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गंगा नदी को भारतवर्ष की जीवनदायनी और सबसे पवित्र नदी कहा जाता है, इस नदी को श्रद्धालु मां गंगा कहकर भी संबोधित करते हैं। हिमालय से निकलने वाली गंगा बंगाल की खाड़ी में जाकर मिलती है. इस पावन नदी के बारे में कहा जाता है कि कि इसमें स्नान करने से पाप धुल जाते हैं और मोक्ष की (जीवन और मृत्यु के चक्र से मुक्ति) की प्राप्ति होती है। जहां एक तरफ गंगा का जल अत्यंत पवित्र और साफ माना जाता है, वहीं धार्मिक मान्यताओं के अनुसार गंगा का स्थान सर्वोपरि है। अपनी पवित्रता के कारण हजारों वर्षों से पवित्र नदी गंगा लोगों के आर्थिक, सामाजिक और धार्मिक जीवन में महत्वपूर्ण रही है।
गंगा नदी का उल्लेख पहली बार ऋग्वेद में किया गया था। ऋग्वेद के अलावा मां गंगा का उल्लेख गीता और महाभारत में भी मिलता है। साथ ही वेदों और पुराणों में गंगा नदी को तीर्थमयी कहा गया है। भारतवर्ष में गंगा शब्द को शुद्ध जल का पर्याय माना जाता है। कुछ लोगों का मानना है कि गंगा का पानी बीमारियों को ठीक कर सकता है। लेकिन क्या आपने कभी सोचा है कि इस पवित्र गंगा नदी का उद्गम कहां से होता है? आइए जानें गंगा मां की उत्पत्ति से संबंधित पौराणिक कथाओं के बारें में...
गंगा नदी की उत्पत्ति
गंगा नदी की उत्पत्ति के संबंध में अनेक पौराणिक कथाएं प्रचलित हैं। जिनके आधार पर गंगा नदी को विष्णुपदी, भागीरथी, पाताल गंगा, जाह्नवी, मंदाकिनी, देवनदी, सुरसरी, त्रिपथगा इत्यादि विभिन्न नामों से जाना जाता है। वामन पुराण के अनुसार जब भगवान विष्णु ने वामन रूप में अपना एक पैर आकाश की ओर उठाया तो तब ब्रह्मा जी ने भगवान विष्णु के चरण धोकर जल को अपने कमंडल में भर लिया। इस जल के तेज से ब्रह्मा जी के कमंडल में गंगा का जन्म हुआ। ब्रह्मा जी ने गंगा हिमालय को सौंप दिया और गंगा हिमालय की पुत्री और देवी पार्वती की बहन के रूप में जानी जाने लगीं।
एक दूसरी कथा के अनुसार गंगा नदी की उत्पत्ति भगवान विष्णु के चरणों से उत्पन्न पसीने से हुई है, इस कथा के अनुसार भगवान विष्णु के चरणों से उत्पन्न पसीने को ब्रह्माजी ने अपने कमंडल में भर लिया तथा इस एकत्रित जल से गंगा की उत्पत्ति की। जिसके कारण इसे विष्णुपदी के नाम से जाना जाता है।
गंगा मां को धरती पर कैसे लाया गया?
पौराणिक कथाओं के अनुसार, मां गंगा पहले स्वर्गलोक में रहती थीं। भागीरथ ने अपने पूर्वजों को मोक्ष दिलाने के लिए स्वर्गलोक से मां गंगा को धरती पर लाने के लिए कठोर तप किया। भगीरथ की तपस्या से खुश होकर मां गंगा धरती पर आने के तैयार हो गईं, लेकिन समस्या यह थी कि मां गंगा सीधे धरती पर नहीं आ सकती थीं, क्योंकि धरती उनके तेज वेग को सहन नहीं कर पाती और उनके प्रवाह की गति से समस्त जगह नष्ट हो जाता। यह जानने के बाद जब भागीरथ ब्रह्मा जी के पास पहुंचे इसके निदान के लिए पहुंचे तो ब्रह्माजी ने उन्हे समस्या का समाधान बताते हुए कहा कि उन्हें भोलेनाथ को प्रसन्न करना होगा। तभी उनकी परेशानी सुलझ सकती है। पौराणिक कथा में जिक्र किया गया है कि भागीरथ ने कठोर तपस्या कर भगवान शिव को प्रसन्न किया। जिसके बाद भगवान शिव ने भगीरथ की बात सुनकर गंगा से अपनी जटाओं में समाने के लिए कहा। जटाओं में धारण करने के बाद शिव ने धीरे-धीरे अपनी जटाओं को खोला और मां का प्रवाह धीमी गति से धरती पर आया और मां गंगा धरती पर एक नदी के रूप में प्रवाहित होने लगीं. मां गंगा को अपनी जटाओं में धारण करने से भगवान शिव का एक नाम गंगाधर भी पड़ा है। वहीं गंगा के धरती पर आने की मुख्य वजह भगरीथ है इसलिए गंगा नदी का एक नाम भागीरथी भी है।
महाभारत में गंगा नदी को अर्जुन द्वारा भूजल से उद्गमित करने का वृत्तांत भी मिलता है। यह वर्णित किया गया है कि मृत्यु शैया पर लेटे भीष्म पितामह की आज्ञा से अर्जुन ने तीर द्वारा भूजल को पृथ्वी पर लाकर उनकी प्यास बुझाई। अर्जुन के इस कार्य द्वारा गंगा भूजल से पृथ्वी पर अवतरित हुई, जिसके कारण गंगा को पाताल गंगा के नाम से भी जाना जाता है। इतनी विविधताओं को अपने आप में समेटे हुए गंगा नदी भारत की सबसे पवित्र नदियों में से एक है जिसकी खूबसूरती देखने पर्यटक दूर-दूर से आते हैं और धार्मिक कर्मों की भी पूर्ति करते हैं।
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