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मन के मंदिर में प्रभु को बसाना(Man Ke Mandir Mein Prabhu Ko Basana)

मन के मंदिर में प्रभु को बसाना(Man Ke Mandir Mein Prabhu Ko Basana)

मन के मंदिर में प्रभु को बसाना,

बात हर एक के बस की नहीं है,

खेलना पड़ता है जिंदगी से,

भक्ति इतनी भी सस्ती नहीं है,

मन के मंदिर में प्रभू को बसाना,

बात हर एक के बस की नहीं है ॥


प्रेम मीरा ने मोहन से डाला,

उसको पीना पड़ा विष का प्याला,

जब तलक ममता है ज़िन्दगी से,

उसकी रहमत बरसती नहीं है,

मन के मंदिर में प्रभू को बसाना,

बात हर एक के बस की नहीं है ॥


तन पे संकट पड़े मन ये डोले,

लिपटे खम्बे से प्रहलाद बोले,

पतितपावन प्रभु के बराबर,

कोई दुनिया में हस्ती नहीं है,

मन के मंदिर में प्रभू को बसाना,

बात हर एक के बस की नहीं है ॥


संत कहते हैं नागिन है माया,

जिसने सारा जगत काट खाया,

कृष्ण का नाम है जिसके मन में,

उसको नागिन ये डसती नहीं है,

मन के मंदिर में प्रभू को बसाना,

बात हर एक के बस की नहीं है ॥


मन के मंदिर में प्रभु को बसाना,

बात हर एक के बस की नहीं है,

खेलना पड़ता है जिंदगी से,

भक्ति इतनी भी सस्ती नहीं है,

मन के मंदिर में प्रभू को बसाना,

बात हर एक के बस की नहीं है ॥


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