Vrat Tyohar January 2026: मकर संक्रांति, जया एकादशी और वसंत पंचमी, जनवरी में पड़ने वाले व्रत-त्योहार
जनवरी का महीना भारत में अध्यात्म, उत्सव और धार्मिक आस्था का प्रतीक माना जाता है। यह समय नए वर्ष की शुरुआत के साथ जीवन में नई ऊर्जा और सकारात्मकता का संचार करता है। इस माह में कई महत्वपूर्ण व्रत और त्योहार आते हैं, जो जीवन में संयम, भक्ति और समाज के प्रति कर्तव्यों की भावना को जागृत करते हैं। जनवरी 2026 में व्रतों और त्योहारों की एक समृद्ध श्रृंखला देखने को मिलेगी, जिनमें मकर संक्रांति, गुरू प्रदोष व्रत, पौष पूर्णिमा, संकट चौथ, माघ मास प्रारंभ, वसंत पंचमी और सरस्वती पूजा जैसे पर्व शामिल हैं। ये अवसर न केवल धार्मिक विश्वासों को बल देते हैं, बल्कि परिवार और समाज के बीच संबंधों को भी प्रगाढ़ बनाते हैं। आइए, जनवरी 2026 में आने वाले प्रमुख व्रत और त्योहारों पर एक विस्तृत दृष्टि डालते हैं।
जनवरी 2026 व्रत-त्योहार
1 जनवरी 2026 (गुरुवार): प्रदोष व्रत (शिव पूजा)
गुरु प्रदोष व्रत- जब प्रदोष व्रत गुरुवार को पड़ता है, तो इसे गुरु प्रदोष व्रत कहा जाता है। यह व्रत भगवान शिव और गुरु बृहस्पति दोनों की कृपा दिलाने वाला माना जाता है। इस दिन संध्या समय शिवलिंग पर जल, दूध और पीले पुष्प अर्पित कर पूजा करने से करियर, शिक्षा और धन संबंधी बाधाएं दूर होती हैं।
3 जनवरी 2026 (शनिवार): पौष पूर्णिमा स्नान, स्नान-दान, पौष पूर्णिमा व्रत
पौष पूर्णिमा - पौष पूर्णिमा का हिंदू धर्म में विशेष महत्व है। इस दिन पवित्र नदियों में स्नान, दान-पुण्य और भगवान विष्णु की पूजा का विधान है। माना जाता है कि पौष पूर्णिमा पर दान करने से पापों का नाश होता है और पुण्य की प्राप्ति होती है।
4 जनवरी 2026 (रविवार): माघ मास प्रारंभ
माघ मास प्रारंभ - माघ मास का प्रारंभ हिंदू पंचांग के अनुसार एक अत्यंत पुण्यकाल माना जाता है। यह मास स्नान, दान, जप-तप और व्रत के लिए विशेष फलदायी होता है। मान्यता है कि माघ मास में किए गए धार्मिक कर्म कई गुना पुण्य प्रदान करते हैं और जीवन में सकारात्मक ऊर्जा का संचार करते हैं।
6 जनवरी 2026 (मंगलवार): संकष्टी चतुर्थी व्रत
संकष्टी चतुर्थी व्रत - संकष्टी चतुर्थी भगवान गणेश को समर्पित एक महत्वपूर्ण व्रत है। इस दिन भक्त पूरे दिन उपवास रखते हैं और रात्रि में चंद्र दर्शन के बाद व्रत का पारण करते हैं। यह व्रत जीवन की बाधाओं को दूर करने वाला माना जाता है।
10 जनवरी 2026 (शनिवार): कालाष्टमी, मासिक कृष्ण जन्माष्टमी
- कालाष्टमी- कालाष्टमी हर माह कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को मनाई जाती है और यह भगवान शिव के उग्र रूप श्री कालभैरव को समर्पित होती है। इस दिन कालभैरव की विशेष पूजा, उपवास और रात्रि में दीप-दान का विधान है। मान्यता है कि कालाष्टमी के दिन विधिपूर्वक पूजा करने से भय, नकारात्मक शक्तियों और जीवन की बाधाओं से मुक्ति मिलती है। साथ ही यह व्रत आत्मबल, साहस और सुरक्षा की भावना को मजबूत करता है।
