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Pradosh Stotram (प्रदोषस्तोत्रम्)

Pradosh Stotram (प्रदोषस्तोत्रम्)

 प्रदोषस्तोत्रम् हिंदी अर्थ सहित 

जय देव जगन्नाथ जय शंकर शाश्वत । 

जय सर्वसुराध्यक्ष जय सर्वसुरार्चित ।। १ ।।

जय सर्वगुणातीत जय सर्ववरप्रद । 

जय नित्यनिराधार जय विश्वम्भराव्यय ।। २ ।।

जय विश्वैकवन्द्येश जय नागेन्द्रभूषण । 

जय गौरीपते शम्भो जय चन्द्रार्धशेखर ।। ३ ।।

जय कोट्यर्कसंकाश जयानन्तगुणाश्रय । 

जय भद्र विरूपाक्ष जयाचिन्त्य निरञ्जन ।। ४ ।।

जय नाथ कृपासिन्धो जय भक्तार्तिभञ्जन । 

जय दुस्तरसंसारसागरोत्तारण प्रभो ।। ५ ।।

प्रसीद मे महादेव संसारार्तस्य खिद्यत: । 

सर्वपापक्षयं कृत्वा रक्ष मां परमेश्वर ।। ६ ।।

महादारिद्र्यमग्नस्य महापापहतस्य च । 

महाशोकनिविष्टस्य महारोगातुरस्य च ।। ७ ।।

ऋणभारपरितस्य दह्यमानस्य कर्मभि: । 

ग्रहै: प्रपीड्यमानस्य प्रसीद मम शंकर ।। ८ ।।

दरिद्र: प्रार्थयेद् देवं प्रदोषे गिरिजपतिम् । 

अर्थाढ्यो वाsथ राजा वा प्रार्थयेद् देवमीश्वरम् ।। ९ ।।

दीर्घमायु: सदारोग्यं कोषवृद्धिर्बलोन्नति: | 

ममास्तु नित्यमानन्द: प्रसादात्तव शंकर ।। १० ।।

शत्रव: संक्षयं यान्तु प्रसीदन्तु मम प्रजा: | 

नश्यन्तु दस्यवो राष्ट्रे जना: सन्तु निरापद: ।। ११ ।।

दुर्भिक्षमारीसंतापा: शमं यान्तु महितले | 

सर्वस्यसमृद्धिश्च भूयात् सुखमया दिश: ।। १२ ।।

एवमाराधयेद् देवं पूजान्ते गिरिजापतिम् | 

ब्राह्मणान भोजयेत् पश्चाद् दक्षिनाभिश्च पूजयेत् ।। १३ ।।

सर्वपापक्षयकरी सर्वरोगनिवारिणी | 

शिवपूजा मयाख्याता सर्वाभीष्टफलप्रदा ।। १४ ।।

|| इति प्रदोषस्तोत्रं सम्पूर्णं ||

भावार्थ - 

हे जगन्नाथ (समस्त जगत् के स्वामी)! हे देव! आपकी जय हो। हे शाश्वत शंकर (सर्वदा कल्याण करनेवाले), आपकी जय हो। हे सर्वसुराध्यक्ष (समस्त देवताओं के अधिपति), आपकी जय हो, और हे सर्वसुरार्चित (सभी देवताओं द्वारा पूजित), आपकी भी जय हो ॥१॥

हे सर्वगुणातीत (सभी गुणों से परे), आपकी जय हो। हे सर्ववरप्रद (सभी को वरदान देनेवाले), आपकी जय हो। हे नित्यनिराधार (जो स्वयं में स्थित हैं), आपकी जय हो। हे अविनाशी विश्वम्भर, आपकी जय हो ॥२॥

हे विश्वैकवन्द्येश (समस्त विश्व में एकमात्र वन्दनीय), आपकी जय हो। हे नागेन्द्रभूषण (नागों को आभूषण रूप में धारण करनेवाले), आपकी जय हो। हे गौरीपते, आपकी जय हो। हे चन्द्रार्धशेखर (मस्तक पर अर्धचन्द्र धारण करनेवाले शम्भो), आपकी जय हो ॥३॥

हे कोट्यर्कसंकाश (करोड़ों सूर्यों के समान दीप्तिमान), आपकी जय हो। हे अनन्तगुणाश्रय (अनन्त गुणों के आश्रय), आपकी जय हो। हे विरूपाक्ष (तीन नेत्रों वाले), आपकी जय हो। हे अचिन्त्य! हे निरंजन! आपकी जय हो ॥४॥

हे नाथ! आपकी जय हो। हे भक्तों की पीड़ा का विनाश करनेवाले कृपासागर, आपकी जय हो। हे दुस्तर संसार-सागर से पार करानेवाले प्रभो, आपकी जय हो ॥५॥

हे महादेव! मैं इस संसार में अत्यन्त दुःखी हूँ, मुझे अनेक चिन्ताएँ घेरे हुए हैं। मुझ पर कृपा कीजिए। हे परमेश्वर! मेरे समस्त पापों का नाश कर मेरी रक्षा कीजिए ॥६॥

हे शंकर! मैं दरिद्रता के सागर में डूबा हुआ हूँ, महान पापों से पीड़ित हूँ, अनन्त चिन्ताएँ मुझे घेरे हुए हैं। भयंकर रोगों ने मुझे घेर लिया है, ऋण के भार से दबा हुआ हूँ, कर्मों की ज्वाला में जल रहा हूँ और ग्रहों की पीड़ा से व्याकुल हूँ। कृपा करके मुझ पर प्रसन्न हो जाइए ॥७–८॥

यदि कोई दरिद्र व्यक्ति प्रदोषकाल में देवेश्वर गिरिजापति की प्रार्थना करता है, तो वह धनी हो जाता है। यदि कोई राजा प्रदोषकाल में देवदेवेश्वर भगवान् शंकर की आराधना करता है, तो वह दीर्घायु होता है, सदैव नीरोग रहता है। उसके खजाने की वृद्धि होती है और उसकी सेना सुदृढ़ होती है। हे प्रभो! आपकी कृपा से मुझे भी नित्य आनन्द की प्राप्ति हो ॥९–१०॥

मेरे शत्रु क्षीण हो जाएँ, मेरी प्रजा सदा सुखी रहे, चोर और डाकू नष्ट हो जाएँ, और राष्ट्र में समस्त जनसमुदाय संकटमुक्त हो जाए ॥११॥

पृथ्वी पर दुर्भिक्ष, महामारी आदि कष्ट समाप्त हो जाएँ। सभी प्रकार की फसलों में भरपूर उपज हो, दिशाएँ सुखदायक हो जाएँ ॥१२॥

इस प्रकार गिरिजापति भगवान् शिव की आराधना करनी चाहिए। पूजा के अन्त में ब्राह्मणों को भोजन कराना चाहिए, फिर उन्हें यथायोग्य दक्षिणा देकर सम्मानित करना चाहिए ॥१३॥

यह पूजा जो भगवान् शिव के लिए कही गई है, वह समस्त पापों का नाश करती है, समस्त रोगों को दूर करती है और सभी इच्छित फलों की प्राप्ति कराती है ॥१४॥

॥ इति प्रदोषस्तोत्रं सम्पूर्णम् ॥

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