ॐ जय चित्रगुप्त हरे, स्वामी जय चित्रगुप्त हरे ।
भक्तजनों के इच्छित, फलको पूर्ण करे॥
ॐ जय चित्रगुप्त हरे...
विघ्न विनाशक मंगलकर्ता, सन्तन सुखदायी ।
भक्तों के प्रतिपालक, त्रिभुवन यश छायी ॥
ॐ जय चित्रगुप्त हरे...
रूप चतुर्भुज, श्यामल मूरत, पीताम्बर राजै ।
मातु इरावती दक्षिणा, वाम अंग साजै ॥
ॐ जय चित्रगुप्त हरे...
कष्ट निवारक, दुष्ट संहारक, प्रभुअंतर्यामी ।
सृष्टि सम्हारन, जन दु:ख हारन, प्रकटभये स्वामी ॥
ॐ जय चित्रगुप्त हरे...
कलम, दवात, शंख, पत्रिका, कर में अति सोहै ।
वैजयन्ती वनमाला, त्रिभुवन मन मोहै ॥
ॐ जय चित्रगुप्त हरे...
विश्व न्याय का कार्य सम्भाला, ब्रम्हा हर्षाये ।
कोटि कोटि देवता, चरणन में धाये ॥
ॐ जय चित्रगुप्त हरे...
नृप सौदास, भीष्म पितामह, याद तुम्हें कीन्हा ।
वेग विलम्ब न कीन्हौं, इच्छितफल दीन्हा ॥
ॐ जय चित्रगुप्त हरे...
दारा, सुत, भगिनी, सब अपने स्वास्थ के कर्ता ।
जाऊँ शरण में किसकी, तुम तज मैं भर्ता ॥
ॐ जय चित्रगुप्त हरे...
बन्धु, पिता तुम स्वामी, शरण गहूँ किसकी ।
तुम बिन और न दूजा, आस करूँ जिसकी ॥
ॐ जय चित्रगुप्त हरे...
जो चित्रगुप्तजी की आरती, प्रेम सहित गावैं ।
चौरासी से निश्चित छूटैं, इच्छित फल पावैं ॥
ॐ जय चित्रगुप्त हरे...
न्यायाधीश बैंकुंठ निवासी, पाप पुण्य लिखते ।
हम हैं शरण तिहारे, आश न दूजी करते ॥
ॐ जय चित्रगुप्त हरे...
जय चित्रगुप्त हरे, स्वामी जय चित्रगुप्त हरे ।
भक्तजनों के इच्छित, फल को पूर्ण करे ॥
कायस्थ कुलशिरोमणि, न्यायकर्ता श्रीचित्रगुप्त भगवान की जय
पितृपक्ष हिंदू धर्म में अत्यंत महत्वपूर्ण समय माना जाता है, इस वर्ष इसकी शुरुआत बीते 17 सितंबर से हो गई है। ज्योतिर्वेद विज्ञान केंद्र पटना के ज्योतिषाचार्य डॉ. राजनाथ झा के अनुसार यह 15 दिनों का एक अति विशेष कालखंड होता है जब लोग अपने पूर्वजों को तर्पण और श्राद्ध अर्पित करते हैं, जिससे उनकी आत्मा को शांति और मोक्ष की प्राप्ति हो सके।
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नवरात्रि मतलब हम सनातनियों के लिए मां की आराधना के पावन नौ दिन और विशेष तौर पर रात्रि। हर दिन मैय्या का एक नया रूप और उस रूप की आराधना।
नवरात्रि का पाँचवें दिन स्कंदमाता की उपासना की जाती है। मैय्या इस रूप में मोक्ष और सुख देने वाली है। साथ ही मां मनोकामनाएं भी पूर्ण करती है।