द्वारका धाम (Dwarka Dham)

हिंदू धर्म में चार धामों के दर्शन करने का खास महत्व बताया गया है। धर्मग्रंथों के अनुसार इन चार धाम के दर्शन करने से मनुष्य के हर तरह के पाप खत्म हो जाते हैं और सकारात्मक ऊर्जा में बढो़त्तरी होती है। चार धामों में तीसरे धाम के तौर पर भगवान श्रीकृष्ण की नगरी द्वारकाधाम को जाना जाता है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार द्वापर युग में श्रीकृष्ण ने ही एक रहस्यमयी नगरी के रूप में द्वारका को बसाया था और यहीं भगवान श्री कृष्ण निवास भी करते थे। द्वारका चार धामों में से एक धाम होने के साथ ही सात पुरियों में एक पुरी भी है, इसलिए इसका एक नाम द्वारका पुरी भी है। भगवान श्रीकृष्ण की इस द्वारका नगरी के अंदर कई रहस्य समाए हुए हैं। यह पवित्र स्थान भगवान श्रीकृष्ण की कर्मभूमि है।

 

द्वारका भारत के ओखामंडल प्रायद्वीप के पश्चिमी तट पर गुजरात राज्य में स्थित है। कई द्वारों का शहर होने के कारण इसका नाम द्वारका पड़ा। इस शहर के चारों ओर बहुत लंबी दीवार थीं जो द्वारका की रक्षा के लिए बनाई गईं थीं। जानकार बताते हैं कि ये नगरी आज भी ज्यों की त्यों समुद्र की अंदर देखी जा सकती है। ये पवित्र जहां स्थित है वहां  गोमती नदी अरब सागर में विलीन होती है। हालांकि, कुछ लोग गोमती को गंगा की सहायक नदी भी बताते हैं।

तो चलिए जानते हैं भारत के सात सबसे प्राचीन शहरों में से एक मानी जाने वाली द्वारका की चमत्कारों और इसकी उत्तपति से जुड़ी कुछ कथाओं को। साथ ही जानेंगे इस नगरी के रहस्य और समुद्र में समाने की कथा को भी…


कैसे हुई द्वारका धाम की उत्पत्ति? 

महर्षि वेदव्यास द्वारा लिखी गई पवित्र श्रीमद्भागवतम् के अनुसार, द्वारका की स्थापना भगवान कृष्ण ने की थी। दरअसल, जब कृष्ण ने राजा कंस का वध कर दिया तो कंस के ससुर मगधपति जरासंध ने कृष्ण और यादवों का नामो निशान मिटा देने की ठान ली। वह अपने मलेच्छ और यवनी राजा मित्रों की सहायता से मथुरा और यादवों पर बार-बार आक्रमण करने लगा। आक्रमणों से परेशान होकर भगवान श्री कृष्ण ने अपने वंश की रक्षा के लिए मथुरा को छोड़ने का निर्णय लिया। विनता के पुत्र गरूड़ की सलाह एवं ककुद्मी के आमंत्रण पर कृष्ण कुशस्थली आ गए। कुशस्थली द्वारका का ही प्राचीन नाम है। पौराणिक कथाओं के अनुसार महाराजा रैवतक के समुद्र में कुश बिछाकर यज्ञ करने के कारण इस नगरी का नाम कुशस्थली हुआ था। कृष्ण ने इसी उजाड़ हो चुकी नगरी को फिर से बसाया और अपने 18 नए कुल-बंधुओं के साथ यहां निवास करने लगे। कृष्ण की राजधानी होने की वजह से इस नगरी का विकास बहुत तेजी से होने लगा। यह शहर लगभग 900 महलों से सुसज्जित था और भारी किलाबंदी होने की वजह से इस नगरी पर आक्रमण करना बेहद मुश्किल था।


