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श्री गणेश चालीसा

श्री गणेश चालीसा

गणेश चालीसा की रचना और महत्त्व


भगवान गणेश भगवान शिव और माता पार्वती के सबसे छोटे पुत्र हैं। गौरी पुत्र भगवान श्री गणेश को सभी देवों में प्रथम पूजनीय माना गया है। वे बुद्धि के देवता हैं। जीवन में सुख और समृद्धि लाने और भगवान गणेश की कृपा पाने के लिए गणेश चालीसा का पाठ करना चाहिए। गणेश चालीसा भगवान गणेश को संबोधित एक हिंदू भक्ति भजन (स्तोत्र ) है। इसमें चालीस चौपाइयां (भारतीय काव्य में चौपाइयां) हैं। यह अवधी भाषा में लिखी गई है। गणेश चालीसा के लेखक राम सुंदर प्रभु दास हैं, जिनका उल्लेख चालीसा में किया गया है, लेकिन आमतौर पर यह माना जाता है कि 16वीं शताब्दी के एक प्रसिद्ध कवि और संत तुलसीदास ने भी इसे लिखा था। गणेश चालीसा के चालीस छंदों में से प्रत्येक छंद एक विशेष प्रकार का आशीर्वाद देता है। गणेश चालीसा का नित्य दिन और विशेष रूप से बुधवार को पाठ करने से भगवान गणेश प्रसन्न होते हैं।  किसी भी पूजा में सबसे पहले गणपति का आह्वान करना बेहद जरूरी होता है, नहीं तो पूजा अधूरी मानी जाती है। गणपति का आह्वान करने का सबसे सही माध्यम श्री गणेश चालीसा को माना जाता है। ऐसा कहा जाता है कि सच्चे मन से गणेश चालीसा का पाठ करने से व्यक्ति के जीवन से दुःख दूर होता है, और उसकी सभी मुरादें पूरी होती हैं। इसके अलावा भी गणेश चालीसा के पाठ से व्यक्ति को कई फलों की प्राप्ति होती है, जैसे...


१) गणेश चालिसा' का पाठ करने वाले भक्तों को जीवन भर किसी भी चीज की कमी नहीं होती है।


२) बुध दोष निवारण होता है।


३) सभी बाधाएं दूर हो जाती हैं।


४) घर-परिवार में सदैव सुख-शांति बनी रहती है।


५) विवाह में आ रही अड़चने दूर होती है।


६) रिद्धि, सिद्धि, ज्ञान और विवेक में वृद्धि होती है।


७) घर में खुशहाली, व्यापार में बरकत और हर कार्य में सफलता प्राप्त होती है।


८) शत्रुओं का विनाश होता है।



॥।। दोहा ।।॥



जय गणपति सद्गुण सदन कविवर बदन कृपाल।

विघ्न हरण मंगल करण जय जय गिरिजालाल॥



॥चौपाई॥



जय जय जय गणपति राजू।

मंगल भरण करण शुभ काजू॥



जय गजबदन सदन सुखदाता।

विश्व विनायक बुद्धि विधाता॥



वक्र तुण्ड शुचि शुण्ड सुहावन।

तिलक त्रिपुण्ड भाल मन भावन॥



राजित मणि मुक्तन उर माला।

स्वर्ण मुकुट शिर नयन विशाला॥



पुस्तक पाणि कुठार त्रिशूलं।

मोदक भोग सुगन्धित फूलं॥



सुन्दर पीताम्बर तन साजित।

चरण पादुका मुनि मन राजित॥



धनि शिवसुवन षडानन भ्राता।

गौरी ललन विश्व-विधाता॥



ऋद्धि सिद्धि तव चंवर डुलावे।

मूषक वाहन सोहत द्वारे॥



कहौ जन्म शुभ कथा तुम्हारी।

अति शुचि पावन मंगलकारी॥



एक समय गिरिराज कुमारी।

पुत्र हेतु तप कीन्हा भारी॥



भयो यज्ञ जब पूर्ण अनूपा।

तब पहुंच्यो तुम धरि द्विज रूपा।



अतिथि जानि कै गौरी सुखारी।

बहु विधि सेवा करी तुम्हारी॥



अति प्रसन्न ह्वै तुम वर दीन्हा।

मातु पुत्र हित जो तप कीन्हा॥



मिलहि पुत्र तुहि बुद्धि विशाला।

बिना गर्भ धारण यहि काला॥



गणनायक गुण ज्ञान निधाना।

पूजित प्रथम रूप भगवाना॥



अस कहि अन्तर्धान रूप ह्वै।

पलना पर बालक स्वरूप ह्वै॥



बनि शिशु रुदन जबहिं तुम ठाना।

लखि मुख सुख नहिं गौरी समाना॥



सकल मगन सुखमंगल गावहिं।

नभ ते सुरन सुमन वर्षावहिं॥



शम्भु उमा बहुदान लुटावहिं।

सुर मुनि जन सुत देखन आवहिं॥



लखि अति आनंद मंगल साजा।

देखन भी आए शनि राजा॥



निज अवगुण गुनि शनि मन माहीं।

बालक देखन चाहत नाहीं॥



गिरिजा कछु मन भेद बढ़ायो।

उत्सव मोर न शनि तुहि भायो॥



कहन लगे शनि मन सकुचाई।

का करिहौ शिशु मोहि दिखाई॥



नहिं विश्वास उमा कर भयऊ।

शनि सों बालक देखन कह्यऊ॥



पड़तहिं शनि दृग कोण प्रकाशा।

बालक सिर उड़ि गयो आकाशा॥



गिरिजा गिरी विकल ह्वै धरणी।

सो दुख दशा गयो नहिं वरणी॥



हाहाकार मच्यो कैलाशा।

शनि कीन्ह्यों लखि सुत को नाशा॥



तुरत गरुड़ चढ़ि विष्णु सिधाए।

काटि चक्र सो गज शिर लाए॥



बालक के धड़ ऊपर धारयो।

प्राण मंत्र पढ़ शंकर डारयो॥



नाम गणेश शम्भू तब कीन्हे।

प्रथम पूज्य बुद्धि निधि वर दीन्हे॥



बुद्धि परीक्षा जब शिव कीन्हा।

पृथ्वी की प्रदक्षिणा लीन्हा॥



चले षडानन भरमि भुलाई।

रची बैठ तुम बुद्धि उपाई॥



चरण मातु-पितु के धर लीन्हें।

तिनके सात प्रदक्षिण कीन्हें॥



धनि गणेश कहि शिव हिय हरषे।

नभ ते सुरन सुमन बहु बरसे॥



तुम्हरी महिमा बुद्धि बड़ाई।

शेष सहस मुख सकै न गाई॥



मैं मति हीन मलीन दुखारी।

करहुँ कौन बिधि बिनय तुम्हारी॥



भजत रामसुन्दर प्रभुदासा।

लख प्रयाग ककरा दुर्वासा॥



अब प्रभु दया दीन पर कीजै।

अपनी शक्ति भक्ति कुछ दीजै॥



॥।। दोहा ।।॥



श्री गणेश यह चालीसा पाठ करें धर ध्यान।

नित नव मंगल गृह बसै लहे जगत सन्मान॥



संवत अपन सहस्र दश ऋषि पंचमी दिनेश।

पूरण चालीसा भयो मंगल मूर्ति गणेश॥

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