Logo

Andhak Krit Shiv Stuti (अन्धककृता शिवस्तुति)

Andhak Krit Shiv Stuti (अन्धककृता शिवस्तुति)

अन्धककृता शिवस्तुति हिंदी अर्थ सहित 

(स्कन्दमहापुराण, अवन्तीखण्ड)

कृत्स्नस्य योऽस्य जगतः सचराचरस्य
 कर्ता कृतस्य च तथा सुखदुःखहेतुः ।
 संहारहेतुरपि यः पुनरन्तकाले
 तं शङ्करं शरणदं शरणं व्रजामि ॥१॥
यं योगिनो विगतमोहतमोरजस्का
 भक्त्यैकतानमनसो विनिवृत्तकामाः ।
 ध्यायन्ति निश्चलधियोऽमितदिव्यभावं
 तं शङ्करं शरणदं शरणं व्रजामि ॥२॥
यश्चेन्दुखण्डममलं विलसन्मयूखं
 बद्ध्वा सदा प्रियतमां शिरसा बिभर्ति।
 यश्चार्धदेहमददाद् गिरिराजपुत्र्यै
 तं शङ्करं शरणदं शरणं व्रजामि ॥३॥
योऽयं सकृद्विमलचारुविलोलतोयां
 गङ्गां महोर्मिविषमां गगनात् पतन्तीम् ।
 मूर्ध्नाऽददे स्रजमिव प्रतिलोलपुष्पां
 तं शङ्करं शरणदं शरणं व्रजामि ॥४॥
कैलासशैलशिखरं प्रतिकम्प्यमानं
 कैलासशृङ्गसदृशेन दशाननेन ।
 यः पादपद्यपरिवादनमादधानस्तं
 शङ्करं शरणदं शरणं व्रजामि ॥५॥
येनासकृद् दितिसुताः समरे निरस्ता
 विद्याधरोरगगणाश्च वरैः समग्राः ।
 संयोजिता मुनिवराः फलमूलभक्षा-
 स्तं शङ्करं शरणदं शरणं व्रजामि ॥६॥
दग्ध्वाध्वरं च नयने च तथा भगस्य
 पूष्णस्तथा दशनपङ्किमपातयच्च ।
 तस्तम्भ यः कुलिशयुक्तमहेन्द्रहस्तं
 तं शङ्करं शरणदं शरणं व्रजामि ॥७॥
एनस्कृतोऽपि विषयेष्वपि सक्तभावा
 ज्ञानान्वयश्रुतगुणैरपि नैव युक्ताः ।
 यं संश्रिताः सुखभुजः पुरुषा भवन्ति
 तं शङ्करं शरणदं शरणं व्रजामि ॥८॥
अत्रिप्रसूतिरविकोटिसमानतेजाः
 सन्त्रासनं विबुधदानवसत्तमानाम् ।
 यः कालकूटमपिबत् समुदीर्णवेगं
 तं शङ्करं शरणदं शरणं व्रजामि ॥९॥
ब्रह्मेन्द्ररुद्रमरुतां च सषन्मुखानां
 योऽदाद् वरांश्च बहुशो भगवान् महेशः ।
 नन्दिं च मृत्युवदनात् पुनरुज्जहार
 तं शङ्करं शरणदं शरणं व्रजामि ॥१०॥
आराधितः सुतपसा हिमवन्निकुञ्जे
 धूमप्रवृत्तेन मनसाऽपि परैरगम्यः ।
 सञ्जीवनी समददाद् भृगवे महात्मा
 तं शङ्करं शरणदं शरणं व्रजामि ॥११॥
नानाविधैर्गजबिडालसमानवक्त्रैः
 दक्षाध्वरप्रमथनैर्बलिभिर्गणौघैः ।
 योऽभ्यर्च्यतेऽमरगणैश्च सलोकपालैः
 तं शङ्करं शरणदं शरणं व्रजामि ॥१२॥
क्रोडार्थमेव भगवान् भुवनानि सप्त
 नानानदीविहगपादपमण्डितानि ।
 सब्रह्मकानि व्यसृजत् सुकृताहितानि
 तं शङ्करं शरणदं शरणं व्रजामि ॥१३॥
यस्याखिलं जगदिदं वशवर्ति नित्यं
 योऽष्टाभिरिव तनुभिर्भुवनानि भुङ्क्ते ।
 तं शङ्करं शरणदं शरणं व्रजामि ॥१४॥
शङ्खेन्दुकुन्दधवलं वृषभप्रवीर-
 मारुह्य यः क्षितिधरेन्द्रसुतानुयातः ।
 यात्यम्बरे हिमविभूतिविभूषिताङ्गः
 तं शङ्करं शरणदं शरणं व्रजामि ॥१५॥
शान्तं मुनिं यमनियोगपरायणं तैः
 भीमैर्यमस्य पुरुषैः प्रतिनीयमानम् ।
 भक्त्या नतं स्तुतिपरं प्रसभं ररक्ष
 तं शङ्करं शरणदं शरणं व्रजामि ॥१६॥
यः सव्यपाणिकमलाग्रनखेन देवः
 तत् पञ्चमं प्रसभमेव पुरः सुराणाम् ।
 ब्राह्मं शिरस्तरुणपद्मनिभं चकर्त
 तं शङ्करं शरणदं शरणं व्रजामि ॥१७॥
यस्य प्रणम्य चरणौ वरदस्य भक्त्या
 स्तुत्वा च वाग्भिरमलाभिरतन्द्रिताभिः ।
 दीप्तैस्तमांसि नुदते स्वकरैर्विवस्वान्
 तं शङ्करं शरणदं शरणं व्रजामि ॥१८॥

