Badrinath Mandir Katha: बद्री विशाल की है अद्भुत महिमा, यहां देवता भी करते हैं पूजा, पढ़ें पौराणिक कथा
उत्तराखंड के चमोली जिले में स्थित बद्रीनाथ धाम के कपाट 4 मई को ब्रह्म मुहूर्त में श्रद्धालुओं के लिए खोल दिए जाएंगे। चार धामों में से एक बद्रीनाथ धाम को भगवान विष्णु का निवास स्थान माना जाता है। अब अगले 6 महीने तक बद्रीनाथ में दर्शन और पूजन का सिलसिला चलेगा। बद्रीनाथ धाम में भगवान विष्णु के कुल पांच रूपों की पूजा होती है, जिन्हें ‘पंच बद्री’ कहा जाता है। इन पंच बद्रियों में श्री विशाल बद्री को सबसे प्रमुख माना जाता है। यही मंदिर बद्रीनाथ धाम के नाम से प्रसिद्ध है। इसके अलावा यहां योगध्यान बद्री, भविष्य बद्री, वृद्ध बद्री और आदिबद्री भी स्थित हैं। यह मान्यता है कि भगवान विष्णु इन पांचों रूपों में यहां निवास करते हैं।
अखंड ज्योति के दर्शन का विशेष महत्व
कपाट खुलने के पहले दिन बद्रीनाथ मंदिर में भक्तों को सबसे पहले अखंड ज्योति के दर्शन कराए जाते हैं। यह ज्योति मंदिर में पूरे साल निरंतर जलती रहती है। मान्यता है कि यह ज्योति शीतकाल में भी बिना बुझे जलती रहती है और इसी ज्योति को देखने के लिए देशभर से भक्त बद्रीनाथ धाम की ओर रुख करते हैं।
जब देवता करते हैं बद्रीनाथ की पूजा
शीतकाल में जब बद्रीनाथ धाम के कपाट बंद हो जाते हैं, तब यह माना जाता है कि छह महीने तक देवता स्वयं यहां पूजा करते हैं। धर्म ग्रंथों में उल्लेख है कि जब मनुष्य बद्रीनाथ में छह महीने पूजा करते हैं, तब शेष छह महीने देवता इसकी सेवा करते हैं। इस दौरान नारद जी को धाम का मुख्य पुजारी माना जाता है, जो मां लक्ष्मी और श्रीहरि की प्रतिदिन पूजा करते हैं।
बद्रीनाथ में सभी मनोकामना होती है पूरी
बद्रीनाथ धाम को लेकर यह मान्यता भी है कि यहां सच्ची श्रद्धा से दर्शन करने पर भक्तों की सभी मनोकामनाएं पूरी होती हैं। भगवान विष्णु की कृपा पाने का यह सबसे सरल मार्ग माना जाता है। हर साल लाखों श्रद्धालु कठिन पहाड़ी रास्तों को पार करके केवल भगवान के एक दर्शन पाने की कामना से यहां पहुंचते हैं।
बद्रीनाथ मंदिर की खासियत
यह मंदिर हिमालय की पर्वत श्रृंखला में, अलकनंदा नदी के तट पर स्थित है। इस क्षेत्र में जंगली बेर (बदरी) बहुत पाए जाते हैं, जिसके कारण इस स्थान का नाम ‘बद्रीनाथ’ पड़ा। मंदिर मुख्य रूप से भगवान विष्णु को समर्पित है, लेकिन यहां नर-नारायण की उपासना भी की जाती है। मंदिर तीन भागों में विभाजित है – गर्भगृह, दर्शन मंडप, और सभामंडप। मंदिर परिसर में कुल 15 मूर्तियां हैं, जिनमें भगवान विष्णु की काले पत्थर की 1 मीटर ऊंची ध्यानमग्न मूर्ति सबसे प्रमुख है। वहीं भगवान के दाहिने ओर लक्ष्मी, कुबेर और नारायण की मूर्तियां भी विराजमान हैं।
बद्रीनाथ तक पहुंचना आसान नहीं है। ऊंचे पहाड़ी रास्ते, मौसम की अनिश्चितता और प्राकृतिक चुनौतियां यह सब होने के बावजूद भक्तों की आस्था में कोई कमी नहीं आती। हर साल लाखों लोग उत्तराखंड की ऊंचाइयों को पार करके बद्रीनाथ पहुंचते हैं। यह न केवल एक धार्मिक यात्रा होती है बल्कि आत्मा को शुद्ध करने वाला एक अनुभव भी होता है।
बद्रीनाथ की कथा और महिमा
