आयो सावणियो,
दादी जी म्हारी,
हिंडो हिन्डै आज,
आयो सावणियों,
बेला गुलाब चंपा माही,
खूब सज्यो सिणगार,
आयो सावणियों,
ओ आयो सावणियों,
दादी जी म्हारी,
हिंडो हिन्डै आज,
आयो सावणियों ॥
झीणो झीणो चमकै मुखड़ो,
भक्तां रो मन हरखै जी,
मिल भगतां के सागै दादी,
करां सिंधारा आज,
आयो सावणियों,
ओ आयो सावणियों,
दादी जी म्हारी,
हिंडो हिन्डै आज,
आयो सावणियों ॥
माथे पे बिंदिया हाथ में कंगना,
चुनड़ी चमचम चमके है,
केडसती म्हारी बनड़ी बणी है,
कर सोलह सिणगार,
आयो सावणियों,
ओ आयो सावणियों,
दादी जी म्हारी,
हिंडो हिन्डै आज,
आयो सावणियों ॥
पांव में पायल कान में झुमका,
नाक की नथली प्यारी है,
लाल सुरंगी मेहंदी हाथा,
नयना कजरै की धार,
आयो सावणियों,
ओ आयो सावणियों,
दादी जी म्हारी,
हिंडो हिन्डै आज,
आयो सावणियों ॥
रिमझिम रिमझिम बरखा बरखै,
सावणियो आयो प्यारो जी,
अंतर केसर की खुशबू से,
मैहक रह्यो दरबार,
आयो सावणियों,
ओ आयो सावणियों,
दादी जी म्हारी,
हिंडो हिन्डै आज,
आयो सावणियों ॥
ठुमक ठुमक कर थिरक थिरक कर,
म्हें तो मंगल गावां जी,
बिन घुंघरू के म्हें तो नाचां,
नाचां नव नव ताल,
आयो सावणियों,
ओ आयो सावणियों,
दादी जी म्हारी,
हिंडो हिन्डै आज,
आयो सावणियों ॥
घूम घूम कर घूमर घाल्यां,
ढोल बजावां कोई थाल,
झूम झूम कर ‘मधु’ तो नाचे,
माँ ने रिझावै आज,
आयो सावणियों,
ओ आयो सावणियों,
दादी जी म्हारी,
हिंडो हिन्डै आज,
आयो सावणियों ॥
आयो सावणियो,
दादी जी म्हारी,
हिंडो हिन्डै आज,
आयो सावणियों,
बेला गुलाब चंपा माही,
खूब सज्यो सिणगार,
आयो सावणियों,
ओ आयो सावणियों,
दादी जी म्हारी,
हिंडो हिन्डै आज,
आयो सावणियों ॥
इतनी कथा सुन महाराज युधिष्ठिर ने फिर भगवान् श्रीकृष्ण से पूछा कि अब आप कृपाकर फाल्गुन कृष्ण एकादशी का नाम, व्रत का विधान और माहात्म्य एवं पुण्य फल का वर्णन कीजिये मेरी सुनने की बड़ी इच्छा है।
एक समय अयोध्या नरेश महाराज मान्धाता ने प अपने कुल गुरु महर्षि वसिष्ठ जी से पूछा-भगवन् ! कोई अत्यन्त उत्तम और अनुपम फल देने वाले व्रत के इतिहास का वर्णन कीजिए, जिसके सुनने से मेरा कल्याण हो।
इतनी कथा सुनकर महाराज युधिष्ठिर बोले हे भगवन् ! आपके श्रीमुख से इन पवित्र कथाओं को सुन मैं कृतकृत्य हो गया।
इतनी कथा सुन महाराज युधिष्ठिर ने कहा- भगवन्! आपको कोटिशः धन्यवाद है जो आपने हमें ऐसी सर्वोत्तम व्रत की कथा सुनाई।