ये मेरी अर्जी है,
मै वैसी बन जाऊँ,
जो तेरी मर्जी है ॥
दोहा – मैंने कब कहा,
की मुझे दुनिया का माल दे,
लगी है फास दिल में निकाल दे
मुझ गरीब का तो श्याम,
इतना सवाल है,
जो कुछ समझ में आए,
मेरी झोली में डाल दे ॥
लफ्जो का टोटा है,
लफ्जो का टोटा है,
जिक्र प्यारे का,
अश्को से होता है,
ये मेरी अर्जी हैं,
मै वैसी बन जाऊँ,
जो तेरी मर्जी है ॥
छम छम छम बारिश है,
छम छम छम बारिश है,
माहि घर आजा,
हर बून्द सिफारिश है,
ये मेरी अर्जी हैं,
मै वैसी बन जाऊँ,
जो तेरी मर्जी है ॥
वो इतना प्यारा है,
वो इतना प्यारा है,
चाँद कहे उससे,
तू चाँद हमारा है,
ये मेरी अर्जी हैं,
मै वैसी बन जाऊँ,
जो तेरी मर्जी है ॥
जग रोक ना पाएगा,
जग रोक ना पाएगा,
मीरा नाचेगी,
जब श्याम बुलाएगा,
ये मेरी अर्जी हैं,
मै वैसी बन जाऊँ,
जो तेरी मर्जी है ॥
मेरा माहि गबरू है,
मेरा माहि गबरू है,
उसकी खुशबु से,
खुशबु में खुशबु है,
ये मेरी अर्जी हैं,
मै वैसी बन जाऊँ,
जो तेरी मर्जी है ॥
ये मेरी अर्जी है,
मै वैसी बन जाऊँ,
जो तेरी मर्जी है ॥
वट सावित्री व्रत ज्येष्ठ मास की अमावस्या तिथि को रखा जाता है। यह व्रत विशेष रूप से सुहागिन महिलाएं रखती हैं। इस दिन महिलाएं वटवृक्ष की पूजा, सावित्री-सत्यवान की कथा का पाठ और वट वृक्ष की परिक्रमा करती हैं।
वट सावित्री व्रत हिंदू धर्म की सबसे प्रमुख व्रत परंपराओं में से एक है, जिसे विशेष रूप से विवाहित महिलाएं अपने पति की दीर्घायु, सौभाग्य और समृद्ध जीवन के लिए करती हैं। इस व्रत का वर्णन महाभारत, स्कंद पुराण, और व्रतराज जैसे शास्त्रों में विस्तार से मिलता है।
हिंदू पंचांग के अनुसार, हर महीने आने वाली मासिक कार्तिगाई तिथि का विशेष धार्मिक महत्व होता है। विशेष रूप से दक्षिण भारत में यह पर्व अत्यंत श्रद्धा और भक्ति के साथ मनाया जाता है।
हिंदू पंचांग में कुछ दिन विशेष संयोग और त्योहारों के कारण अत्यंत शुभ माने जाते हैं। इस साल 26 मई भी ऐसा ही एक दिन है, जब एक नहीं बल्कि चार बड़े धार्मिक पर्व एक साथ पड़ रहे हैं।