दर्शन दो घनश्याम नाथ मोरी,
अँखियाँ प्यासी रे ।
मन मंदिर की जोत जगा दो,
घट घट वासी रे ॥
मंदिर मंदिर मूरत तेरी,
फिर भी न दीखे सूरत तेरी ।
युग बीते ना आई मिलन की,
पूरनमासी रे ॥
दर्शन दो घनश्याम नाथ मोरी,
अँखियाँ प्यासी रे ।
द्वार दया का जब तू खोले,
पंचम सुर में गूंगा बोले ।
अंधा देखे लंगड़ा चलकर,
पँहुचे काशी रे ॥
दर्शन दो घनश्याम नाथ मोरी,
अँखियाँ प्यासी रे ।
पानी पी कर प्यास बुझाऊँ,
नैनन को कैसे समझाऊं ।
आँख मिचौली छोड़ो अब तो,
मन के वासी रे ॥
दर्शन दो घनश्याम नाथ मोरी,
अँखियाँ प्यासी रे ।
निबर्ल के बल धन निधर्न के,
तुम रखवाले भक्त जनों के ।
तेरे भजन में सब सुख़ पाऊं,
मिटे उदासी रे ॥
दर्शन दो घनश्याम नाथ मोरी,
अँखियाँ प्यासी रे ।
नाम जपे पर तुझे ना जाने,
उनको भी तू अपना माने ।
तेरी दया का अंत नहीं है,
हे दुःख नाशी रे ॥
दर्शन दो घनश्याम नाथ मोरी,
अँखियाँ प्यासी रे ।
आज फैसला तेरे द्वार पर,
मेरी जीत है तेरी हार पर ।
हर जीत है तेरी मैं तो,
चरण उपासी रे ॥
दर्शन दो घनश्याम नाथ मोरी,
अँखियाँ प्यासी रे ।
द्वार खडा कब से मतवाला,
मांगे तुम से हार तुम्हारी ।
नरसी की ये बिनती सुनलो,
भक्त विलासी रे ॥
दर्शन दो घनश्याम नाथ मोरी,
अँखियाँ प्यासी रे ।
लाज ना लुट जाए प्रभु तेरी,
नाथ करो ना दया में देरी ।
तिन लोक छोड़ कर आओ,
गंगा निवासी रे ॥
दर्शन दो घनश्याम नाथ मोरी,
अँखियाँ प्यासी रे ।
मन मंदिर की जोत जगा दो,
घट घट वासी रे ॥
गंगा के किनारे, सूरज की पहली किरणों के साथ, धुंधली सुबह में एक दृश्य उभरता है। यह किसी भी सामान्य दिन से बिल्कुल अलग प्रतीत होता है। राख में लिपटे नग्न शरीर, जटाजूट और आंखों में एक अनोखी चमक। यह दृश्य महाकुंभ मेले की भव्यता को दर्शाता है। नागा साधुओं के चार प्रकारों में से ही एक प्रयाग के नागा साधु होते हैं।
हिंदू धर्म में मंगलवार का दिन हनुमान जी को समर्पित होता है। इस दिन रामजी के साथ हनुमान जी की भी पूजा की जाती है। साथ ही मंगल देव की उपासना की जाती है। मंगल ग्रह ऊर्जा के कारक हैं। इन्हें ग्रहों का सेनापति भी कहा जाता है।
जो लोग अखाड़ों के बारे में नहीं जानते, उन्हें यह जानकर हैरानी हो सकती है कि नागा साधु कई प्रकार के होते हैं। खूनी नागा, खिचड़िया नागा, बर्फानी नागा और नागा। नागाओं को लेकर तमाम तरह की कहानियां भी प्रचलित हैं, जो श्रद्धालुओं को काफ़ी हैरान करते हैं।
भारत की आध्यात्मिक संस्कृति में नागा साधु एक विशेष स्थान रखते हैं। आपने कुंभ मेले में इन्हें शाही स्नान करते, युद्ध कला का प्रदर्शन करते और परंपरागत तरीके से जीवन जीते हुए जरूर देखा होगा। इनकी जड़ें भारतीय सनातन धर्म में गहराई तक फैली हुई हैं। ये अनुशासन, संयम और साधना के लिए विख्यात हैं।