असित उवाच
जगद्गुरो नमस्तुभ्यं शिवाय शिवदाय च।
योगीन्द्राणां च योगीन्द्र गुरूणां गुरवे नमः ॥ १ ॥
मृत्योमृत्युस्वरूपेण मृत्युसंसारखण्डन ।
मृत्योरीश मृत्युबीज मृत्युञ्जय नमोऽस्तु ते ॥ २॥
कालरूपं कलयतां कालकालेश कारण।
कालादतीत कालस्य कालकाल नमोऽस्तु ते ॥ ३ ॥
गुणातीत गुणाधार गुणबीज गुणात्मक ।
गुणीश गुणिनां बीज गुणिनां गुरवे नमः ॥ ४ ॥
ब्रह्मस्वरूप ब्रह्मज्ञ ब्रह्मभावनतत्पर ।
ब्रह्मबीजस्वरूपेण ब्रह्मबीज नमोऽस्तु ते ॥ ५ ॥
इति स्तुत्वा शिवं नत्वा पुरस्तस्थौ मुनीश्वरः ।
दीनवत् सानुनेत्रश्च पुलकाञ्चितविग्रहः ॥ ६ ॥
असितेन कृतं स्तोत्रं भक्तियुक्तश्च यः पठेत् ।
वर्षमेकं हविष्याशी शङ्करस्य महात्मनः ॥ ७ ॥
स लभेद् वैष्णवं पुत्रं ज्ञानिनं चिरजीविनम्
भवेद्धनाढ्यो दुःखी च मूको भवति पण्डितः ॥ ८ ॥
अभार्यों लभते भार्यां सुशीलां च पतिव्रताम् ।
इहलोके सुखं भुक्त्वा यात्यन्ते शिवसंनिधिम् ॥ ९ ॥
॥ इति श्रीब्रह्मवैवर्तमहापुराणे असितकृतं शिवस्तोत्रं सम्पूर्णम् ॥
असित बोले—
जगद्गुरो ! आपको नमस्कार है।
आप शिव हैं और शिव (कल्याण) के दाता हैं।
योगीन्द्रों के भी योगीन्द्र तथा गुरुओं के भी गुरु हैं;
आपको नमस्कार है ॥ १ ॥
मृत्यु के लिये भी मृत्युरूप होकर
जन्म-मृत्युमय संसार का खण्डन करनेवाले देवता !
आपको नमस्कार है।
मृत्यु के ईश्वर ! मृत्यु के बीज ! मृत्युंजय !
आपको नमस्कार है ॥ २ ॥
कालगणना करनेवालों के लक्ष्यभूत कालरूप हे परमेश्वर !
आप काल के भी काल, ईश्वर और कारण हैं
तथा काल के लिये भी कालातीत हैं।
हे कालों के काल ! आपको नमस्कार है ॥ ३ ॥
हे गुणातीत ! गुणाधार ! गुणबीज ! गुणात्मक !
गुणीश ! और गुणियों के आदिकारण !
आप समस्त गुणवानों के गुरु हैं;
आपको नमस्कार है ॥ ४ ॥
हे ब्रह्मस्वरूप ! ब्रह्मज्ञ ! ब्रह्मचिन्तनपरायण !
वेदों के बीजरूप होने के कारण ब्रह्मबीज !
आपको नमस्कार है ॥ ५ ॥
इस प्रकार स्तुति करके शिव को प्रणाम करने के पश्चात्
मुनीश्वर असित उनके सामने खड़े हो गये
और दीन की भाँति नेत्रों से आँसू बहाने लगे।
उनके सम्पूर्ण शरीर में रोमांच हो आया ॥ ६ ॥
जो असित द्वारा किये गये महात्मा शंकर के इस स्तोत्र का
प्रतिदिन भक्तिभाव से पाठ करता है
और एक वर्ष तक नित्य हविष्य खाकर रहता है—
उसे ज्ञानी, चिरंजीवी एवं वैष्णव पुत्र की प्राप्ति होती है।
जो धनाभाव से दुःखी हो, वह धनाढ्य
और जो गूँगा हो, वह पण्डित हो जाता है ॥ ७–८ ॥
पत्नीहीन पुरुष को सुशीला एवं पतिव्रता पत्नी प्राप्त होती है
तथा वह इस लोक में सुख भोगकर
अन्त में भगवान् शिव के समीप जाता है ॥ ९ ॥
॥ इस प्रकार श्री ब्रह्मवैवर्त महापुराण में असितकृत शिवस्तोत्र सम्पूर्ण हुआ ॥
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