कथा के अनुसार हिमालय में 10,000 फीट की ऊंचाई पर स्थित एक शानदार जगह है, जहां शिव और पार्वती रहते थे। एक दिन नारायण यानी विष्णु के पास नारद गए और बोले, ‘आप मानवता के लिए एक खराब मिसाल हैं। आप हर समय शेषनाग के ऊपर लेटे रहते हैं। आपकी पत्नी लक्ष्मी हमेशा आपकी सेवा में लगी रहती हैं, और आपको लाड़ करती रहती हैं। इस ग्रह के अन्य प्राणियों के लिए आप अच्छी मिसाल नहीं बन पा रहे हैं। आपको सृष्टि के सभी जीवों के लिए कुछ अर्थपूर्ण कार्य करना चाहिए।’इस आलोचना से बचने और साथ ही अपने उत्थान के लिए (भगवान को भी ऐसा करना पड़ता है) विष्णु तप और साधना करने के लिए सही स्थान की तलाश में नीचे हिमालय तक आए। वहां उन्हें मिला बद्रीनाथ, एक अच्छा-सा, छोटा-सा घर, जहां सब कुछ वैसा ही था जैसा उन्होंने सोचा था। साधना के लिए सबसे आदर्श जगह लगी उन्हें यह।फिर उन्हें एक घर दिखा। वह उस घर के अंदर गए। घुसते ही उन्हें पता चल गया कि यह तो शिव का निवास हैं। अगर उन्हें गुस्सा आ गया तो वह आपका ही नहीं, खुद का भी गला काट सकते हैं। ये आदमी खतरनाक है।
विष्णु ने धारण किया छोटे बच्चे का रूप
ऐसे में नारायण ने खुद को एक छोटे-से बच्चे के रूप में बदल लिया और घर के सामने बैठ गए। उस वक्त शिव और पार्वती बाहर कहीं टहलने गए थे। जब वे घर वापस लौटे तो उन्होंने देखा कि एक छोटा सा बच्चा जोर-जोर से रो रहा है।बच्चे को जोर जोर से रोते देख, पार्वती के भीतर मातृत्व जाग उठा और वे जाकर उस बच्चे को उठाना चाहती थीं। शिव ने पार्वती को रोकते हुए कहा, ‘इस बच्चे को मत छूना।’ पार्वती ने कहा, ‘कितने क्रूर हैं आप ! कैसी नासमझी की बात कर रहे हैं? शिव बोले - "ये कोई अच्छा बच्चा नहीं है। ये खुद ही हमारे दरवाज़े के बाहर कैसे आ गया? आस-पास कोई भी नहीं है। बर्फ में माता-पिता के पैरों के निशान भी नहीं हैं। ये बच्चा है ही नहीं।"पार्वती ने कहा, ‘आप कुछ भी कहें, मुझे कोई फर्क नहीं पड़ता। मेरे अंदर की मां बच्चे को इस तरह रोते नहीं देख सकती।’ और यह कहकर वे बच्चे को घर के अंदर ले गयीं। बच्चा पार्वती की गोद में आराम से था और शिव की तरफ बहुत ही खुश होकर देख रहा था। शिव इसका नतीजा जानते थे, लेकिन करें तो क्या करें? इसलिए उन्होंने कहा, ‘ठीक है, चलो देखते हैं क्या होता है।’पार्वती ने बच्चे को खिला-पिला कर चुप किया और वहीं घर पर छोडक़र खुद शिव के साथ पास ही के गर्म पानी के कुंड में स्नान के लिए चली गईं। लौटकर आए तो देखा कि घर अंदर से बंद था। पार्वती हैरान थीं - "आखिर दरवाजा किसने बंद किया?" शिव बोले, ‘मैंने कहा था न, इस बच्चे को मत उठाना। तुम बच्चे को घर के अंदर लाईं और अब उसने अंदर से दरवाजा बंद कर लिया है।’पार्वती ने कहा, ‘अब हम क्या करें?’
शिव और पार्वती केदारनाथ जा बसे
शिव के पास दो विकल्प थे। एक, जो भी उनके सामने है, उसे जलाकर भस्म कर दें और दूसरा, वे वहां से चले जाएं और कोई और रास्ता ढूंढ लें। उन्होंने कहा, ‘चलो, कहीं और चलते हैं क्योंकि यह तुम्हारा प्यारा बच्चा है इसलिए मैं इसे छू भी नहीं सकता।’इस तरह शिव अपना ही घर गंवा बैठे, और शिव-पार्वती एक तरह से ‘अवैध प्रवासी’ बन गए। वे रहने के लिए भटकते हुए सही जगह ढूंढने लगे और आखिरकार केदारनाथ में जाकर बस