प्रसिद्ध ग्रंथ महाभारत में द्वारका के एक मार्मिक मोड़ का वर्णन मिलता है। जिसके अनुसार,  जिस दिन भगवान श्रीकृष्ण ने 125 साल बाद पृथ्वी छोड़ी,  द्वारका अरब सागर में समा गई, और यहीं से कलियुग की शुरुआत मानी जाती है। समुद्र ने भूमि पर कब्ज़ा कर लिया, शहर को जलमग्न कर दिया, लेकिन भगवान कृष्ण के महल को बचा लिया। द्वारिका के समुद्र में डूब जाने और यादव कुलों के नष्ट हो जाने के बाद कृष्ण के प्रपौत्र वज्र अथवा वज्रनाभ द्वारका के यदुवंश के अंतिम शासक थे, जो यदुओं की आपसी लड़ाई में जीवित बच गए थे। द्वारका के समुद्र में डूबने पर अर्जुन द्वारका गए और वज्र तथा शेष बची यादव महिलाओं को हस्तिनापुर ले गए। कृष्ण के प्रपौत्र वज्र को हस्तिनापुर में मथुरा का राजा घोषित किया। वज्रनाभ के नाम से ही मथुरा क्षेत्र को ब्रजमंडल कहा जाता है।


कई सालों तक द्वारका के अस्तित्व लोककथाओं तक ही सीमित रहा, लेकिन हाल ही में समुद्र के नीचे खोज में वैज्ञानिकों को द्वारका नगरी के होने के कई साक्ष्य मिले। जिनके फोटोज और वीडियोज भी समुद्र तल के नीचे लिए गए, इनके आधार पर वैज्ञानिक लगातार और भी कई सबूत खोजने की कोशिश कर रहे हैं। हाल ही में एक सेवा भी शुरू की गई है जिसमें आप सबमरीन में बैठकर समुद्र में डूबी हुई प्राचीन द्वारका नगरी को देख सकते हैं।  


द्वारकाधीश मंदिर की स्थापना

द्वारका आने वाले पर्यटकों के लिए मुख्य आकर्षण द्वारकाधीश मंदिर है। मंदिर की स्थापना को लेकर माना जाता है कि 2500 साल पहले भगवान कृष्ण के परपोते वज्रनाभ ने इसकी स्थापना की थी। प्राचीन मंदिर का कई बार जीर्णोद्धार किया गया है, विशेष रूप से 16वीं और 19वीं शताब्दियों में इस मंदिर में कई परिवर्तन किए गए। मंदिर एक छोटी पहाड़ी पर स्थित है, जिस तक 50 से अधिक सीढ़ियों द्वारा पहुंचा जा सकता है, मंदिर की दीवारे नक्काशीदार हैं और गर्भगृह के अंदर भगवान श्रीकृष्ण की मूर्ति है। परिसर के आसपास अन्य छोटे मंदिर भी स्थित हैं। दीवारों पर जटिल रूप से पौराणिक पात्रों और किंवदंतियों को उकेरा गया है। प्रभावशाली 43 मीटर ऊंचे शिखर पर 52 गज कपड़े से बना एक झंडा है जो मंदिर के पीछे अरब सागर से आने वाली नरम हवा में लहराता है। मंदिर के आधार पर सुदामा सेतु नामक एक पुल है जो गोमती नदी के पार समुद्र तट की ओर ले जाता है।


कैसे नष्ट हुई द्वारिका नगरी? 

