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साल में दो दिन क्यों मनाई जाती है जन्माष्टमी, जानिए स्मार्त और वैष्णव संप्रदाय के बारे में जो मनाते हैं अलग-अलग जन्माष्टमी?

साल में दो दिन क्यों मनाई जाती है जन्माष्टमी, जानिए स्मार्त और वैष्णव संप्रदाय  के बारे में जो मनाते हैं अलग-अलग जन्माष्टमी?

भगवान श्री कृष्ण का जन्मोत्सव हर साल भाद्रपद मास के कृष्णपक्ष की अष्टमी तिथि पर मनाया जाता हैं। इस दिन देशभर में लोग श्रीकृष्ण की पूजा करते हैं और मटकी फोड़ जैसी लीलाओं में भाग लेकर भुवन मोहन कन्हैया का जन्मदिन धूमधाम से मनाते हैं। यह पर्व सनातन प्रेमियों के लिए के उन त्योहारों में शामिल होता है जिसमें पूजा अर्चना के साथ-साथ संगीत, मस्ती और नृत्य जैसे कार्यक्रमों का आयोजन भी किया जाता है। लेकिन क्या आप ये बात जानते हैं कि हमारे देश में हर साल जन्माष्टमी का त्योहार एक नहीं बल्कि दो दिन तक मनाया जाता है, यदि हां तो क्या है इसके पीछे का कारण और कहां से शुरु हुई देश में दो जन्माष्टमी मनाने की परंपरा जानेंगे भक्तवत्सल के इस आर्टिकल में….


स्मार्त और वैष्णव संप्रदाय से जुड़ी है कथा


दरअसल जन्माष्टमी का पर्व दो दिन मनाए जाने के पीछे दो तरह की अलग-अलग परंपरा और मान्यताओं का हाथ है। इस क्रम की शुरुआत कई सालों पहले हुई थी जो आजतक चला आ रहा है। जन्माष्टमी का त्योहार दो दिन मनाने के पीछे देश के दो संप्रदाय हैं जिनमें पहला नाम स्मार्त संप्रदाय जबकि दूसरा नाम वैष्णव संप्रदाय का है।


ऐसे में सवाल उठता है कि  गृहस्थ और वैष्णव अलग-अलग जन्माष्टमी मनाने में क्यों यकीन रखते हैं? तो हम आपको बता दें कि इसके पीछे कारण यह है कि स्मार्त इस्कॉन पर आधारित कृष्ण जन्म की तिथि में यकीन नहीं करते हैं और स्मृति आदि धर्मग्रंथों को मानते हैं। इसी कारण इनका नाम स्मार्त पड़ा है। जबकि वैष्णव संप्रदाय के लोग विष्णु के उपासक होते है। और ये विष्णु के अवतारों को मानने वाले होते हैं जो जन्माष्टमी को अष्टमी तिथि और रोहिणी नक्षत्र के अनुसार मनाते हैं। इसलिए जानकारी के मुताबिक स्मार्त सप्तमी तिथि को जन्माष्टमी मनाते हैं और वैष्णव अष्टमी को।


क्या है उदया तिथि की मान्यता? 


इसके अलावा सनातन संस्कृति में ज्यादातर लोग उदया तिथि को मान्यता हैं।   हिंदू कैलेंडर के अनुसार जिस तिथि में सूर्योदय हुआ है उस दिन वही तिथि मान्य होती है जिसे उदया तिथि के नाम से जानते हैं। दरअसल पौराणिक हिंदू संस्कृति में एक दिन का मतलब सूर्योदय से लेकर सूर्यास्त तक का समय होता है। इस हिसाब से अगर सूर्योदय के समय अष्टमी तिथि पड़ती है और कुछ समय बाद नवमी तिथि लग जाए तो भी इसे अष्टमी तिथि ही माना जाएगा। लेकिन अगले दिन सूर्योदय दशमी तिथि के साथ होगा तो नवमी तिथि नगण्य यानी शून्य घोषित हो जाएगी। 


जन्माष्टमी रात को मनाई जाती है, ऐसे में इस पर उदया तिथि का ध्यान रखना इतना आवश्यक नहीं है। इसलिए जन्माष्टमी सप्तमी तिथि और कई बार संयोगवश नवमी तिथि तक भी मनाई जा सकती है।


क्या है स्मार्त संप्रदाय?


हिंदू धर्म में जो लोग पंचदेवों यानि भगवान श्री गणेश, भगवान श्री विष्णु, भगवान शिव, भगवान सूर्य और देवी दुर्गा को मानते हैं और गृहस्थ जीवन जीते हुए इन देवताओं की आराधना करते हैं उन्हें स्मार्त संप्रदाय का माना जाता है।


वैष्णव किसे कहते हैं?


सनातन परंपरा में ये लोग भगवान विष्णु के किसी भी अवतार से जुड़े संप्रदाय से दीक्षा लेकर कंठी माला, तिलक आदि धारण करते हैं।  वैष्णव लोग शाकाहारी और नियमों का सख्ती से पालन करने के लिए प्रसिद्ध है। दूसरे शब्द में वैष्णव भगवान विष्णु के ऐसे भक्तों को कहा जाता है जो गृहस्थ न हुए हों


इस बार जन्माष्टमी का पर्व 26 अगस्त के दिन मनाया जा रहा है जिसकी पूजा के मुहूर्त और पूजा विधि भक्तवत्सल के आर्टिकल में पब्लिक की  जा चुकी है। आप वहां जाकर पूजा विधि और मुहूर्त की सारी जानकारी ले सकते हैं।


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छोटी होली कथा

होली से एक दिन पहले मनाई जाने वाली छोटी होली को होलिका दहन के रूप में जाना जाता है। यह पर्व हिंदू धर्म में विशेष महत्व रखता है और भक्त प्रह्लाद तथा होलिका की कथा से जुड़ा हुआ है।

मार्च में 7 तारीख के बाद नहींं होंगे मांगलिक कार्य

होलिका दहन से पहले 8 दिन होलाष्टक तिथि लगती है जिसमें कोई मांगलिक कार्य नहीं होता है। पुराणिक कथाओं के अनुसार माना जाता है कि यह समय भक्त प्रह्लाद पर किए गए अत्याचारों को दर्शाता है।

बरसाने की लट्ठमार होली

बरसाने में हर साल लट्ठमार होली फाल्गुन मास के शुक्ल पक्ष की नवमी तिथि पर मनाई जाती है। इस साल 2025 में यह त्योहार 8 मार्च को मनाया जाएगा। पौराणिक कथाओं के अनुसार, एक बार भगवान श्रीकृष्ण अपने मित्रों के साथ राधारानी से भेंट करने के लिए बरसाना गए, और वहां जाकर राधारानी और उनकी सखियों को छेड़ने लगे।

लट्ठमार होली कैसे खेली जाती है

बरसाने में लट्ठमार होली फाल्गुन मास के शुक्ल पक्ष की नवमी तिथि को मनाई जाती है, जो इस साल 8 मार्च को पड़ रही है। यह त्योहार राधा-कृष्ण के प्रेम की लीलाओं को दर्शाता है।

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