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शिव और पार्वती की प्रेम कहानी एक अनोखी और प्यारी कहानी है, जो हमें रिश्तों के मायने सिखाती है। यह कहानी हमें बताती है कि प्यार और सम्मान से भरे रिश्ते को कैसे बनाए रखा जा सकता है। हरियाली तीज का पर्व शिव और पार्वती के प्रेम की याद दिलाता है। मान्यता है कि शिव और पार्वती के रिश्ते की शुरुआत इसी दिन हुई थी। धर्मशास्त्रों और भारतीय जनमानस की अंतरात्मा में गुंथी इस अनूठी प्रेम कहानी को याद करने का इससे बेहतर दिन और कौन सा हो सकता है। तो आईये जानते हैं दुनिया की सबसे पहली प्रेम कहानी से जुड़े कुछ अनसुने किस्से सिर्फ bhaktvatsal.com पर..
लोक कथाओं के अनुसार दूल्हा बनकर आए शिव को देखते ही पार्वती की मां मैना ने शादी से इनकार कर दिया था। माता मैना का शादी से इंकार करने का कारण था कि शिव और पार्वती के बीच दूर-दूर तक कोई समानता नहीं थी। एक ओर शिव गले में सांप और तन पर राख लपेटने वाले औघड़ थे। खुला पहाड़ उनका घर था। परिवार के नाम पर भूत-पिशाच और नंदी बैल ही थे। दूसरी ओर गौरा यानी पार्वती पर्वत राज हिमाचल और रानी मैना की बेटी थीं। वे महलों में पली अपार सुंदर राजकुमारी थीं। जिनके परिवार में बड़े-बड़े राजा-महाराजा हुए। बात जब युगल जोड़ी की हो तो मन में राधा-कृष्ण या सीता-राम की छवि उभरती है। लेकिन सीता-राम और राधा-कृष्ण भी जिनसे प्रेरणा लेते रहे हैं, वह हैं शिव और पार्वती की जोड़ी। पौराणिक कथाओं के अनुसार आज ही के दिन भगवान शिव ने माता पार्वती को पत्नी के रूप में स्वीकार किया था। मान्यता है कि हरियाली तीज का व्रत करने से वैवाहिक जीवन सुखी और रिश्ता मजबूत होता है।
शिव पुराण के अनुसार भगवान शिव सांसारिक मोह-माया से काफी दूर थे। उनके पास न तो घर-बार था और न ही कोई धन-दौलत। लेकिन जब रिश्ते में कुछ देने की बारी आई तो उन्होंने माता पार्वती को अपना आधा शरीर दे दिया और अर्धनारीश्वर कहलाए। शिव और पार्वती के रिश्ते में कोई बड़ा-छोटा नहीं है। उन्होंने बिल्कुल आधे-आधे का बंटवारा किया। शादीशुदा जिंदगी में सबसे बड़ी जरूरत समानता ही होती है। शिव और पार्वती के रिश्ते में बराबरी के इसी कॉन्सेप्ट को आज की भाषा में ‘इगैलिटेरियन पार्टनरशिप’ कह सकते हैं।
दुनिया में प्रेम की जितनी भी कहानियां मशहूर हुईं, उनकी फोटो या पेंटिंग पर गौर करें तो दो प्रेमियों को ही पाएंगे। लेकिन शिव और पार्वती आमतौर पर शिव परिवार के रूप में ही दिखते हैं। ऐसा परिवार जिसमें विघ्नहर्ता गणेश से लेकर नंदी बैल, सांप और भूत-पिशाच आदि गण भी दिखाई देते हैं। शिव और पार्वती के रिश्ते में सबको जगह मिलती है। इसे एकल परिवार से जोड़कर देख सकते हैं। आजकल शादी के तुरंत बाद अलग घर बसाने और अकेले रहने का चलन बढ़ा है। लेकिन शिव और पार्वती के रिश्ते से यही सीख मिलती है कि सबको साथ लेकर चलें तो शादीशुदा जिंदगी और परिवार ज्यादा खुशहाल हो सकता है। बिल्कुल शिव की बारात की तरह। जिसमें न सिर्फ देवता बल्कि भूत-पिशाच, जानवर, सांप-बिच्छू सभी शामिल थे।
मान्यता है कि शिव को ब्रह्मज्ञान प्राप्त था, जिसकी वजह से वे जन्म-मरण के चक्र से बाहर थे। भगवान शिव हर जन्म में माता पार्वती का साथ चाहते थे। इसलिए उन्होंने अपना ब्रह्मज्ञान सिर्फ और सिर्फ माता पार्वती के साथ साझा किया। माता पार्वती को ब्रह्मज्ञान देने के लिए भगवान शिव ने अमरनाथ की गुफा को चुना। रास्ते में उन्होंने अपने गले के प्रिय नाग और नंदी तक को छोड़ दिया।
पूर्व जन्म में माता पार्वती सती के रूप में शिव से ब्याही थीं। सती अपने पिता के यज्ञ में शिव के साथ जाना चाहती थीं। लेकिन शिव को उनके ससुर ने न्यौता नहीं दिया था। शिव इस यज्ञ में जाना नहीं चाहते थे। लेकिन माता सती की इच्छा सुनकर शिव ने अपना फैसला बदल लिया और माता पार्वती को यज्ञ में जाने दिया। इसी तरह कैलाश पर्वत पर रहने वाले भगवान शिव ने माता पार्वती की मर्जी से ही सोने की लंका का निर्माण कराया, जिसे उन्होंने बाद में रावण के पूर्वजों को दान कर दिया।
शिव और पार्वती का न सिर्फ रूप-रंग अलग था बल्कि उनकी पारिवारिक और सामाजिक पृष्ठभूमि भी अलग-अलग थी। फिर भी माता पार्वती ने अपने दोनों जन्मों में शिव को ही चुना। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार शिव को पति बनाने के लिए पार्वती ने हजारों वर्षों की तपस्या की। इस बीच उनके पिता इंद्र से लेकर तमाम बड़े राजकुमारों के रिश्ते लेकर आए। लेकिन पार्वती शिव के प्रेम में अटल रहीं और आखिरकार उन्होंने पति के रुप में शिव को हासिल भी किया।
भगवान शिव और माता पार्वती का प्रेम हमें सिखाता है कि यदि आपके वैवाहिक जीवन में धैर्य, प्रेम और समझ हो तो आपका रिश्ता जन्मों-जन्मों के लिए अटूट रिश्ता रहता है।
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