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भाई दूज 2026 में कब है ?

भाई दूज 2026 में कब है ?

Bhai Dooj 2026 : दिवाली के दो दिन बाद मनाई जाती है भाई दूज, जानिए तिलक का सही समय और नियम

भाई दूज, जिसे भैया दूज, भाई टीका, यम द्वितीया और भ्रात द्वितीया भी कहा जाता है, दीपावली के दो दिन बाद कार्तिक शुक्ल द्वितीया को मनाया जाता है। इस पर्व पर बहनें अपने भाइयों की लंबी आयु, सुख और समृद्धि के लिए तिलक करती हैं और भाई अपनी बहनों को उपहार देकर स्नेह प्रकट करते हैं। 2026 में द्वितीया तिथि 10 नवंबर दोपहर 02:00 पर शुरू होकर 11 नवंबर दोपहर 03:53 पर समाप्त होगी। शास्त्रों के अनुसार अपराह्न में तिलक करना श्रेष्ठ माना गया है, इसलिए इस वर्ष 01:10 पी एम से 03:20 पी एम का समय विशेष शुभ है। यह पर्व केवल पारिवारिक प्रेम ही नहीं बल्कि यम और यमुना की पौराणिक परंपरा से जुड़ा एक पवित्र व्रत भी है।

भाई दूज 2026 की तिथि

भाई दूज का पर्व तभी मनाया जाता है जब कार्तिक शुक्ल द्वितीया तिथि अपराह्न के समय विद्यमान हो। 2026 में द्वितीया तिथि 11 नवंबर की दोपहर तक उपस्थित है, इसलिए इसी दिन भाई दूज का उत्सव मान्य है। यदि क्रमागत दो दिनों में द्वितीया तिथि अपराह्न में लग जाए तो दूसरा दिन मान्य माना जाता है, परंतु इस वर्ष ऐसी स्थिति नहीं है। शास्त्रों में यह भी कहा गया है कि यदि दोनों दिनों में अपराह्न में द्वितीया न हो तो भी पर्व अगले दिन ही किया जाता है। इस वर्ष गणना सरल है और सभी मतों के अनुसार भाई दूज बुधवार 11 नवंबर को ही मनाया जाएगा। यही दिन तिलक, यम पूजा और यमुना स्नान के लिए पूर्णतया शुभ माना गया है।

भाई दूज की पूजा विधि और परंपराएं

भाई दूज का मुख्य अनुष्ठान बहन द्वारा भाई के तिलक से प्रारंभ होता है। सुबह स्नान कर बहनें व्रत का संकल्प लेती हैं और तिलक थाली को कुमकुम, चंदन, रोली, चावल, पान, सुपारी, बताशे, मिठाई और दीपक से सजाती हैं। शुभ मुहूर्त में भाई को चावल की चौकी पर बैठाकर उसके माथे पर तिलक किया जाता है, आरती उतारी जाती है और मिठाई खिलाई जाती है। इसके बाद भाई बहन को वस्त्र, धन या उपहार देता है और सदैव रक्षा का वचन देता है। कई परिवारों में इस दिन बहन द्वारा भाई को भोजन कराने की परंपरा भी है। दोपहर के बाद यम देव का पूजन करना अत्यंत शुभ माना गया है क्योंकि इस दिन यम यमुना मिलन की स्मृति जुड़ी है।

यम यमुना की पौराणिक कथा

भाई दूज को यम द्वितीया कहा जाता है क्योंकि इस दिन सूर्यपुत्र यम अपनी बहन यमुना के घर पधारे थे। यमुना ने भाई को तिलक किया, भोजन कराया और उनकी दीर्घायु की कामना की। प्रसन्न होकर यमराज ने वर देते हुए कहा कि इस दिन जो बहन अपने भाई को तिलक करेगी उसका भाई यम के भय से मुक्त रहेगा और दीर्घायु प्राप्त करेगा। इसी के बाद इस पर्व की परंपरा प्रारंभ हुई। इसलिए इस दिन यमुना स्नान का विशेष महत्व है। मान्यता है कि भाई बहन यदि इस दिन यमुना में स्नान करें तो उन्हें पापों से मुक्ति और आयु वृद्धि का पुण्य प्राप्त होता है। यह पर्व पारिवारिक स्नेह के साथ साथ धार्मिक और आध्यात्मिक महत्व भी समेटे हुए है।

कृष्ण और सुभद्रा की कथा

एक अन्य मान्यता के अनुसार भाई दूज के दिन भगवान श्रीकृष्ण नरकासुर का वध कर विजय प्राप्त करके द्वारिका लौटे थे। उनकी बहन सुभद्रा ने दीपों, पुष्पों और मिठाइयों से उनका स्वागत किया और मस्तक पर तिलक कर उनके कल्याण की कामना की। इस प्रसंग में भी भाई बहन के शाश्वत स्नेह और मंगलकामना का संदेश मिलता है। सुभद्रा द्वारा अपने भाई कृष्ण को किए गए तिलक की परंपरा आज भी जीवित है। इस कथा के कारण कई क्षेत्रों में भैया दूज को अन्नकूट और विजय पर्व से भी जोड़ा जाता है। यह उत्सव याद दिलाता है कि भाई बहन का संबंध केवल जन्मजात नहीं बल्कि प्रेम, आदर और संरक्षण की परंपरा पर आधारित है।

विभिन्न क्षेत्रों में भाई दूज की परंपराएं

भारत के हर क्षेत्र में भाई दूज को प्रेमपूर्ण उत्साह से मनाया जाता है, परंतु परंपराओं में कुछ विशेष विविधताएं दिखाई देती हैं। बंगाल में इसे भाई फोटा कहा जाता है जहां बहनें व्रत रखकर भाई का तिलक करती हैं। महाराष्ट्र और गोवा में यह पर्व भाऊ बीज के रूप में लोकप्रिय है। उत्तर प्रदेश में बहनें भाई को शक्कर के बताशे और आब देती हैं जो शुभता का प्रतीक है। बिहार में एक अनोखी रस्म है जिसमें बहनें पहले भाई को प्रतीकात्मक रूप से उलाहना देती हैं और फिर तिलक कर मिठाई खिलाती हैं। नेपाल में यह पर्व भाई टीका या भाई तिहार कहलाता है जहां सात रंगों से बना तिलक विशेष रूप से लगाया जाता है। इन विविध परंपराओं में एक ही भावना है, भाई बहन का पवित्र प्रेम।

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