दिवाली या दीपावली का पर्व कार्तिक अमावस्या को मनाया जाता है और यह भारत ही नहीं, बल्कि दुनिया के कई देशों में बसे हिंदू, जैन, सिख और बौद्ध समुदाय के लिए अत्यंत पावन अवसर है। धनतेरस से भाई दूज तक चलने वाला यह पांच दिवसीय त्योहार अंधकार पर प्रकाश, नकारात्मकता पर सकारात्मकता और दुख पर सुख की विजय का प्रतीक माना जाता है। 2026 में दिवाली रविवार, 8 नवंबर को पड़ेगी। इस दिन प्रदोष और महानिशीथ दोनों काल में विशेष मुहूर्त बन रहे हैं। प्रदोष काल में स्थिर लग्न का उदय होने से लक्ष्मी पूजन अत्यंत फलदायी रहेगा। आइए जानते हैं इस वर्ष दिवाली की तिथि, शुभ मुहूर्त, पूजा विधि और पौराणिक मान्यताएं।
दिवाली 2026 रविवार, 8 नवंबर को मनाई जाएगी। इस दिन अमावस्या तिथि प्रदोष काल का स्पर्श कर रही है, इसलिए महालक्ष्मी पूजन का यही दिन निर्धारित है। प्रदोष काल 17:31:29 से 20:08:54 तक रहेगा, जबकि लक्ष्मी पूजन का श्रेष्ठ वृषभ लग्न मुहूर्त 17:55:48 से 19:51:42 तक है। इसके अलावा महानिशीथ काल का शुभ समय 23:38:49 से 24:31:17 तक उपलब्ध होगा, जो विशेष रूप से तांत्रिक एवं साधना संबंधी उपासना के लिए मान्य है। रात में सिंह काल 24:27:25 से 26:45:04 तक रहेगा। दिवाली के दिन प्रातःकाल, अपराह्न और रात्रि में भी शुभ चौघड़िया मुहूर्त बन रहे हैं, जिनमें खरीदारी और आवश्यक कार्य किए जा सकते हैं।
धर्मशास्त्रों के अनुसार दीपावली हमेशा कार्तिक मास की अमावस्या को प्रदोष काल के समय मनाई जाती है। यदि अमावस्या दो दिनों तक रहे और किसी दिन भी प्रदोष काल का स्पर्श न करे, तो दूसरे दिन दिवाली मनाने का विधान अधिक मान्य माना गया है। एक मत यह भी बताता है कि प्रदोष में स्पर्श न होने पर पहले दिन दीपावली मनाई जा सकती है। वहीं, यदि दुर्लभ स्थिति में अमावस्या तिथि का विलोपन हो जाए और चतुर्दशी के बाद प्रतिपदा आरम्भ हो जाए, तो चतुर्दशी को ही दीपावली का पूजन किया जाता है। पर्व निर्धारण का यह निर्णय सूर्यास्त, प्रदोष और स्थिर लग्न को ध्यान में रखकर पंडितगण करते हैं।
दिवाली की शाम घर को प्रकाशवान करने, वातावरण को पवित्र रखने और देवताओं के स्वागत हेतु की गई पूजा अत्यंत फलदायी मानी जाती है। सबसे पहले घर की संपूर्ण साफ-सफाई करके गंगाजल का छींटा लगाएं। पूजन स्थल पर चौकी बिछाकर उस पर लक्ष्मी और गणेश जी की प्रतिमा स्थापित करें। जल से भरा कलश रखें और दीप प्रज्वलित करें। तिलक, चावल, धूप, फल, हल्दी, अबीर और पुष्प अर्पित करें। इसके साथ सरस्वती, काली, विष्णु और कुबेर देव की भी आराधना करें। परिवार के सभी सदस्य पूजन में सम्मिलित हों। पूजा के पश्चात तिजोरी, दुकान या बहीखातों की भी विशेष पूजा की जाती है। श्रद्धा अनुसार जरूरतमंदों को दान देने से पुण्य फल बढ़ता है।
दिवाली से कई पुराणकालीन घटनाएं जुड़ी हैं। सबसे प्रसिद्ध कथा के अनुसार भगवान श्रीराम चौदह वर्ष के वनवास और रावण वध के बाद इसी दिन अयोध्या लौटे थे। उनके स्वागत में पूरी अयोध्या दीपों से सजा दी गई थी। दूसरी कथा कृष्ण द्वारा नरकासुर वध से जुड़ी है। चतुर्दशी को नरकासुर का वध हुआ और अगले दिन अमावस्या को दीप जलाकर विजय का उत्सव मनाया गया। इसी प्रकार इस दिन समुद्र मंथन से लक्ष्मी जी के प्रकट होने, भगवान विष्णु द्वारा राजा बलि को पाताल शासन सौंपने जैसी मान्यताएं भी प्रचलित हैं। इन सभी घटनाओं ने दीपावली को वैदिक, पौराणिक और आध्यात्मिक दृष्टि से अत्यंत महत्वपूर्ण बना दिया है।
ज्योतिष शास्त्र में दिवाली का पर्व अत्यंत शुभ माना जाता है। दीपावली के आसपास सूर्य और चंद्रमा दोनों तुला राशि में स्वाति नक्षत्र के प्रभाव में रहते हैं। तुला राशि का स्वभाव संतुलन, न्याय और सौहार्द का प्रतीक है। इसके स्वामी शुक्र सौंदर्य, समृद्धि और शुभ फल प्रदान करने वाले माने गए हैं। इस स्थिति में सूर्य और चंद्रमा का तुला में होना व्यापार, धन-संपत्ति, नए कार्यों की शुरुआत और गृह-उपयोगी खरीदारी के लिए शुभ संकेत देता है। इसी कारण दीपावली को पूरे वर्ष का सबसे बड़ा शुभ काल माना जाता है और माता लक्ष्मी की आराधना मनोकामनाएं पूर्ण करने वाली मानी जाती है।