हिंदू धर्म में भगवान विष्णु को सृष्टि के पालनकर्ता के रूप में पूजा जाता है। वे समय-समय पर धरती पर अवतार लेकर धर्म की स्थापना और अधर्म के विनाश का कार्य करते हैं। शास्त्रों में भगवान विष्णु के दस अवतारों का उल्लेख मिलता है, जिनमें नौ अवतार हो चुके हैं और दसवें अवतार ‘कल्कि’ भविष्य में होगा। इसी कारण कल्कि जयंती को एक अनूठा और प्रतीकात्मक पर्व माना जाता है।
कल्कि जयंती भगवान विष्णु के दशम अवतार कल्कि के जन्म की स्मृति में मनाई जाती है, जो भविष्य में कलयुग के अंत में होंगे। इस दिन को धर्म की पुनर्स्थापना और अधर्म के विनाश के प्रतीक के रूप में देखा जाता है। श्रद्धालु इस दिन भगवान विष्णु की पूजा करके उनके कल्कि रूप में आने की प्रतीक्षा और आस्था प्रकट करते हैं। यह पर्व उस आशा का प्रतिनिधित्व करता है कि जब भी अधर्म अपनी चरम सीमा पर होगा, तब भगवान अवतार लेकर उसे समाप्त करेंगे।
कल्कि अवतार की विस्तृत जानकारी श्रीमद्भागवत पुराण और कल्कि पुराण में मिलती है। इन ग्रंथों के अनुसार, जब कलियुग में पाप, अन्याय, दुराचार और अराजकता अपने चरम पर होगी और समाज में धर्म का लोप हो जाएगा, तब भगवान विष्णु घोड़े पर सवार योद्धा के रूप में कल्कि अवतार लेंगे।
यह दिन न केवल पौराणिक दृष्टि से बल्कि आध्यात्मिक रूप से भी अत्यंत महत्वपूर्ण है। भक्त इस दिन व्रत रखते हैं, विष्णु सहस्रनाम का पाठ करते हैं, और कल्कि अवतार की प्रतीक्षा में आस्था प्रकट करते हैं। ऐसा माना जाता है कि इस दिन भगवान की पूजा करने से जीवन में शांति, समृद्धि और नकारात्मक ऊर्जा से मुक्ति मिलती है।