कर्पूरगौरो भुजगेन्द्रहारो गङ्गाधरो लोकहितावहः सः ।
सर्वेश्वरो देववरोऽप्यघोरो योऽनादिकल्पेश्वर एव सोऽसौ ॥ १॥
कैलासवासी गिरिजाविलासी श्मशानवासी सुमनोनिवासी ।
काशीनिवासी विजयप्रकाशी योऽनादिकल्पेश्वर एव सोऽसौ ॥ २॥
त्रिशूलधारी भवदुःखहारी कन्दर्पवैरी रजनीशधारी ।
कपर्दधारी भजकानुसारी योऽनादिकल्पेश्वर एव सोऽसौ ॥ ३॥
लोकाधिनाथः प्रमथाधिनाथः कैवल्यनाथः श्रुतिशास्त्रनाथः ।
विद्यार्थनाथः पुरुषार्थनाथो योऽनादिकल्पेश्वर एव सोऽसौ ॥ ४॥
लिङ्गं परिच्छेत्तुमधोगतस्य नारायणश्चोपरि लोकनाथः ।
बभूवतुस्तावपि नो समर्थौ योऽनादिकल्पेश्वर एव सोऽसौ ॥ ५॥
यं रावणस्ताण्डवकौशलेन गीतेन चातोषयदस्य सोऽत्र ।
कृपाकटाक्षेण समृद्धिमाप योऽनादिकल्पेश्वर एव सोऽसौ ॥ ६॥
सकृच्च बाणोऽवनमय्य शीर्षं यस्याग्रतः सोऽप्यलभत्समृद्धिम् ।
देवेन्द्रसम्पत्त्यधिकां गरिष्ठां योऽनादिकल्पेश्वर एव सोऽसौ ॥ ७॥
गुणान्विमातुं न समर्थ एष वेषश्च जीवोऽपि विकुण्ठितोऽस्य ।
श्रुतिश्च नूनं चकितं बभाषे योऽनादिकल्पेश्वर एव सोऽसौ ॥ ८॥
अनादिकल्पेश उमेश एतत्स्तवाष्टकं यः पठति त्रिकालम् ।
स धौतपापोऽखिललोकवन्द्यं शैवं पदं यास्यति भक्तिमांश्चेत् ॥ ९॥
इति श्रीवासुदेवानन्दसरस्वतीकृतं अनादिकल्पेश्वरस्तोत्रं सम्पूर्णम् ।
जो कर्पूर के समान गौरवर्ण के हैं, सर्पों के हार पहने हुए हैं, जटाजूट में गंगा को धारण किये हुए हैं, संसार का हित करने वाले हैं, सभी के स्वामी हैं और देवताओं में श्रेष्ठ होते हुए भी अघोर हैं। ऐसे वे अन्य कोई और नहीं, भगवान् अनादिकल्पेश्वर ही हैं ॥ १ ॥
जो कैलास पर निवास करनेवाले, भगवती गिरिजा के साथ आनन्द का अनुभव करनेवाले, श्मशानवासी, भक्तों के मन में निवास करनेवाले तथा काशी में वास करनेवाले और विजय प्रदान करनेवाले हैं — ऐसे वे अन्य कोई और नहीं, भगवान् अनादिकल्पेश्वर ही हैं ॥ २ ॥
जो त्रिशूल धारण करनेवाले, संसाररूपी दुःख का हरण करनेवाले, कामदेव के दर्प का दलन करनेवाले, चन्द्रमा को धारण करनेवाले, जटाजूटधारी तथा भजन करनेवाले का अनुसरण करनेवाले हैं — ऐसे वे अन्य कोई और नहीं, भगवान् अनादिकल्पेश्वर ही हैं ॥ ३ ॥
जो समस्त लोकों के स्वामी, प्रमथगणों के नाथ, मोक्ष के अधिपति, श्रुतियों और शास्त्रों का प्रकाश करनेवाले अथवा श्रुतियों तथा शास्त्रों में अधीश्वररूप में निर्दिष्ट, समस्त विद्याओं एवं सम्पत्तियों के स्वामी तथा धर्म, अर्थ, काम, मोक्षरूप पुरुषार्थचतुष्टय के अधिष्ठाता हैं — ऐसे वे अन्य कोई और नहीं, अनादिकल्पेश्वर ही हैं ॥ ४ ॥
