रामेश्वर धाम (Rameshwar Dham)

विश्व प्रसिद्ध रामेश्वरम मंदिर के दर्शन करने का हिंदू धर्म में काफी महत्व बताया गया है। रामेश्वरम मंदिर चार धामों में दूसरे स्थान पर आता है, तो वहीं रामेश्वरम का 12 ज्योतिर्लिंगों में भी ग्यारहवां स्थान है। इस लिहाज से यहां के दर्शन करने का महत्व और भी बढ़ जाता है। हम आपको इस आर्टिकल में रामेश्वर धाम से जुड़ी पौराणिक कथाएं और वहां के दर्शन के महत्व बताएंगे। 


यह मंदिर भारत के दक्षिणी राज्य तमिलनाडु में रामेश्वरम द्वीप पर स्थित है। यहां भगवान शिव की लिंग के रूप में पूजा होती है। मान्यता के अनुसार यहां स्थित ज्योतिर्लिंग के दर्शन करने से समस्त रोगों से मुक्ति मिल जाती है। रामेश्वरम का इतिहास त्रेता युग से जुड़ा हुआ है। पौराणिक कथाओं के अनुसार जब भगवान श्री राम सीता जी को वापस लाने के लिए लंका जा रहे थे तो उन्होंने सेतू निर्माण के पहले भगवान शिव का आह्वान किया और लिंग की स्थापना की। पूजा के बाद भगवान शिव ने श्री राम को विजय होने का वरदान दिया था। भगवान श्री राम का ईश्वर होने की वजह से ही उन्हें रामेश्वर कहा गया। ऐसा माना जाता है कि राम के पैरों के निशान वहां आज भी अंकित हैं। वहीं भक्तों का मानना है कि मंदिर के आसपास के पवित्र कुंड, जिसे अग्नि तीर्थम के नाम से जाना जाता है इसमें डुबकी लगाने से मनुष्य पाप मुक्त हो जाता है। मान्यता के अनुसार श्री राम ने अमोघ बाणों से इन कुंड का निर्माण किया था। जानते हैं इस ज्योतिर्लिंग की उत्पत्ति से जुड़ी पौराणिक कथा को विस्तार से… 


रामेश्वरम ज्योतिर्लिंग की उत्पत्ति से जुड़ी पौराणिक कथा 


पहली कथा- एक कथा के अनुसार,  जब भगवान श्री राम अपनी पत्नी सीता को लेने लंका के रास्ते में तमिलनाडु के दक्षिण तट पर पहुंचे तो उन्हें लंका जाने का कोई मार्ग समझ नहीं आया। लंका और भारत के बीच एक विशाल समुद्र था। अपनी सेना को पार ले जाने के लिए उन्होंने समुद्र से रास्ता मांगा लेकिन समुद्र ने कोई रास्ता नहीं दिया। क्रोध में आकार श्री राम ने समुद्र की तरफ तीर का संधान किया, भगवान श्री राम के क्रोध से समुद्र देव डर गए और श्री राम के सामने प्रकट होकर क्षमा याचना की। इसके बाद समुद्र ने भगवान श्री राम को समुद्र पर सेतू बंधन के बारे में बताया। इसके बाद भगवान श्री राम ने समुद्र तट पर एक शिवलिंग का निर्माण किया और शिव की पूजा की, यहां विराजमान शिव को राम का ईश्वर माना जाता है और इसलिए ही इसे रामेश्वरम कहते हैं। इस लिंगम को स्वयंभू लिंगम कहा जाता है। इसके बाद इसे रामेश्वरम ज्योतिर्लिंग कहा गया। इस मंदिर की मुख्य संरचना 12वीं शताब्दी में पांड्य राजवंश के शासनकाल के दौरान बनाई गई थी।