वैज्ञानिकों के अनुसार जब हिमयुग समाप्त हुआ तो बर्फ पिघलने लगी, जिससे समद्र का जलस्तर बढ़ा और उसमें देश-दुनिया के कई तटवर्ती शहर डूब गए। द्वारका भी उन शहरों में से एक थी। लेकिन इस बीच सवाल यह उठता है कि हिमयुग तो आज से 10 हजार वर्ष पूर्व समाप्त हुआ। भगवान कृष्ण ने तो नई द्वारका का निर्माण आज से 5 हजार 300 वर्ष पूर्व किया था, ऐसे में इसके हिमयुग के दौरान समुद्र में डूब जाने की थ्योरी आधी सच लगती है। लेकिन बहुत से पुराणकार और इतिहासकार मानते हैं कि द्वारका को कृष्ण के देहांत के बाद जान- बूझकर नष्ट किया गया था। यह वह दौर था, जब यादव लोग आपस में भयंकर लड़ रहे थे। इसके अलावा जरासंध और यवन लोग भी उनके घोर दुश्मन थे। ऐसे में द्वारका पर समुद्र के मार्ग से भी आक्रमण हुआ और आसमानी मार्ग से भी आक्रमण किया गया। अंतत: यादवों को उनके क्षेत्र को छोड़कर फिर से मथुरा और उसके आसपास शरण लेना पड़ी। हाल ही की खोज से यह सिद्ध करने का प्रयास किया गया कि यह वह दौर था जब धरती पर रहने वाले एलियंस का आसमानी एलियंस के साथ घोर युद्ध हुआ था, जिसके चलते यूएफओ ने उन सभी शहरों को निशाना बनाया, जहां पर देवता लोग रहते थे या जहां पर देवताओं के वंशज रहे हैं। हालांकि आपको बता दें कि द्वारका नगरी के नष्ट होने की कई किवंदतियां और पौराणिक मान्याएं हैं। इस आर्टिकल में बताई हुई सभी जानकारियां वैज्ञानिक आधार और किवंदतियों से ही ली गई हैं। 


द्वारका धाम में दर्शन और आरती का समय 

भगवान श्रीकृष्ण के इस पावन धाम के पट सुबह 6:30 बजे खोल दिए जाते हैं। इसके बाद सुबह साढ़े 6 बजे से 7 बजे तक मंगला आरती होती है। आरती के बाद आम भक्तों के दर्शन के लिए मंदिर खोल दिया जाता है। प्रात: 8 बजे से  9 बजे के बीच मंदिर बंद रहता हैं, इस दौरान भगवान की स्नान विधि और अभिषेक पूजा की जाती है। सुबह 9 बजे से 9:30 बजे के बीच भगवान का श्रृंगार किया जाता है। इस दौरान भक्तों को दर्शन की अनुमति रहती है। प्रात: 10:30 से 10:45 के बीच श्रृंगार आरती होती है। सायं की भव्य आरती 7:35 से 7:45 तक की जाती है। इसके बाद भगवान को शयन भोग लगाया जाता है और 8:30 बजे शयन आरती होती है। इसके बाद रात 9:30 बजे मंदिर बंद कर दिया जाता है। 



द्वारका धाम दर्शन करने और घूमने का सबसे अच्छा मौसम 

द्वारका के दर्शन करने के लिए सबसे श्रेष्ठ मौसम सर्दियों का माना जाता है। इस मौसम में आप मंदिर के अलावा आसपास के स्थानों को बहुत सुकून से घूम सकते हैं। द्वारका नगरी गुजरात में स्थित है और यहां को वातावरण सर्दियों यानी अक्टूबर से मार्च के बीच काफी खुशनुमा होता है। इन महीनों के दौरान वातावरण में ठंडक बनी रहती है, और मौसम भी सुहावना रहत है। जिससे घूमने में आसानी होती है। बता दें कि जन्माष्टमी के दौरान यहां भगवान द्वारकाधीश के दर्शन करने के लिए भक्तों की भारी भीड़ देखी जाती है। 



द्वारकाधीश धाम कैसे पहुंचे? 

