गंगोत्री धाम की कथा और महिमा

Gangotri Mandir katha: गंगोत्री धाम यात्रा का शुभारंभ, जानिए कैसे राजा भगीरथ ने गंगा को धरती पर लाए, पढ़ें पौराणिक कथा


चार धाम यात्रा हर साल लाखों श्रद्धालुओं के लिए आध्यात्मिक शांति और पुण्य का मार्ग बनकर आती है। इस साल 30 अप्रैल से उत्तराखंड की चारधाम यात्रा का शुभारंभ हो रहा है, जिसमें सबसे पहले यमुनोत्री और गंगोत्री धाम के कपाट खोले जाएंगे। गंगोत्री धाम, उत्तरकाशी जिले में स्थित एक पवित्र तीर्थस्थान है, जो गंगा नदी के उद्गम स्थल के रूप में जाना जाता है।

गंगोत्री का धार्मिक महत्व

गंगोत्री हिमालय की गोद में, समुद्र तल से करीब 3,100 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है। यह वही स्थान है जहां से गंगा नदी की यात्रा शुरू होती है। भागीरथी नदी को ही गंगोत्री में गंगा के रूप में पूजा जाता है। यहां हर साल हजारों श्रद्धालु गंगा स्नान करने आते हैं, क्योंकि मान्यता है कि यहां स्नान करने से जीवन भर के पाप मिट जाते हैं और आत्मा को शांति मिलती है।

पौराणिक कथा

गंगोत्री से जुड़ी सबसे प्रसिद्ध कथा राजा भगीरथ की है। उनके पूर्वज राजा सगर के 60,000 पुत्र कपिल मुनि के श्राप से भस्म हो गए थे। उनकी आत्माओं की मुक्ति के लिए भगीरथ ने कठोर तपस्या की। उनकी तपस्या से प्रसन्न होकर ब्रह्मा जी ने गंगा को धरती पर भेजा, लेकिन गंगा के वेग को रोकने के लिए भगीरथ ने भगवान शिव की आराधना की। शिव जी ने गंगा को अपनी जटाओं में समेट कर उसका वेग कम किया और गंगा धरती पर अवतरित हुईं। जिस स्थान से गंगा पृथ्वी पर आईं, वही गंगोत्री कहलाता है।

गंगोत्री मंदिर का इतिहास

गंगोत्री मंदिर का निर्माण 18वीं सदी में गोरखा सेनापति अमर सिंह थापा ने करवाया था। सफेद पत्थरों से बना यह मंदिर मई से अक्टूबर तक खुला रहता है। सर्दियों में भारी बर्फबारी के कारण मंदिर बंद हो जाता है और गंगा माता की मूर्ति उत्तरकाशी के 'मुक्ति मंदिर' में स्थापित कर दी जाती है।

कैसे पहुंचें गंगोत्री?

गंगोत्री पहुंचने के लिए उत्तरकाशी सबसे नजदीकी शहर है। यहां से सड़क मार्ग द्वारा आसानी से गंगोत्री जाया जा सकता है। ऋषिकेश, हरिद्वार और देहरादून जैसे शहरों से उत्तरकाशी और गंगोत्री के लिए बस और टैक्सी सेवाएं उपलब्ध हैं। देहरादून और ऋषिकेश तक ट्रेन से पहुंचकर वहां से आगे सड़क यात्रा की जा सकती है।

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