- मासिक कृष्ण जन्माष्टमी - मासिक कृष्ण जन्माष्टमी प्रत्येक माह कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को मनाई जाती है और यह भगवान श्रीकृष्ण की आराधना के लिए समर्पित होती है। इस दिन भक्त उपवास रखते हैं, श्रीकृष्ण के बाल रूप की पूजा करते हैं और भजन-कीर्तन का आयोजन किया जाता है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, मासिक कृष्ण जन्माष्टमी का व्रत करने से पापों का नाश होता है और जीवन में सुख-समृद्धि व आध्यात्मिक उन्नति प्राप्त होती है।
14 जनवरी 2026 (बुधवार): मकर संक्रांति, उत्तरायण, षट्तिला एकादशी, पोंगल
- मकर संक्रांति- मकर संक्रांति सूर्य के मकर राशि में प्रवेश का पर्व है, जिसे हिंदू धर्म में अत्यंत शुभ माना जाता है। इस दिन से सूर्य की उत्तर दिशा की यात्रा आरंभ होती है और दिन बड़े होने लगते हैं। मकर संक्रांति पर तिल-गुड़ का दान, स्नान और सूर्य पूजा का विशेष महत्व है। मान्यता है कि इस दिन किया गया दान कई गुना पुण्य प्रदान करता है और जीवन में सकारात्मकता व समृद्धि लाता है।
- उत्तरायण- उत्तरायण सूर्य की दक्षिणायन से उत्तर दिशा की ओर गति का प्रतीक है, जो मकर संक्रांति के साथ आरंभ होती है। इसे देवताओं का दिन भी कहा जाता है। धार्मिक दृष्टि से उत्तरायण काल को अत्यंत शुभ माना गया है, जिसमें किए गए धार्मिक कार्य, यज्ञ-दान और साधना विशेष फलदायी होते हैं। इसी कारण इस अवधि में विवाह और अन्य शुभ कार्य भी किए जाते हैं।
- षट्तिला एकादशी- षट्तिला एकादशी माघ कृष्ण पक्ष की एकादशी तिथि को मनाई जाती है और यह भगवान विष्णु को समर्पित होती है। इस दिन तिल से बने पदार्थों का सेवन, तिल दान और तिल से स्नान का विशेष महत्व बताया गया है। धार्मिक मान्यता के अनुसार, षट्तिला एकादशी का व्रत करने से पापों का नाश होता है और दरिद्रता दूर होती है।
- पोंगल- पोंगल दक्षिण भारत का प्रमुख फसल उत्सव है, जिसे विशेष रूप से तमिलनाडु में बड़े हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता है। यह पर्व सूर्य देव, प्रकृति और किसानों के प्रति कृतज्ञता व्यक्त करने का प्रतीक है। पोंगल के अवसर पर नए अन्न से विशेष व्यंजन तैयार किए जाते हैं और घरों को सजाया जाता है। यह त्योहार समृद्धि, खुशहाली और पारिवारिक एकता का संदेश देता है।
15 जनवरी 2026 (गुरुवार): कृष्ण कूर्म द्वादशी
- कृष्ण कूर्म द्वादशी - कृष्ण कूर्म द्वादशी माघ माह के कृष्ण पक्ष की द्वादशी तिथि को मनाई जाती है और यह भगवान विष्णु के कूर्म अवतार को समर्पित होती है। मान्यता है कि इसी दिन भगवान विष्णु ने समुद्र मंथन के समय कछुए का रूप धारण कर मंदराचल पर्वत को अपनी पीठ पर धारण किया था। इस दिन व्रत रखकर भगवान विष्णु की पूजा, विष्णु सहस्रनाम का पाठ और दान-पुण्य करने से जीवन में स्थिरता, संकटों से मुक्ति और आध्यात्मिक शांति की प्राप्ति होती है। यह व्रत विशेष रूप से धैर्य, संतुलन और धर्म के पालन का संदेश देता है।
