भगवान विष्णु के पहले अवतार माने जाने वाले मत्स्य अवतार की कथा हिंदू धर्म में विशेष महत्व रखती है। पुराणों के अनुसार, जब पृथ्वी जलप्रलय में डूब गई थी, तब भगवान विष्णु ने मत्स्य (मछली) का रूप लेकर वैवस्वत मनु की नाव को सुरक्षित स्थान तक पहुंचाया था। इस कथा को सृष्टि की पुनर्स्थापना की शुरुआत माना जाता है।
हालांकि भगवान विष्णु के अन्य अवतारों के मुकाबले मत्स्य अवतार के मंदिर कम संख्या में हैं, फिर भी देशभर में कुछ प्रामाणिक और पुरातन मंदिर आज भी विद्यमान हैं, जहां भगवान मत्स्य की पूजा विधिपूर्वक होती है।
मत्स्य नारायण मंदिर, बड़वानी (मध्यप्रदेश)
मध्यप्रदेश के बड़वानी जिले में स्थित यह मंदिर नर्मदा नदी के तट पर बसा है। यहां भगवान विष्णु को मत्स्य रूप में पूजा जाता है। मान्यता है कि इस स्थान पर मत्स्य अवतार ने मनु की नाव को मार्ग दिखाया था। मंदिर में पत्थर से बनी भगवान मत्स्य की दुर्लभ मूर्ति है, जिसमें ऊपर मनुष्य और नीचे मछली का आकार स्पष्ट दिखाई देता है।
मत्स्यगंधा देवी मंदिर, कोल्लम (केरल)
कोल्लम में स्थित यह मंदिर देवी सती के मत्स्य रूप से भी जुड़ा माना जाता है, लेकिन परिसर में भगवान मत्स्य की पूजा भी होती है। यह स्थान समुद्र तट के पास स्थित है और पुरातन मान्यताओं के अनुसार यहां मत्स्य अवतार से संबंधित पूजा अनादिकाल से होती आ रही है।
मत्स्य मंदिर, कुंभकोणम (तमिलनाडु)
कुंभकोणम के निकट एक छोटे से गांव में स्थित यह मंदिर भगवान विष्णु के मत्स्य स्वरूप को समर्पित है। यहां मत्स्य जयंती पर विशेष आयोजन होते हैं। मंदिर दक्षिण भारत की द्रविड़ वास्तुकला में बना है और इसकी मूर्ति ग्रेनाइट की बनी है, जो सैकड़ों वर्ष पुरानी है।
मत्स्य तीर्थ, पुष्कर (राजस्थान)
पुष्कर में स्थित एक पौराणिक स्थल को मत्स्य तीर्थ कहा जाता है। मान्यता है कि भगवान मत्स्य ने यहां एक समय प्रकट होकर तीर्थ को पवित्र किया था। हालांकि यहां कोई भव्य मंदिर नहीं है, लेकिन स्थानीय भक्त इस स्थान को मत्स्य अवतार से जोड़ते हैं और पूजा करते हैं।
मत्स्य तीर्थ, ओडिशा (गंजाम जिला)
ओडिशा के गंजाम जिले में स्थित यह एक अत्यंत प्राचीन तीर्थ स्थल है, जहां हर साल चैत्र मास में मत्स्य जयंती पर उत्सव मनाया जाता है। ग्रामीण मान्यता के अनुसार यह वही स्थल है, जहां भगवान मत्स्य ने राजा मनु की नाव को सुरक्षित स्थान तक पहुंचाया था।
चाहे सुख हो दुःख हो,
एक ही नाम बोलो जी,
चल चला चल ओ भगता,
चल चला चल ॥
जय हो बैजनाथ
जय हो भोले भंडारी
चाहे छाए हो बादल काले,
चाहे पाँव में पड़ जाय छाले,