दूसरी कथा- एक पौराणिक कथा के अनुसार भगवान श्रीराम ने जब रावण का वध किया तो रावण के ब्राह्मण होने की वजह से उन पर पर ब्रह्म हत्या का दोष लग गया। इस पाप से मुक्त होने के लिए श्रीराम ने ऋषियों से चर्चा की। ऋषियों ने उन्हें शिवलिंग स्थापित कर अभिषेक करने के लिए कहा। जिसके बाद प्रभू श्रीराम ने ब्रह्म हत्या के पाप से मुक्ति पाने के लिए दक्षिणी तट पर बालू से शिवलिंग बनाकर अभिषेक किया जो आज रामेश्वर के नाम से जाना जाता है। दूसरी तरफ एक मान्यता ये भी है कि भगावन राम दक्षिण भारत के समुद्र तट पर रुके तो ब्रह्म हत्या के पाप को मिटाने के लिए उन्होंने हनुमान जी को पर्वत से शिवलिंग लाने के लिए कहा, बजरंगबली को आने में देरी हुई तो माता सीता ने दक्षिण तट पर बालू से शिवलिंग स्थापित किया और श्रीराम ने उनका अभिषेक किया। भगवान शिव ने इससे प्रसन्न होकर भगवान श्रीराम को ब्रह्म हत्या के पाप से मुक्ति दे दी। साथ ही शिव बालू से बनी शिवलिंग में विराजमान हो गए। इसे रामनाथ या रामलिंग कहा गया। कुछ देर बाद जब हनुमान जी शिवलिंग लेकर लौटे तो उसे भी वहीं स्थापित कर दिया गया और उस शिवलिंग का नाम वैश्वलिंग रखा गया। तभी से यहां दोनों शिवलिंग की पूजा की जाती है। इसी कारण रामेश्वरम को रामनाथस्वामी ज्योतिर्लिंग भी कहा जाता है। 


सेतु समुद्रम

सेतु समुद्रम रामेश्वरम मंदिर के इतिहास में अपनी एक खास जगह रखता है। ये सेतू भगवान राम और उनकी सेना द्वारा लंका तक पहुंचने के लिए बनाया गया एक पौराणिक पुल है। इसे एडम ब्रिज या राम ब्रिज के नाम से भी जाना जाता है। कहा जाता है कि तैरते पत्थरों और मूंगा चट्टानों से बना यह पुल रामेश्वरम को श्रीलंका के द्वीप से जोड़ता है। 


रामेश्वरम मंदिर से जुड़ी कुछ खास बातें 

रामेश्वर धाम में स्थापित पवित्र ज्योतिर्लिंग सदियों पुराना है। मंदिर के बारे में माना जाता है कि इसकी मुख्य संरचना 12वीं शताब्दी में पांड्य राजवंश के शासनकाल के दौरान की गई थी। मंदिर की वास्तुकला द्रविड़ और इस्लामी शैलियों का मिश्रण है। मंदिर का मुख्य प्रवेश द्वार जिसे पूर्वी गोपुरम भी कहते हैं 126 फीट की ऊंचाई का है और विभिन्न देवताओं और दिव्य प्राणियों की अलंकृत नक्काशी और मूर्तियों से सुसज्जित है। मंदिर की एक खासियत यह भी है कि इसके गलियारे बहुत बड़े है, जिन्हें “प्रकरम” कहा जाता है। ये गलियारे एक बड़े क्षेत्र को घेरते हैं। मंदिर के स्तंभों और मूर्तियों पर जटील नक्काशी की गई है। मंदिर में एक गर्भगृह है, जहां ज्योतिर्लिंग की पूजा की जाती है। मंदिर की एक खास बात ये भी कि यहां 22 पवित्र कुएं हैं, जिन्हें “तीर्थम” कहते हैं। इनमें प्रत्येक कुआं एक अलग पौराणिक महत्व से जुड़ा हुआ है। 


रामेश्वर ज्योतिर्लिंग में दर्शन और आरती का समय 

भगवान भोलेनाथ का यह पावन धाम प्रतिदिन सुबह 5 बजे से दोपहर 1 बजे तक और दोपहर 3 बजे से रात 9 बजे तक खुला रहता है। इस दौरान मंदिर में कई अनुष्ठान होते हैं। जिसमें सुबह 5 बजे पल्लियाराई दीपा अराधना होती है। इसके बाद 5 बजकर 10 मिनट पर स्पैडिगालिंगा दीपा अराधना होती है। फिर 5 बजकर 45 मिनट पर तिरुवनंतपुरम दीपा अराधना होती है और 7 बजे विला पूजा की जाती है। सुबह 10 बजे कलसंथी पूजा होती है। इसके बाद दोपहर 12 बजे उचिकला पूजा और शाम 6 बजे सयाराचा पूजा होती है। शाम साढ़े आठ बजे अर्थजामा पूजा होती है। पौने 9 बजे पल्लियारई पूजा होती है। जिसके बाद मंदिर को बंद कर दिया जाता है।


