकते हैं स्टे
जगन्नाथ पुरी में हर महीने श्रद्धालुओं का तांता लगा ही रहता है। ऐसे में यहां के होटल्स का किराया काफी महंगा होता है। हम आपको होटल्स के साथ-साथ बजट फ्रेंडली धर्मशालाओं और आश्रम की जानकारी दे रहे हैं। आप अपनी सुविधानुसार इन जगहों पर स्टे कर सकते हैं। साथ ही आपको इन जगहों से मंदिर की दूरी भी बता रहे हैं ताकी जगह का चयन करना आपके लिए आसान हो...
बगरिया धर्मशाला
श्री पुरुषोत्तम वाटिका धर्मशाला
श्री श्री मां आनंदमई आश्रम (1.6km)
श्री मंदिर गेस्ट हाउस (0.2 km)
इन hotels में रूक सकते हैं...
Hotel Sands Bay (980m)
Hotel Agrawal Pride (440m)
Neeladri Bhakt Niwas (630m)
Hotel Shreehari Grand (470m)
Hotel Niladri Complex (540m)
पुरी में घूमने की फेमस जगह
अगर आप जगन्नाथ मंदिर के दर्शन के लिए पुरी आ रहे हैं, तो यहां की फेमस जगहों को भी जरूर एक्सप्लोर करें...
पुरी समुद्र तट
प्रसिद्ध लोकनाथ मंदिर
रघुराजपुर, पुरी का कलाकार गांव
जम्बेश्वर मंदिर
नरेन्द्र सरोवर
मार्कंडेश्वर मंदिर/ मार्कंडेय शिव मंदिर
श्री गुंडिचा मंदिर
पंच तीर्थ (पांच पवित्र स्नान कुंड)
चिल्का लेक (पुरी से लगभग 55 किमी दूर)
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