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December 2025 Vrat Tyohar (दिसंबर 2025 व्रत-त्योहार)

December 2025 Vrat Tyohar (दिसंबर 2025 व्रत-त्योहार)

Vrat Tyohar December 2025: गीता जयंती, सफला एकादशी से लेकर पौष पुत्रदा एकादशी, दिसंबर में पड़ने वाले व्रत-त्योहार

दिसंबर 2025 में व्रतों और त्योहारों की एक समृद्ध श्रृंखला देखने को मिलेगी, जिनमें गीता जयंती, सफला एकादशी और पौष पुत्रदा एकादशी जैसे पर्व शामिल हैं। ये अवसर न केवल धार्मिक विश्वासों को बल देते हैं, बल्कि परिवार और समाज के बीच संबंधों को भी प्रगाढ़ बनाते हैं। आइए, दिसंबर 2025 में आने वाले प्रमुख व्रत और त्योहारों पर एक विस्तृत दृष्टि डालते हैं।

दिसंबर 2025 व्रत-त्योहार कैलेंडर लिस्ट यहां देखें

  • 1 दिसंबर (सोमवार): गीता जयंती, गुरुवायुर एकादशी, मोक्षदा एकादशी
  1. गीता जयंती – मार्गशीर्ष शुक्ल एकादशी को भगवान श्रीकृष्ण द्वारा कुरुक्षेत्र में अर्जुन को दिए गए गीता उपदेश की स्मृति में यह पावन दिवस मनाया जाता है। इस दिन श्रीकृष्ण की विशेष पूजा और गीता पाठ का बड़ा महत्व है।
  2. मोक्षदा एकादशी – मार्गशीर्ष शुक्ल एकादशी को मनाई जाने वाली यह एकादशी मोक्ष प्रदान करने वाली मानी गई है। व्रत व पूजा से पापों का क्षय होता है और पितरों की मुक्ति का भी विशेष फल प्राप्त होता है।
  3. गुरुवायुर एकादशी – केरल के गुरुवायुर मंदिर में मनाया जाने वाला यह पर्व वृश्चिक मास की शुक्ल एकादशी को आता है। इस दिन भगवान गुरुवायुरप्पन की विशेष पूजा से मनोकामनाओं की पूर्ति और पापों का शमन होता है।

  • 2 दिसंबर (मंगलवार): मोक्षदा एकादशी पारण, मत्स्य द्वादशी, भौम प्रदोष व्रत
  1. मत्स्य द्वादशी – मार्गशीर्ष शुक्ल द्वादशी को मनाया जाने वाला यह व्रत भगवान विष्णु के मत्स्य अवतार को समर्पित है। इसे केशव द्वादशी भी कहा जाता है, और इस दिन की गई पूजा से अनेक गुना फल तथा पापों से मुक्ति का आशीर्वाद मिलता है।
  2. भौम प्रदोष व्रत – मंगलवार को आने वाला प्रदोष व्रत भौम प्रदोष कहलाता है, जो शिव और मंगल देव की कृपा पाने के लिए अत्यंत शुभ माना जाता है। यह व्रत ऋण मुक्ति, साहस-वृद्धि और भूमि-भवन संबंधी कार्यों में सफलता दिलाने वाला माना गया है।

  • 4 दिसंबर (गुरुवार): दत्तात्रेय जयंती, अन्नपूर्णा जयंती, त्रिपुर भैरवी जयंती, कार्तिगाई दीपम्, मार्गशीर्ष पूर्णिमा
  1. अन्नपूर्णा जयंती - मार्गशीर्ष पूर्णिमा को मनाई जाने वाली यह जयंती माता अन्नपूर्णा को समर्पित है। वे अन्न और समृद्धि की देवी हैं। इस दिन अन्नदान का विशेष महत्व है और माना जाता है कि व्रत-पूजन से घर में धन-धान्य बढ़ता है और दरिद्रता दूर होती है।
  2. त्रिपुर भैरवी जयंती - मार्गशीर्ष शुक्ल पूर्णिमा को मनाया जाने वाला यह दिवस महाविद्याओं में पांचवीं देवी मां भैरवी को समर्पित है। वे महाकाली का उग्र रूप हैं। उनकी पूजा से भय, बाधाओं और नकारात्मक शक्तियों से रक्षा होती है तथा साहस व सफलता मिलती है।
  3. कार्तिगाई दीपम् - तमिलनाडु का प्रमुख दीपोत्सव, जो कार्तिकाई नक्षत्र पर मनाया जाता है। तिरुवन्नामलाई में पर्वत शिखर पर जलाया जाने वाला महादीप इसका मुख्य आकर्षण है। यह प्रकाश और शिवतत्व की आराधना का उत्सव है।
  4. मार्गशीर्ष पूर्णिमा - अत्यंत शुभ पूर्णिमा, जिसमें सत्यनारायण पूजा, स्नान-दान और चंद्र दर्शन का विशेष महत्व है। कई स्थानों पर इसी दिन दत्तात्रेय जयंती, अन्नपूर्णा जयंती और त्रिपुर भैरवी जयंती भी मनाई जाती हैं।