रामेश्वर ज्योतिर्लिंग दर्शन और घूमने का सबसे अच्छा मौसम 


रामेश्वरम ज्योतिर्लिंग में दर्शन करने के लिए वैसे तो 12 महीने ही अनुकूल हैं। लेकिन अगर आप तमिलनाडु में रामेश्वरम ज्योतिर्लिंग दर्शन के अलावा और जगह एक्सप्लोर करना चाहते हैं तो अक्टूबर से फरवरी के बीच यहां की यात्रा प्लान कर सकते हैं। इन महीनों के दौरान, तापमान आमतौर पर 20-30 डिग्री सेल्सियस के बीच होता है। इस दौरान यहां दिन सर्द और शामें सुहावनी होती हैं। आप समुद्र तट पर बोटिंग और सर्फिंग कर सकते हैं। सर्दियों का मौसम पर्यटकों और तीर्थयात्रियों अरुद्र दरिसनम (दिसंबर-जनवरी) का त्योहार मनाने के लिए भी रामेश्वरम आते हैं। 


रामेश्वर ज्योतिर्लिंग कैसे पहुंचे? 

राजधानी दिल्ली से रामेश्वर मंदिर की दूरी लगभग 2,698.9 किलोमीटर है। 


हवाई मार्ग से- यदि आप फ्लाइट से रामेश्वरम की यात्रा करना चाहते हैं तो इस यहां का सबसे नजदीकी हवाई अड्डा मदुरै एयरपोर्ट है, यहां से रामेश्वरम ज्योतिर्लिंग की दूरी करीब 170 किमी. है। मदुरै एयरपोर्ट से आप बस या प्राइवेट टैक्सी के माध्यम से रामेश्वरम पहुंच सकते हैं। इसके अलावा यहां से गवर्नमेंट और प्राइवेट दोनों तरह की बसें भी आसानी से मिल जाती है। 


रेल मार्ग से- यदि आप ट्रेन से रामेश्वरम मंदिर पहुंचना चाहते हैं तो यहां से मात्र 2 किमी. दूर रामेश्वरम रेलवे स्टेशन है, लेकिन यह स्टेशन से आसपास के कुछ ही शहरों से कनेक्टेड है। हालांकि, मदुरै जंक्शन देश के बाकी हिस्सों से कनेक्टेड है। मदुरै मंदिर से करीब 175 किमी. की दूरी पर है। इसलिए आप ट्रेन से मदुरै जंक्शन पहुंच सकते हैं और यहां आसानी से आपको मंदिर तक जाने के लिए बस या टैक्सी मिल सकती है।  


सड़क मार्ग से- यदि आप सड़क मार्ग से रामेश्वरम मंदिर पहुंचना चाहते हैं तो आप आसानी से यहां पहुंच सकते हैं। आपको चेन्नई और मदुरै के साथ-साथ देश के दूसरे राज्यों के बड़े शहरों से रामेश्वरम के लिए डायरेक्ट बस मिल जाएगी। इसके अलावा आप अपनी कार से भी यहां आसानी से पहुंच सकते हैं। 


इन होटल्स और धर्मशालाओं में कर सकते हैं स्टे 

रामेश्वरम मंदिर के आस-पास आपको कई बजट फ्रेंडली होटल्स और धर्मशालाएं आसानी से मिल जाएंगी, अगर आप किसी अच्छी hotel में रुकना चाहते हैं तो भी ये आसानी से उपलब्ध हैं… 


Hotel Aalayam Rameshwaram 

Hotel Rameshwaram Grand 

Hotel Fortune

Vrindavan Residency 

SDM Golden Tower 

Hotel Ashoka 

Hotel Ragvendra 

Hotel Royal Residency


इसके अलावा यहां कुछ धर्मशालाएं भी हैं:

माहेश्वरी भक्त निवास धर्मशाला 

गी डी गोयनका धर्मशाला

श्री रामंजनेय चैत्रम्

श्री महाप्रभुजी बैठक


डिसक्लेमर

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