Logo

मां पार्वती चालीसा (Maa Parvati Chalisa)

मां पार्वती चालीसा (Maa Parvati Chalisa)

पार्वती चालीसा की रचना और महत्त्व


हिंदू धर्म में, देवी पार्वती को आदिशक्ति, महाशक्ति, जगदंबा, और भवानी आदि नामों से जाना जाता है। वे भगवान शिव की पत्नी और सती का पुनर्जन्म हैं। देवी पार्वती को समस्त सृष्टि की जननी और पालनहारी माना जाता है। वे सभी देवताओं की अधिष्ठात्री देवी हैं। मान्यता है कि भक्त की भक्ति से देवी जल्दी ही प्रसन्न होती है। इसलिए हर व्यक्ति को देवी शक्ति की पूजा अर्चना करनी चाहिए, इससे व्यक्ति के समस्त कष्ट दूर हो जाते हैं। पार्वती माता की चालीसा पढ़ने से व्यक्ति के जीवन में सफलता आती है और पारिवारिक सुख शांति बनी रहती है। श्री पार्वती चालीसा एक भक्ति श्लोक है जो देवी पार्वती की स्तुति करता है। चालीसा में दिए गए श्लोक में माता पार्वती की दिव्य शक्तियों का वर्णन है जिससे भक्त के मन में उनके प्रति भक्ति भाव एवं समर्पण की भावना आ जाती है। जो व्यक्ति माता पार्वती के चालीसा का पाठ करता है उसके जीवन का भार खुद भगवान शिव थाम लेते हैं और उनके घर पर भोलेनाथ की-की कृपा बनी रहती है व्यक्ति न सिर्फ धनी होता है बल्कि उसे बल, विवेक और बुद्धि की भी प्राप्ति होती है। इतना ही नहीं अगर हम नियमित तौर पर माता पार्वती के चालीसा का पाठ करते हैं तो हमारे हर काम सफल होते हैं क्योंकि विघ्नहर्ता गणेश भगवान भी ऐसे भक्तों से बहुत खुश होते हैं जो उनकी माता को पूजनीय माने। इस अनुसंधान से हमारे जीवन में धार्मिकता का मार्गदर्शन मिलता है। इस चालीसा के माध्यम से भक्त अपनी सारी मनोकामनाएं एवं एक खुशहाल दांपत्य जीवन सिद्ध करता है। माता पार्वती की चालीसा आप पूरे सावन या सावन के किसी विशेष दिन भी पढ़ सकते हैं। बता दें सावन के मंगलवार माता पार्वती को समर्पित हैं। ऐसे में इस दिन पार्वती चालीसा पढ़ना अत्यंत शुभ होता है। जो महिलाएं मंगला गौरी के व्रत रखती हैं उन्हें व्रत पूजा के समय इस चालीसा को जरूर पढ़ना चाहिए।  मां पार्वती की पूजा-अर्चना करने और चालीसा का पाठ करने से सभी संकट दूर होते हैं और भक्तों को सुख-समृद्धि की प्राप्ति होती है। इसके अलावा भी कई अन्य लाभ मिलते हैं, जो कुछ इस प्रकार है…

१) आदिशक्ति के रूप में पूजे जाने वाली माता पार्वती के चालीसा को पढ़ने से भक्त हमेशा उन्नति की मार्ग पर चलता है और उसे माता पार्वती का दिव्य आशीर्वाद प्राप्त होता है।
२) घर में कभी भी धन और यश की कमी नहीं होती तथा उसे आत्मिक और मानसिक शक्ति मिलती है।
३) व्यक्ति के जीवन में पारिवारिक सुख रहता है और उसका दांपत्य जीवन भी अच्छा रहता है।
४) ऐसा माना गया है कि जो सौभाग्यवती स्त्रियां इसका पाठ करती हैं उनका सौभाग्य सदा बना रहता है।
५) रोगों से मुक्ति मिलती है।
६) कुटुंब का साथ बना रहता है।
७) व्यक्ति गुणवान और दीर्घायु होता है।