जिनके ज्योतिर्लिंग की इयत्ता को जानने के लिये नारायण विष्णु नीचे की ओर गये और ब्रह्मदेव ऊपर की ओर गये, फिर भी उसकी सीमा जानने में सफल नहीं हो सके।ऐसे वे अन्य कोई और नहीं, अनादिकल्पेश्वर ही हैं ॥ ५ ॥
जिन्हें रावण ने कुशलतापूर्वक ताण्डव नृत्य और स्तुति करके प्रसन्न कर लिया और जिनके कृपाकटाक्ष से उसने समृद्धि प्राप्त कर ली — ऐसे वे अन्य कोई और नहीं, अनादिकल्पेश्वर ही हैं ॥ ६ ॥
बाणासुर ने जिनके आगे अपने मस्तक को झुकाकर एक बार प्रणाम किया और उनकी प्रसन्नता से देवेन्द्र की सम्पत्ति से भी अधिक भरी-पूरी समृद्धि प्राप्त कर ली — ऐसे वे अन्य कोई और नहीं, अनादिकल्पेश्वर ही हैं ॥ ७ ॥
अनेक प्रकार की कुण्ठाओं से ग्रस्त यह जीव जिनके स्वरूप का निर्वचन तथा गुणों का परिगणन करने में सर्वथा असमर्थ है। निश्चय ही श्रुति जिनका वर्णन करने में चकित होकर नेति नेति कहती है — ऐसे वे अन्य कोई और नहीं, भगवान् अनादिकल्पेश्वर ही हैं ॥ ८ ॥
हे अनादिकल्पेश्वर उमापते! आपकी इस आठ श्लोकों द्वारा की गयी स्तुति को जो तीनों कालों में भक्तिपूर्वक पढ़ता है। उसके समस्त पाप धुल जाते हैं,वह सभी के द्वारा वन्दनीय हो जाता है, तथा अन्त में शिवसायुज्य को प्राप्त होता है ॥ ९ ॥
॥ इस प्रकार श्रीवासुदेवानन्द सरस्वतीकृत अनादिकल्पेश्वर स्तोत्र सम्पूर्ण हुआ ॥
वट सावित्री व्रत 10 जून, ज्येष्ठ मास की अमावस्या तिथि को मनाया जाएगा। यह व्रत विशेष रूप से सुहागिन महिलाओं के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण होता है।
वट सावित्री व्रत 2025 में 10 जून को सुहागिन महिलाएं ज्येष्ठ अमावस्या के दिन व्रत रखकर वट वृक्ष (बरगद के पेड़) की पूजा करेंगी। यह व्रत पति की लंबी उम्र, अच्छे स्वास्थ्य और सुखी दांपत्य जीवन के लिए किया जाता है।
आज 11 जून 2025 को ज्येष्ठ माह का 30वां दिन है। साथ ही आज पंचांग के अनुसार, ज्येष्ठ माह के शुक्ल पक्ष तिथि पूर्णिमा है। आज बुधवार का दिन है। सूर्य देव वृषभ राशि में रहेंगे।
आज 12 जून 2025 को आषाढ़ माह का पहला दिन है। साथ ही आज पंचांग के अनुसार, आषाढ़ माह के कृष्ण पक्ष तिथि प्रतिपदा है। आज गुरूवार का दिन है। सूर्य देव वृषभ राशि में रहेंगे। वहीं चंद्रमा धनु राशि में रहेंगे।