कल कल कल जहाँ निर्मल बहती,
माँ गंगा की धार,
है पावन शिव का धाम हरिद्वार,
हैं पावन शिव का धाम हरिद्वार ॥
विष्णु नख से निकली गंगा,
ब्रम्ह-कमण्डल आई गंगा,
शिव की जटा समाई गंगा,
शिव की जटा समाई गंगा,
सबका किया उद्धार,
हैं पावन शिव का धाम हरिद्वार ॥
गौमुख से चलती इठलाती,
ऋषिकेश में ये बलखाती,
हर की पौड़ी में फिर आती,
हर की पौड़ी में फिर आती,
बनके जग की करतार,
हैं पावन शिव का धाम हरिद्वार ॥
गंगा शीश में धर त्रिपुरारी,
कहलाए फिर गंगा धारी,
भक्त जनो की नैया तारी,
भक्त जनो की नैया तारी,
ना छोड़ी मजधार,
हैं पावन शिव का धाम हरिद्वार ॥
कलियुग में जो पार हो जाना,
एक बार हरिद्वार तो आना,
माँ गंगा में गोते लगाना,
‘चन्दन’ हो भव पार,
हैं पावन शिव का धाम हरिद्वार ॥
कल कल कल जहाँ निर्मल बहती,
माँ गंगा की धार,
है पावन शिव का धाम हरिद्वार,
हैं पावन शिव का धाम हरिद्वार ॥
हिन्दू धर्म में मान्यता है कि व्यक्ति को अपने जीवन में किसी भी सफलता को प्राप्त करने के लिए संकल्प और नियमों की आवश्यकता पड़ती है।
पौराणिक काल से सनातन धर्म में कई रीति-रिवाज चले आ रहे हैं। हमारी संस्कृति में पूजा-पाठ का अपना एक अलग और विशेष महत्व है। हमारे यहां कोई भी पूजा में कुछ ऐसी चीजें हैं जिनका उपयोग अनिवार्य होता है।
आज देवउठनी एकादशी का पर्व मनाया जा रहा है। हिंदू धर्म में यह दिन अत्यंत पवित्र माना जाता है। इस दिन भगवान विष्णु चार महीने की योग निद्रा से जागते हैं और चातुर्मास का समापन होता है।
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