दीपावली का शुभारम्भ धनतेरस से होता है, जिसे धन त्रयोदशी और धन्वंतरि जयंती भी कहा जाता है। 2026 में यह पावन पर्व शुक्रवार 6 नवम्बर को मनाया जाएगा। मान्यता है कि इसी दिन समुद्रमंथन से आयुर्वेद के देव धन्वंतरि अमृत कलश लेकर प्रकट हुए थे। इसी कारण स्वास्थ्य और सम्पन्नता की कामना से इस दिन बर्तन, आभूषण और धन-सम्पदा के प्रतीक शुभ वस्तुओ की खरीदारी की जाती है। शाम के समय प्रदोष काल में लक्ष्मी पूजन और यम दीपदान का विधान है। इस दिन की पूजा के शास्त्रोक्त नियम, कथा और शुभ मुहूर्तों का उल्लेख धार्मिक ग्रन्थों में विस्तार से मिलता है। आइए भक्तवत्सल शैली में जानते हैं धनतेरस 2026 से जुडी सम्पूर्ण जानकारी।
धनतेरस 2026 शुक्रवार 6 नवम्बर को पड़ेगी। इस वर्ष प्रदोष काल और वृषभ काल दोनों शाम में उत्तम फलदायी माने गये हैं। धनतेरस पूजा मुहूर्त 06:02 पी एम से 07:57 पी एम तक रहेगा जिसकी कुल अवधि 1 घण्टा 56 मिनट है। यम दीपम भी इसी दिन पड़ रहा है, जिसका समय प्रदोष काल यानि 05:33 पी एम से 08:09 पी एम तक रहेगा। वृषभ काल, जो लक्ष्मी पूजा के लिए अत्यंत शुभ होता है, 06:02 पी एम से 07:57 पी एम तक है। त्रयोदशी तिथि 6 नवम्बर को 10:30 ए एम से प्रारम्भ होकर अगले दिन 7 नवम्बर को 10:47 ए एम पर समाप्त होगी, अत: उदयव्यापिनी नियम के अनुसार धनतेरस 6 नवम्बर को ही मान्य है।
कथानुसार एक बार देवी लक्ष्मी भगवान विष्णु के साथ पृथ्वी भ्रमण पर आयीं। उन्हें वचन दिया गया था कि वे दक्षिण दिशा की ओर दृष्टि नहीं डालेंगी, किन्तु प्रकृति की सुंदरता देखकर वे आकर्षित हो गयीं और खेतों में लगे पीले सरसों के पुष्पों और गन्ने की हरियाली से मोहित हो गयीं। परिणामस्वरूप, भगवान विष्णु ने उन्हें बारह वर्ष तक एक निर्धन कृषक के खेतों में सेवा करने का आदेश दिया। लक्ष्मी के आगमन से वह कृषक धनवान होता गया। कालांतर में देवी ने उसे सत्य बताकर बैकुंठ गमन किया और वचन दिया कि वे प्रतिवर्ष कृष्ण त्रयोदशी को उसके घर आएंगी। तभी से घर साफ करने, दीप जलाने और लक्ष्मी पूजन की परम्परा धनतेरस पर आरम्भ हुई।
शास्त्रों में स्पष्ट कहा गया है कि धनतेरस कार्तिक मास की कृष्ण त्रयोदशी तिथि उदयव्यापिनी होने पर ही मनाई जानी चाहिए। अर्थात यदि सूर्योदय के समय त्रयोदशी विद्यमान हो तो वही दिन धनतेरस माना जाता है। इस दिन प्रदोष काल विशेष रूप से फलदायी है, क्योंकि इसी समय देवताओं और पितरों को तर्पण, दीपदान तथा लक्ष्मी पूजन का विधान है। यदि किसी वर्ष प्रदोष काल में त्रयोदशी तिथि का स्पर्श दोनों दिनों पर हो अथवा न हो, तो यम दीपदान दूसरे दिन किया जाता है। धनतेरस का महत्व केवल धन प्राप्ति तक सीमित नहीं, बल्कि स्वास्थ्य, समृद्धि और आयु वृद्धि की कामना के लिए भी इससे श्रेष्ठ अवसर कोई नहीं माना गया।
धनतेरस पर भगवान धन्वंतरि की षोडशोपचार पूजा का विधान है, जिसमें आसन, पाद्य, अर्घ्य, आचमन, स्नान, वस्त्र, आभूषण, गंध, पुष्प, धूप, दीप, नैवेद्य, ताम्बूल और आरती सम्मिलित हैं। शाम के समय मुख्य द्वार और आंगन में दीप जलाना शुभ माना गया है, क्योंकि इसी से दीपावली का आरम्भ माना जाता है। धनतेरस पर पीतल और चांदी के बर्तन खरीदना शुभ होता है, क्योंकि इसे समृद्धि का प्रतीक माना गया है। इसके साथ ही प्रतीकात्मक रूप से यम देव के निमित्त दीपदान करने से अकाल मृत्यु का भय दूर होता है। इस दिन स्वास्थ्य की कामना के साथ धन्वंतरि देव का स्मरण विशेष शुभ फलदायी माना गया है।