16 जनवरी 2026 (शुक्रवार): मेरु त्रयोदशी, शुक्र प्रदोष व्रत, मासिक शिवरात्रि
- मेरु त्रयोदशी - मेरु त्रयोदशी माघ माह के कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी तिथि को मनाई जाती है। इस दिन पवित्र नदियों में स्नान, दान-पुण्य और धार्मिक अनुष्ठानों का विशेष महत्व बताया गया है। शास्त्रों के अनुसार, मेरु त्रयोदशी पर की गई पूजा और दान से अक्षय पुण्य की प्राप्ति होती है और जीवन में स्थिरता व समृद्धि का वास होता है।
- शुक्र प्रदोष व्रत- शुक्रवार को पड़ने वाला प्रदोष व्रत भगवान शिव को समर्पित होता है और इसे शुक्र प्रदोष व्रत कहा जाता है। प्रदोष काल में शिवलिंग पर जल, दूध और बेलपत्र अर्पित कर पूजा की जाती है। मान्यता है कि शुक्र प्रदोष व्रत करने से वैवाहिक जीवन में मधुरता आती है, धन-समृद्धि बढ़ती है और मानसिक शांति की प्राप्ति होती है।
- मासिक शिवरात्रि - मासिक शिवरात्रि हर माह कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी तिथि को मनाई जाती है और यह भगवान शिव व माता पार्वती की उपासना का विशेष दिन है। इस दिन भक्त उपवास रखते हैं और रात्रि में शिवलिंग की विशेष पूजा व अभिषेक करते हैं। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, मासिक शिवरात्रि का व्रत करने से पापों का नाश होता है और जीवन में सुख-शांति व आध्यात्मिक उन्नति प्राप्त होती है।
18 जनवरी 2026 (रविवार): मौनी अमावस, थाई अमावसाई, दर्श अमावस्या, माघ अमावस्या
- मौनी अमावस्या- मौनी अमावस्या माघ माह की अमावस्या तिथि को मनाई जाती है और इसे हिंदू धर्म में अत्यंत पुण्यदायी माना गया है। इस दिन मौन रहकर पवित्र नदियों में स्नान, विशेष रूप से गंगा स्नान, का बड़ा महत्व है। मान्यता है कि मौनी अमावस्या पर स्नान-दान और जप-तप करने से पापों का नाश होता है और आत्मिक शुद्धि के साथ मोक्ष की प्राप्ति का मार्ग प्रशस्त होता है।
- थाई अमावसाई- थाई अमावसाई तमिल पंचांग के अनुसार थाई मास की अमावस्या को मनाई जाती है और दक्षिण भारत में इसका विशेष धार्मिक महत्व है। इस दिन पितरों के तर्पण और श्राद्ध कर्म किए जाते हैं। मान्यता है कि थाई अमावसाई पर पितृ पूजन से पूर्वजों की आत्मा को शांति मिलती है और परिवार में सुख-समृद्धि बनी रहती है।
- दर्श अमावस्या- दर्श अमावस्या हर माह अमावस्या तिथि को मनाई जाती है और इसे पितृ पूजन के लिए विशेष माना गया है। इस दिन पितरों के निमित्त तर्पण, दान और हवन करने का विधान है। धार्मिक मान्यता के अनुसार, दर्श अमावस्या पर किए गए कर्मों से पितृ दोष शांत होता है और जीवन में आने वाली बाधाएं दूर होती हैं।
- माघ अमावस्या- माघ अमावस्या माघ माह की अमावस्या तिथि को मनाई जाती है और यह स्नान-दान तथा पितृ तर्पण के लिए अत्यंत शुभ मानी जाती है। इस दिन गंगा, यमुना या अन्य पवित्र नदियों में स्नान कर दान-पुण्य करने से अक्षय फल की प्राप्ति होती है। मान्यता है कि माघ अमावस्या पर किए गए धार्मिक कर्म व्यक्ति को आध्यात्मिक शांति और पुण्य लाभ प्रदान करते हैं।