  • 5 दिसंबर (शुक्रवार): पौष प्रारम्भ
  1. पौष मास प्रारंभ – पौष मास हिंदू पंचांग का दसवां महीना है, जो दिसंबर में मार्गशीर्ष के बाद शुरू होता है और शीत मास के रूप में जाना जाता है। इसे श्राद्ध, पिंडदान और तीर्थस्नान के लिए अत्यंत शुभ माना जाता है, विशेषकर पौष पूर्णिमा पर त्रिवेणी संगम स्नान से मोक्ष की मान्यता है। यह मास शाकंभरी पूर्णिमा के साथ समाप्त होता है, जब देवी शाकंभरी की पूजा फल-फूल और साग-सब्जियों से की जाती है।

  • 7 दिसंबर (रविवार) : अखुरथ संकष्टी
  1. अखुरथ संकष्टी – अखुरथ संकष्टी मार्गशीर्ष (पौष) कृष्ण चतुर्थी को मनाई जाती है और इसमें मूषक-रथ वाले अखुरथा रूप के गणेशजी की पूजा होती है। माना जाता है कि इस व्रत के प्रभाव से रावण बंधनमुक्त हुआ था और युधिष्ठिर ने अपना राज्य वापस पाया था।

  • 11 दिसंबर (गुरुवार) : कालाष्टमी, मासिक कृष्ण जन्माष्टमी
  1. कालाष्टमी – कालाष्टमी हर माह कृष्ण पक्ष की अष्टमी को मनाई जाती है और इस दिन भगवान कालभैरव की विशेष पूजा होती है। माना जाता है कि इसी तिथि को भगवान शिव ने कालभैरव रूप में अवतार लिया था, इसलिए इसे भैरव अष्टमी भी कहा जाता है।
  2. मासिक कृष्ण जन्माष्टमी – हर महीने कृष्ण पक्ष की अष्टमी को मासिक कृष्ण जन्माष्टमी व्रत रखा जाता है, जो वार्षिक जन्माष्टमी से अलग है। इस व्रत से श्रीकृष्ण की कृपा, मन-शुद्धि और जीवन की बाधाओं से मुक्ति प्राप्त होने की मान्यता है।

  • 15 दिसंबर (सोमवार) : सफला एकादशी

  1. सफला एकादशी – पौष माह में आने वाली सफला एकादशी जीवन में सफलता, सौभाग्य और उन्नति देने वाली मानी जाती है। इस दिन व्रत और पूजा करने से मनोकामनाएं पूरी होती हैं और सकारात्मक ऊर्जा तथा शुभ फल प्राप्त होते हैं।

  • 16 दिसंबर (मंगलवार) : कृष्ण मत्स्य द्वादशी, धनु संक्रांति
  1. कृष्ण मत्स्य द्वादशी - मार्गशीर्ष शुक्ल द्वादशी के लगभग पंद्रह दिन बाद आने वाली कृष्ण पक्ष द्वादशी को कृष्ण मत्स्य द्वादशी कहा जाता है, जो विष्णु के मत्स्य अवतार को समर्पित है। इस दिन मत्स्य रूप की पूजा करने से अनेक यज्ञों के बराबर पुण्य मिलता है और सम्प्राप्ति द्वादशी व्रत से दुर्लभ मनोकामनाएं सिद्ध होने की मान्यता है।
  2. धनु संक्रांति - सूर्य के धनु राशि में प्रवेश करने पर धनु संक्रांति मनाई जाती है, जिसे सूर्य देव के मासिक संक्रमण का शुभ समय माना गया है। इस दिन पवित्र नदियों में स्नान और दान-पुण्य करने से विशेष पुण्य तथा शुभ फल प्राप्त होते हैं।

  • 17 दिसंबर (बुधवार) : बुध प्रदोष व्रत
  1. बुध प्रदोष व्रत - जब त्रयोदशी तिथि प्रदोष काल में बुधवार को आती है, तब बुध प्रदोष व्रत रखा जाता है, जो शिव उपासना का श्रेष्ठ समय माना जाता है। यह व्रत बुध ग्रह से जुड़ी बुद्धि, वाणी, व्यापार और मेधा बढ़ाने वाला माना जाता है, इसलिए विद्यार्थियों और व्यापारियों के लिए विशेष शुभ है।

  • 18 दिसंबर (गुरुवार) : मासिक शिवरात्रि
  1. मासिक शिवरात्रि – मासिक शिवरात्रि हर महीने कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी को मनाई जाती है और शिवलिंग की रात्रिकालीन पूजा से शुभ फल मिलता है। इस व्रत से बाधाएं दूर होती हैं, विवाह-सौभाग्य बढ़ता है और भगवान शिव की विशेष कृपा प्राप्त होती है।

