अहोई अष्टमी उत्तर भारत का एक अत्यंत महत्वपूर्ण व्रत है जिसे माताएं अपनी संतान की दीर्घायु, उन्नति और रक्षा के लिए करती हैं। यह पर्व करवा चौथ के चार दिन बाद तथा दीपावली से आठ दिन पूर्व कार्तिक कृष्ण अष्टमी को आता है। 2026 में यह व्रत रविवार एक नवम्बर को होगा। इस दिन अष्टमी तिथि दोपहर 02 बजकर 51 मिनट पर प्रारंभ होकर अगले दिन 01 बजकर 10 मिनट तक रहेगी। परंपरा के अनुसार व्रत उषाकाल से गोधूलि बेला तक रखा जाता है और संध्या में तारों के दर्शन के बाद पारण किया जाता है। संतान प्राप्ति की इच्छा रखने वाले दंपत्तियों के लिए भी यह दिन अत्यंत शुभ माना गया है और विशेष रूप से राधा कुंड स्नान का महत्व बताया गया है।
अहोई अष्टमी 2026 रविवार के दिन पड़ेगी और इस वर्ष पूजा का संध्या मुहूर्त 05 बजकर 36 मिनट से 06 बजकर 54 मिनट तक है। तारों के उदय का सामान्य समय लगभग 06 बजे माना गया है। जिन घरों में चंद्र दर्शन की परंपरा है उनके लिए चंद्र उदय 11 बजकर 35 मिनट पर होगा, पर अधिकांश स्थानों पर तारा दर्शन के बाद ही व्रत पूरा किया जाता है क्योंकि चंद्रमा देर रात उदित होता है। यह व्रत अष्टमी तिथि में ही किया जाता है और इस बार अष्टमी तिथि एक नवम्बर की दोपहर से अगले दिन दोपहर तक बनी हुई है, इसलिए व्रत और पूजा दोनों रविवार को ही मान्य हैं।
अहोई अष्टमी को देवी अहोई का पावन पर्व माना गया है जो माता पार्वती का ही एक रूप हैं और समस्त जीवों की संतानों की रक्षक कही जाती हैं। इस दिन माताएं अपनी संतान के सुख और सुरक्षा के लिए निर्जला व्रत रखती हैं। व्रत संध्या में तारा दर्शन के बाद पूर्ण होता है। पुराणों के अनुसार अहोई माता उन माताओं को विशेष कृपा प्रदान करती हैं जो पूर्ण श्रद्धा के साथ सेही की छवि बनाकर कथा सुनती हैं और अपने द्वारा किए किसी भी पाप का प्रायश्चित करती हैं। यह व्रत न केवल जन्मी हुई संतानों की रक्षा करता है बल्कि ऐसे दंपत्तियों के लिए भी फलदायी बताया गया है जिन्हें संतान प्राप्ति में कठिनाई हो रही हो।
अहोई अष्टमी के दिन मथुरा स्थित राधा कुंड में स्नान करने का अत्यंत खास महत्व बताया गया है। मान्यता है कि इस दिन अरुणोदय से पूर्व राधा कुंड में डुबकी लगाने से संतानहीन दंपत्ति को संतान सुख प्राप्त होता है। इस स्नान को कृष्णाष्टमी स्नान भी कहा गया है और यह परंपरा हजारों भक्तों की आस्था से जुड़ी है। दंपत्ति इस पवित्र अवसर पर राधा कुंड में स्नान कर देवी अहोई और राधा कृष्ण से संतान प्राप्ति का आशीर्वाद मांगते हैं। साथ ही कुष्मांड अर्पण किया जाता है जो इस अनुष्ठान का आवश्यक भाग माना गया है। कई क्षेत्रों में यह मान्यता अत्यंत प्रचलित है कि अहोई अष्टमी का यह विशेष स्नान मनोकामना पूर्ण करने वाला होता है।
अहोई अष्टमी की कथा एक माता और उसके सात पुत्रों से जुड़ी है। कथा के अनुसार दीपावली से पूर्व मिट्टी लाने गई एक महिला से अनजाने में सेही के बच्चों की मृत्यु हो गई। दुखी सेही ने श्राप दिया कि उसकी संतानों की तरह ही उस महिला के भी पुत्रों का नाश होगा। श्राप के प्रभाव से उसके सातों पुत्र खो गए। एक वृद्धा के सुझाव पर महिला ने अष्टमी के दिन सेही के चित्र के साथ अहोई माता की पूजा आरंभ की और सच्चे पश्चाताप से देवी प्रसन्न हुईं। देवी ने पुत्रों की रक्षा का आशीष दिया और उसके सभी पुत्र सुरक्षित लौट आए। इसी घटना से अहोई अष्टमी व्रत की परंपरा स्थापित हुई।
पूजा की तैयारी संध्या से पहले कर ली जाती है। दीवार पर अष्टकोण युक्त अहोई माता की छवि और उसके समीप सेही के साथ उसके बच्चों की आकृति बनाना आवश्यक माना गया है। पूजन स्थान को गंगा जल से शुद्ध कर अल्पना बनाई जाती है और गेहूं बिछाकर उस पर कलश और करवा स्थापित किए जाते हैं। करवा में जल भरकर ढक्कन लगा दिया जाता है और उसकी नाल को घास या कपास की सात सींक से बंद किया जाता है। पूजा में आठ पूड़ी, आठ पुआ और हलवा विशेष रूप से बनाए जाते हैं जिन्हें बाद में घर की किसी वृद्ध महिला को दिया जाता है। सन्ध्या के समय सभी महिलाएं कथा सुनती हैं और अहोई माता की आरती उतारती हैं। हलवा और सींक सेही को अर्पित की जाती हैं जो कथा का प्रमुख प्रतीक है।