19 जनवरी 2026 (सोमवार): माघ गुप्त नवरात्रि
- माघ गुप्त नवरात्रि- माघ नवरात्रि माघ मास के शुक्ल पक्ष में मनाई जाती है और इसे गुप्त नवरात्रि भी कहा जाता है। इस दौरान मां दुर्गा के नौ स्वरूपों की विशेष पूजा, साधना और व्रत किए जाते हैं। तंत्र साधना और शक्ति उपासना के लिए यह नवरात्रि अत्यंत महत्वपूर्ण मानी जाती है। धार्मिक मान्यता है कि माघ नवरात्रि में श्रद्धा और विधि-विधान से की गई पूजा से साधक को आध्यात्मिक शक्ति, मानसिक बल और जीवन में आने वाली बाधाओं से मुक्ति मिलती है।
22 जनवरी 2026 (गुरूवार): गणेश जयन्ती, रामलला प्रतिष्ठा दिवस, गौरीगणेश चतुर्थी
- गणेश जयन्ती - गणेश जयन्ती भगवान गणेश के जन्मोत्सव का दिन है। इस दिन विशेष पूजा, मंत्र जाप और उपवास का विधान है। इसे करने से बुद्धि, वैभव और बाधाओं से मुक्ति मिलती है।
- रामलला प्रतिष्ठा दिवस - रामलला प्रतिष्ठा दिवस भगवान राम के जन्मस्थान या मंदिर में उनके मूर्तियों की स्थापना का पर्व है। इस दिन पूजा और हवन का आयोजन किया जाता है। यह धर्म, न्याय और आस्था का प्रतीक है।
- गौरीगणेश चतुर्थी - गौरीगणेश चतुर्थी माता गौरी और भगवान गणेश की पूजा का पर्व है। यह पर्व विवाह, वैवाहिक सुख और परिवार की समृद्धि के लिए विशेष रूप से महत्वपूर्ण है। इस दिन उपवास और भक्ति का विधान होता है।
23 जनवरी 2026 (शुक्रवार): वसंत पंचमी, सरस्वती पूजा
- वसंत पंचमी - वसंत पंचमी माघ मास की शुक्ल पक्ष की पंचमी को मनाई जाती है। यह पर्व वसंत ऋतु के आगमन का प्रतीक है और ज्ञान, विद्या और समृद्धि का पर्व भी माना जाता है। इस दिन पीले वस्त्र पहनने, पीले फूल चढ़ाने और तिल‑गुड़ का दान करने की परंपरा है। इसे करने से जीवन में खुशहाली, स्वास्थ्य और बौद्धिक उन्नति होती है।
- सरस्वती पूजा - सरस्वती पूजा मां सरस्वती के पूजन का विशेष अवसर है। यह पूजा ज्ञान, संगीत, कला और विद्या की देवी के सम्मान में की जाती है। विद्यार्थी और विद्वान इस दिन पुस्तकों, वीणा और अन्य ज्ञान साधनों के साथ पूजा करते हैं। सरस्वती पूजा से बुद्धि में वृद्धि, शिक्षा में सफलता और सृजनात्मक क्षमता का विकास होता है।
24 जनवरी 2026 (शनिवार): स्कंद षष्ठी
- स्कंद षष्ठी - स्कंद षष्ठी भगवान कार्तिकेय (सुभ्रह्मण्य) को समर्पित व्रत है। यह दिन विशेष रूप से उनके भक्तों द्वारा उपवास और पूजा के साथ मनाया जाता है। इस व्रत को करने से जीवन में साहस, शक्ति, बुद्धि और संकटों से मुक्ति मिलती है। दक्षिण भारत और महाराष्ट्र में इस पर्व को विशेष भक्ति और उत्साह के साथ मनाया जाता है।
25 जनवरी 2026 (रविवार): भानु सप्तमी, रथ सप्तमी, नर्मदा जयंती
- भानु सप्तमी- भानु सप्तमी सूर्य देव को समर्पित पर्व है। यह दिन सूर्य की आराधना, सूर्य मंत्रों का जाप और सूर्योपासना का अवसर प्रदान करता है। इसे करने से स्वास्थ्य, ऊर्जा और जीवन में सकारात्मकता बढ़ती है। इस दिन विशेष रूप से सूर्य को अर्घ्य देने और दान‑धर्म करने का महत्व है।