  • 19 दिसंबर (शुक्रवार): दर्श अमावस्या
  1. दर्श अमावस्या – दर्श अमावस्या पितरों को समर्पित तिथि है, जिसमें रात के समय किए गए उपायों से नकारात्मकता दूर होती है। इस दिन पितरों के आशीर्वाद से बाधाएँ कम होती हैं और जीवन में सकारात्मकता व समृद्धि आती है।

  • 24 दिसंबर (बुधवार): विघ्नेश्वर चतुर्थी

  1. विघ्नेश्वर चतुर्थी – पौष शुक्ल चतुर्थी को विघ्नेश्वर चतुर्थी मनाई जाती है, जिसमें मध्याह्न काल में श्रीगणेश की विशेष पूजा की जाती है। इस व्रत से विघ्नों का नाश, मनोकामनाओं की पूर्ति और धन-समृद्धि प्राप्त होने की मान्यता है।

  • 25 दिसंबर (गुरुवार) : स्कन्द षष्ठी
  1. स्कन्द षष्ठी – स्कन्द षष्ठी शुक्ल पक्ष की षष्ठी को भगवान स्कन्द (मुरुगन/कार्तिकेय) की पूजा के रूप में मनाई जाती है। कार्तिक शुक्ल षष्ठी सबसे प्रमुख मानी जाती है, जिसमें भक्त छह दिवसीय उपवास रखते हैं जो सूरसम्हारम् पर पूर्ण होता है।

  • 27 दिसंबर (शनिवार): गुरु गोविंद सिंह जयंती, मण्डला पूजा
  1. गुरु गोविंद सिंह जयंती – गुरु गोविंद सिंह जी की जयंती पौष शुक्ल सप्तमी को उनके जन्मदिवस के रूप में मनाई जाती है। आज भी यह पर्व मुख्य रूप से हिन्दू पंचांग के अनुसार ही मनाया जाता है, जैसे गुरु नानक जयंती कार्तिक पूर्णिमा को।
  2. मण्डला पूजा – सबरीमाला में मंडला पूजा धनु मास के 11–12वें दिन होती है, जो भक्तों की 41-दिवसीय तपस्या का अंतिम दिन है। यह अय्यप्पा मंदिर का प्रमुख उत्सव है, जो मकर विलक्कु तक चलता है और बड़ी संख्या में भक्त शामिल होते हैं।

  • 28 दिसंबर (रविवार): शाकम्भरी उत्सव आरम्भ, मासिक दुर्गाष्टमी
  1. शाकम्भरी उत्सव – शाकंभरी नवरात्रि पौष शुक्ल अष्टमी से पूर्णिमा तक आठ दिनों तक मनाई जाती है। देवी शाकम्भरी को फल-सब्जियों की देवी मानकर पूजा की जाती है, जिन्होंने धरती को अकाल से बचाया था।
  2. मासिक दुर्गाष्टमी – हर शुक्ल अष्टमी को मासिक दुर्गाष्टमी का व्रत रखकर माता दुर्गा की आराधना की जाती है। इस व्रत से शक्ति, सुख-शांति और देवी कृपा की प्राप्ति होती है।

  • 30 दिसंबर (मंगलवार): तैलंग स्वामी जयंती, पौष पुत्रदा एकादशी, धर्म सावर्णि मन्वादि
  1. तैलंग स्वामी जयंती – पौष शुक्ल एकादशी को तैलंग स्वामी जयंती मनाई जाती है, जिन्हें शिव का अवतार माना जाता है। लगभग 280 वर्ष तक जीवित रहे इस महान योगी की जयंती पौष पुत्रदा एकादशी के दिन ही पड़ती है।
  2. पौष पुत्रदा एकादशी – पौष पुत्रदा एकादशी भगवान विष्णु को समर्पित है और संतान प्राप्ति व परिवार की समृद्धि के लिए मनाई जाती है। इस दिन व्रत व पूजा करने से मनोकामनाएँ पूर्ण होने और जीवन में शांति बने रहने की मान्यता है।

  • 31 दिसंबर (बुधवार): कूर्म द्वादशी, मासिक कार्तिगाई, वैकुण्ठ एकादशी, गौण पौष पुत्रदा एकादशी, वैष्णव पौष पुत्रदा एकादशी
  1. कूर्म द्वादशी – पौष शुक्ल द्वादशी को भगवान विष्णु के कूर्म अवतार की पूजा की जाती है। इसी दिन से गोविन्द द्वादशी व्रत की शुरुआत होती है, जिसे नारायण द्वादशी भी कहा जाता है।
  2. मासिक कार्तिगाई – मासिक कार्तिगाई में शाम के समय शिव पूजा के तहत दीप जलाए जाते हैं, जो कृत्तिका नक्षत्र से जुड़ा पर्व है। हर महीने मनाए जाने के बावजूद कार्तिक माह का कार्तिगाई दीपम् सबसे प्रमुख माना जाता है।

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