॥ इति श्रीस्कन्दमहापुराणे अवन्तीखण्डे अन्धककृता शिवस्तुतिः सम्पूर्णा ॥

भावार्थ - 

जो समस्त चराचर जगत् के कर्ता,

 सुख-दुख के कारण तथा अंत में संहारकर्ता हैं,

 उन शरणदाता भगवान शिव की मैं शरण लेता हूँ।

जिनका योगीजन एकाग्र भक्ति से ध्यान करते हैं,

 जो मोह-रज-तम से रहित, निष्काम, स्थिरबुद्धि और दिव्य भावों से युक्त हैं—

 उन श्रीशंकर की मैं शरण लेता हूँ।

जो चंद्रमा की निर्मल कला को सिर पर धारण करते हैं

 और अर्धांगिनी के रूप में पार्वती को स्थान देते हैं—

 उन श्रीशंकर की मैं शरण लेता हूँ।

जो गंगाजी को भयंकर रूप में भी सहजता से

 अपने सिर पर धारण करते हैं,

 उन शरणदाता शंकर की मैं शरण लेता हूँ।

दशमुख रावण द्वारा हिलाए गए कैलास पर्वत को

 जिन्होंने चरणताल से स्थिर कर दिया,

 उन शरणदाता शंकर की मैं शरण लेता हूँ।

जिन्होंने असुरों को युद्ध में पराजित किया,

 मुनियों को फल-मूल देकर संतुष्ट किया,

 उन शिव की मैं शरण लेता हूँ।

जिन्होंने यज्ञ भस्म किया, देवताओं की आँखें-दाँत नष्ट किए,

 और इन्द्र के हाथ को भी जड़ कर दिया,

 उन शरणदाता शंकर की मैं शरण लेता हूँ।

जो पापी, विषयासक्त, अज्ञानियों को भी

 सुख देनेवाले हैं—उन शरणदाता शिव की मैं शरण लेता हूँ।

जो करोड़ों सूर्यों के समान तेजस्वी हैं,

 और कालकूट विष का पान कर संसार को बचाया,

 उनकी मैं शरण लेता हूँ।

जिन्होंने अनेक बार देवताओं को वरदान दिये

 और मृत्यु के मुख से नन्दी को उबारा,

 उनकी मैं शरण लेता हूँ।

जो हिमालय में भृगु की घोर तपस्या से प्रसन्न होकर

 संजीवनी विद्या प्रदान करते हैं,

 उनकी मैं शरण लेता हूँ।

गणों और लोकपालों द्वारा पूजित,

 दक्ष के यज्ञ का विध्वंस करनेवाले जिन शिव की पूजा होती है,

 उनकी मैं शरण लेता हूँ।

जिन्होंने सातों लोकों को अपनी लीला के लिए रचा,

 नदी-पक्षी-वृक्षोंसे सुशोभित किया,

 उनकी मैं शरण लेता हूँ।

जो आठ रूपों में सारा जगत भोगते हैं,

 और सबके नियंता हैं—उनकी मैं शरण लेता हूँ।

जो हिम और भस्म से विभूषित होकर,

 वृषभ पर पार्वती सहित आकाश में विचरते हैं,

 उनकी मैं शरण लेता हूँ।

जिन्होंने अपने भक्त मुनि को यमदूतों से बलपूर्वक बचाया,

 उन शरणदाता शिव की मैं शरण लेता हूँ।

जिन्होंने अपने बाएँ हाथ के नख से

 ब्रह्मा का पाँचवाँ मस्तक काटा,

 उनकी मैं शरण लेता हूँ।

जिनकी स्तुति कर सूर्य अपने तेज से

 अंधकार नष्ट करता है,

 उन वरदायक शिव की मैं शरण लेता हूँ। 

........................................................................................................
अपरा एकादशी राशि परिवर्तन

इस साल अपरा एकादशी 23 मई 2025 को मनाई जाएगी। यह तिथि विशेष रूप से धार्मिक दृष्टि से महत्वपूर्ण मानी जाती है। क्योंकि इस दिन भगवान विष्णु और माता लक्ष्मी की पूजा होती है।

शिव योग में मनाया जाएगा शनि प्रदोष व्रत

प्रदोष व्रत हिंदू धर्म में भगवान शिव की उपासना के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण व्रत माना जाता है। इस साल आने वाला ‘शनि प्रदोष व्रत’ शनिवार, 24 मई को मनाया जाएगा। यह विशेष रूप से शुभ माना जा रहा है, क्योंकि यह ‘शिव योग’ में पड़ रहा है।

ज्येष्ठ माह की मासिक शिवरात्रि की तिथि

हिंदू पंचांग के अनुसार, हर महीने कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी तिथि को मनाई जाने वाली ‘मासिक शिवरात्रि’ भगवान शिव की कृपा प्राप्त करने के लिए अत्यंत प्रभावशाली व्रत माना जाता है।

ज्येष्ठ माह के 10 बड़े त्योहार

हिंदू पंचांग के अनुसार ज्येष्ठ मास वर्ष का तीसरा महीना होता है, जो धार्मिक दृष्टिकोण से अत्यंत महत्वपूर्ण माना गया है। यह मास सूर्य की प्रचंडता और तपस्या के लिए समर्पित होता है।

HomeBook PoojaBook PoojaTempleTempleKundliKundliPanchangPanchang