- रथ सप्तमी- रथ सप्तमी माघ मास की शुक्ल सप्तमी को मनाई जाती है। यह पर्व भगवान सूर्य के रथ का प्रतीक है और सूर्य देव की पूजा से जीवन में स्वास्थ्य, समृद्धि और ऊर्जा का वर्धन होता है। लोग विशेष स्नान, दान और सूर्य मंत्रों का जाप करके इस दिन का शुभ लाभ लेते हैं।
- नर्मदा जयंती- नर्मदा जयंती नर्मदा नदी के पूजन का पर्व है। इस दिन नदी के किनारे स्नान और दान करना अत्यंत पुण्यदायी माना जाता है। नर्मदा जयंती पर्यावरण, शुद्धता और धार्मिक आस्था के प्रतीक के रूप में मनाई जाती है। इसे करने से पापों का नाश और आध्यात्मिक उन्नति होती है।
26 जनवरी 2026 (सोमवार): भीष्म अष्टमी, मासिक दुर्गाष्टमी
- भीष्म अष्टमी - भीष्म अष्टमी महाभारत के पौराणिक पात्र पितामह भीष्म के धर्म और त्याग की स्मृति में मनाई जाती है। इस दिन उनके आदर्शों का स्मरण करते हुए उपवास और पूजा का विधान है। इसे करने से जीवन में सत्य, धर्म और निष्ठा के गुण विकसित होते हैं।
- मासिक दुर्गाष्टमी - मासिक दुर्गाष्टमी हर माह की शुक्ल अष्टमी को मनाई जाती है। इस दिन देवी दुर्गा की पूजा और उपासना की जाती है। भक्त उपवास रखते हैं और शक्ति, साहस और बाधाओं से मुक्ति के लिए दुर्गा माता का ध्यान करते हैं। यह व्रत मानसिक शांति और आध्यात्मिक बल प्रदान करता है।
27 जनवरी 2026 (मंगलवार): मासिक कार्तिगाई
- मासिक कार्तिगाई - मासिक कार्तिगाई हर माह की कार्तिक महीने की मासिक पूजा है, जो भगवान शिव और भगवान कार्तिकेय के सम्मान में होती है। इस दिन भक्त दीपक जलाकर, मंत्र जाप और व्रत करके पुण्य कमाते हैं। मासिक कार्तिगाई करने से परिवार में सुख‑समृद्धि, आध्यात्मिक बल और मानसिक शांति प्राप्त होती है। दक्षिण भारत में इसे विशेष भक्ति और उत्साह के साथ मनाया जाता है।
29 जनवरी 2026 (गुरुवार): भीष्म द्वादशी, जया एकादशी
- जया एकादशी - जया एकादशी भगवान विष्णु को समर्पित व्रत है। यह व्रत श्रवण और भक्ति के माध्यम से पुण्य की प्राप्ति का अवसर देता है। इस दिन उपवास रखने, विष्णु मंत्रों का जाप और दान‑धर्म करने से पापों का नाश होता है, सुख‑समृद्धि बढ़ती है और आध्यात्मिक उन्नति होती है।
- भीष्म द्वादशी - भीष्म द्वादशी भगवान भीष्म के पुण्य स्मरण का दिन है। यह दिन खासकर पितृ देवताओं की पूजा और व्रत के लिए महत्वपूर्ण माना जाता है। इस दिन उपवास, धर्मकर्म और दान करने से पितृ प्रसन्न होते हैं और जीवन में लंबी आयु, स्वास्थ्य और आध्यात्मिक लाभ मिलता है।
30 जनवरी 2026 (शुक्रवार): शुक्र प्रदोष व्रत
शुक्र प्रदोष व्रत- शुक्र प्रदोष व्रत शुक्रवार को पड़ने वाला विशेष व्रत है, जो भगवान शिव को समर्पित होता है। इस दिन भक्त शाम के प्रदोष काल में शिवलिंग का अभिषेक, पूजा और मंत्र जाप करते हैं। इसे करने से वैवाहिक सुख, पारिवारिक कल्याण, मानसिक शांति और आर्थिक समृद्धि प्राप्त होती है। विशेष रूप से विवाहित महिलाएँ इस व्रत को अपने पति के लंबी आयु और कल्याण के लिए करती हैं।