ऐसे वर को क्या वरु,
जो जनमे और मर जाये,
वरीये गिरिधर लाल को,
चुड़लो अमर हो जाये ॥
आओ मेरी सखियो मुझे मेहँदी लगा दो,
मेहँदी लगा दो, मुझे सुन्दर सजा दो,
मुझे श्याम सुन्दर की दुल्हन बना दो ॥
सतसंग मे मेरी बात चलायी,
सतगुरु ने मेरी किनी सगाई,
उनको बोला के हथलेवा तो करा दो,
मुझे श्याम सुन्दर की दुल्हन बना दो ॥
ऐसी पहनी चूड़ी जो कबहू ना टूटे,
ऐसा वरु दूल्हा जो कबहू ना छूटे,
अटल सुहाग की बिंदिया लगा दो,
मुझे श्याम सुन्दर की दुल्हन बना दो ॥
भक्ति का सुरमा मैं आख मे लगाउंगी,
दुनिया से नाता तोड़ मैं उनकी हो जाउंगी,
सतगुरु को बुला के फेरे तो पडवा दो,
मुझे श्याम सुन्दर की दुल्हन बना दो ॥
बाँध के घुंघरू मै उनको रीझाऊंगी,
ले के इकतारा मै श्याम-श्याम गाऊँगी,
सतगुरु को बुला के बिदा तो करा दो,
मुझे श्याम सुन्दर की दुल्हन बना दो ॥
आओ मेरी सखियों मुझे मेहँदी लगा दो,
मेहँदी लगा दो, मुझे सुन्दर सजा दो,
मुझे श्याम सुन्दर की दुल्हन बना दो ॥
दिवाली पर मां लक्ष्मी और गणेश जी की पूजा विशेष फलदायी मानी जाती है। साफ-सफाई, शुभ रंगों और विशेष भोग से देवी लक्ष्मी की कृपा प्राप्त होती है। श्री यंत्र की स्थापना और दीप प्रज्वलन से सुख-समृद्धि का वास होता है।
देव दिवाली देवताओं की दिवाली मानी जाती है। यह दिवाली के 15 दिन बाद कार्तिक पूर्णिमा पर मनाई जाती है। यह पर्व भगवान शिव द्वारा त्रिपुरासुर का वध कर देवताओं को मुक्ति दिलाने की खुशी में मनाया जाता है।
दिवाली पूजा के बाद लक्ष्मी-गणेश की मूर्तियों को सही तरीके से संभालना बेहद महत्वपूर्ण है। पुरानी मूर्तियों को सम्मान के साथ विसर्जित करना और नई मूर्तियों को पूजा स्थल पर स्थापित करना शुभ माना जाता है। गलत तरीके से मूर्तियों का उपयोग करने से पूजा का फल नष्ट हो सकता है।
हिंदू धर्म में दीपावली का पर्व पांच दिनों तक चलता है, जिसकी शुरुआत धनतेरस से ही होती है। इसके बाद रूप चौदस, दीपावली, गोवर्धन पूजा और भाई दूज जैसे पर्व आते हैं।