।। दोहा ।।
जय गिरी तनये दक्षजे शम्भू प्रिये गुणखानि, 
गणपति जननी पार्वती, अम्बे, शक्ति, भवानि ।
।। चौपाई ।।
ब्रह्मा भेद न तुम्हरे पावे, पंच बदन नित तुमको ध्यावे ।
षड्मुख कहि न सकत यश तेरो, सहसबदन श्रम करत घनेरो ।
तेरो पार न पावत माता, स्थित रक्षा लय हित सजाता ।
अधर प्रवाल सदृश अरुणारे, अति कमनीय नयन कजरारे ।
ललित लालट विलेपित केशर, कुंकुंम अक्षत शोभा मनोहर ।
कनक बसन कञ्चुकि सजाये, कटी मेखला दिव्य लहराए ।
कंठ मदार हार की शोभा, जाहि देखि सहजहि मन लोभ ।
बालारुण अनंत छवि धारी, आभूषण की शोभा प्यारी ।
नाना रत्न जड़ित सिंहासन, तापर राजित हरी चतुरानन ।
इन्द्रादिक परिवार पूजित, जग मृग नाग यक्ष रव कूजित ।
गिर कैलाश निवासिनी जय जय, कोटिकप्रभा विकासिनी जय जय ।
त्रिभुवन सकल, कुटुंब तिहारी, अणु अणु महं तुम्हारी उजियारी ।
हैं महेश प्राणेश, तुम्हारे, त्रिभुवन के जो नित रखवारे ।
उनसो पति तुम प्राप्त कीन्ह जब, सुकृत पुरातन उदित भए तब ।
बुढा बैल सवारी जिनकी, महिमा का गावे कोउ तिनकी ।
सदा श्मशान विहरी शंकर, आभूषण हैं भुजंग भयंकर ।
कंठ हलाहल को छवि छायी, नीलकंठ की पदवी पायी ।
देव मगन के हित अस किन्हों, विष लै आपु तिनहि अमि दिन्हो ।
ताकी, तुम पत्नी छवि धारिणी, दुरित विदारिणी मंगल कारिणी ।
देखि परम सौंदर्य तिहारो, त्रिभुवन चकित बनावन हारो ।
भय भीता सो माता गंगा, लज्जा मय है सलिल तरंगा ।
सौत सामान शम्भू पहआयी, विष्णु पदाब्ज छोड़ि सो धायी ।
तेहि कों कमल बदन मुर्झायो, लखी सत्वर शिव शीश चढायो ।
नित्यानंद करी वरदायिनी, अभय भक्त कर नित अनपायिनी ।
अखिल पाप त्रय्ताप निकन्दनी , माहेश्वरी ,हिमालय नन्दिनी ।
काशी पूरी सदा मन भायी, सिद्ध पीठ तेहि आपु बनायीं ।
भगवती प्रतिदिन भिक्षा दात्री, कृपा प्रमोद सनेह विधात्री ।
रिपुक्षय कारिणी जय जय अम्बे, वाचा सिद्ध करी अवलम्बे ।
गौरी उमा शंकरी काली, अन्नपूर्णा जग प्रतिपाली ।
सब जन की ईश्वरी भगवती, पतप्राणा परमेश्वरी सती ।
तुमने कठिन तपस्या किणी, नारद सो जब शिक्षा लीनी ।
अन्न न नीर न वायु अहारा, अस्थि मात्रतन भयउ तुम्हारा ।
पत्र घास को खाद्या न भायउ, उमा नाम तब तुमने पायउ ।
तप बिलोकी ऋषि सात पधारे, लगे डिगावन डिगी न हारे ।
तव तव जय जय जयउच्चारेउ, सप्तऋषि, निज गेह सिद्धारेउ ।
सुर विधि विष्णु पास तब आए, वर देने के वचन सुनाए ।
मांगे उमा वर पति तुम तिनसो, चाहत जग त्रिभुवन निधि, जिनसों ।
एवमस्तु कही ते दोऊ गए, सुफल मनोरथ तुमने लए ।
करि विवाह शिव सों हे भामा, पुनः कहाई हर की बामा ।
जो पढ़िहै जन यह चालीसा, धन जनसुख देइहै तेहि ईसा ।
।। दोहा ।।
कूट चन्द्रिका सुभग शिर जयति सुख खानी,
पार्वती निज भक्त हित रहहु सदा वरदानी ।
........................................................................................................
श्रावण में करें भगवान शिव के इन दुर्लभ मंदिरों के दर्शन, जीवन में होगा चमत्कार (Shraavan mein karen Bhagavaan Shiv ke in Durlabh Mandiron ke Darshan, Jeevan mein hoga Chamatkaar)

श्रावण में करें भगवान शिव के इन दुर्लभ मंदिरों के दर्शन, जीवन में होगा चमत्कार

श्रावण में शिव को अर्पित करें ये वस्तु, चमक उठेगी किस्मत (Shraavan mein Shiv ko Arpit karen ye Vastu, Chamak Uthegee Kismat)

श्रावण में शिव को अर्पित करें ये वस्तु, चमक उठेगी किस्मत

कौन हैं शनिदेव? क्यों डरते हैं सब शनिदेव से !

शनिदेव को नवग्रहों में एक प्रमुख ग्रह की मान्यता दी गयी है और इन्हें कर्म-प्रधान, कर्म फलदाता एवं दंडाधिकारी भी कहा गया है।

यह भी जाने
HomeAartiAartiTempleTempleKundliKundliPanchangPanchang