राजधानी दिल्ली से द्वारका धाम की दूरी लगभग 1,424.0 किलोमीटर है। 


हवाई मार्ग से- यदि आप फ्लाइट से द्वारका पहुंचना चाहते हैं, तो आपको नजदीकी एयरपोर्ट जामनगर आना होगा। जो द्वारका से लगभग 137 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। जामनगर एयरपोर्ट नियमित उड़ानों से मुंबई से जुड़ा हुआ है। एयरपोर्ट पर उतरने के बाद आप आसानी से प्राइवेट टैक्सी लेकर मंदिर पहुंच सकते हैं। एयरपोर्ट के बाहर आपको बस भी मिल जाएगी।


रेल मार्ग से- यदि आप ट्रेन से द्वारका धाम के दर्शन करने का प्लान कर रहे हैं तो यहां से सबसे पास का रेलवे स्टेशन द्वारका रेलवे स्टेशन है, जो देश के विभिन्न हिस्सों से जुड़ा हुआ है। आप ट्रेन से यहां आसानी से आ सकते हैं। ट्रेन से उतरने के बाद अब आप यहां से ऑटो या कैब लेकर मंदिर जा सकते हैं। रेलवे स्टेशन से मंदिर की दूरी 3 किलोमीटर है।


सड़क मार्ग से- यदि आप सड़क मार्ग से  द्वारका आने का प्लान कर रहे हैं तो आप अपनी खुद की कार, प्राइवेट टैक्सी या बस से यहां आसानी से आ पाएंगे। वहीं जामनगर और अहमदाबाद से द्वारका के लिए डायरेक्ट बसें उपलब्ध हैं। द्वारका बस स्टैंड से द्वारका धाम मंदिर की दूरी 1.3 km है। 


द्वारकाधीश धाम के पास इन Hotels और धर्मशालाओं में कर सकते हैं स्टे 

द्वारकाधीश धाम में आपको कई बजट फ्रेंडली होटल्स और धर्मशालाएं मिल जाएंगी। हम आपको मंदिर से इनकी दूरी भी नीचे बता रहे हैं ताकी आपको स्टे करने की जगह ढूंढने में आसानी हो। 


Dwarka-Gayatri Shantivan (1km)

Dwarka-Balaji Bhavan (750m) 

Dwarka-Bangur Bhavan (1.1km)

Dwarka- Maharaja Agrasen Bhawan (500m) 


इसके अलावा यहां कुछ लग्जरी होटल्स भी हैं:

The Sky Comfort Hotel 

Hotel Holliston 

Hotel Shreedhara 

Lemon Tree Premier 

VITS Devbhumi 

Damji Hotel

Devbhoomi Residency 



द्वारका धाम के अलावा आप आसपास की इन जगहों को भी एक्सप्लोर कर सकते हैं 

द्वारका धाम में भगवान द्वारकाधीश के अलावा भगवान शिव भी नागेश्वर ज्योतिर्लिंग के रूप में विराजमान है। जिसके चलते इस जगह का धार्मिक महत्व और भी बढ़ जाता है। इन पवित्र मंदिरों के दर्शन करने के अलावा भी यहां कई और जगहें हैं जहां आप आसानी से पहुंच सकते हैं, और अपनी ट्रीप को और भी एडंवेचरस बना सकते हैं। इसके लिए आपको एक टैक्सी बुक करिए और नीचे दी गई इन जगहों की यात्रा पर निकल जाइये... 


नागेश्वर ज्योतिर्लिंग 

बेत द्वारका द्वीप

शिवराजपुर बीच

रुक्मिणी देवी मंदिर

सुदामा सेतु

श्री स्वामीनारायण मंदिर

नेक्सॉन बीच

गोमती घाट

गोपी सरोवर

प्रकाशस्तंभ

द्वारका बीच


डिसक्लेमर

'इस लेख में दी गई जानकारी/सामग्री/गणना की प्रामाणिकता या विश्वसनीयता की गारंटी नहीं है। सूचना के विभिन्न माध्यमों/ज्योतिषियों/पंचांग/प्रवचनों/धार्मिक मान्यताओं/धर्मग्रंथों से संकलित करके यह सूचना आप तक प्रेषित की गई हैं। हमारा उद्देश्य सिर्फ सूचना पहुंचाना है, पाठक या उपयोगकर्ता इसे सिर्फ सूचना समझकर ही लें। इसके अतिरिक्त इसके किसी भी तरह से उपयोग की जिम्मेदारी स्वयं उपयोगकर्ता या पाठक की ही होगी।