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Shiv Stuti (शिवस्तुतिः)

Shiv Stuti (शिवस्तुतिः)

शिवस्तुतिः हिंदी अर्थ सहित

स्कन्द उवाच:

नमः शिवायास्तु निरामयाय नमः शिवायास्तु मनोमयाय |
नमः शिवायास्तु सुरार्चिताय तुभ्यं सदा भक्तकृपापराय ||
नमो भवायास्तु भवोद्भवाय नमोऽस्तु ते ध्वस्तमनोभवाय |
नमोऽस्तु ते गूढमहाव्रताय नमोऽस्तु मायागहनाश्रयाय ||
नमोऽस्तु शर्वाय नमः शिवाय नमोऽस्तु सिद्धाय पुरातनाय |
नमोऽस्तु कालाय नमः कलाय नमोऽस्तु ते कालकलातिगाय ||
नमो निसर्गात्मकभूतिकाय नमोऽस्त्वमेयोक्षमहर्द्धिकाय |
नमः शरण्याय नमोऽगुणाय नमोऽस्तु ते भीमगुणानुगाय ||
नमोऽस्तु नानाभुवनाधिकर्त्रे नमोऽस्तु भक्ताभिमतप्रदात्रे |
नमोऽस्तु कर्मप्रसवाय धात्रे नमः सदा ते भगवन् सुकर्त्रे ||
अनन्तरुपाय सदैव तुभ्यमसह्यकोपाय सदैव तुभ्यम् |
अमेयमानाय नमोऽस्तु तुभ्यं वृषेन्द्रयानाय नमोऽस्तु तुभ्यम् ||
नमः प्रसिद्धाय महौषधाय नमोऽस्तु ते व्याधिगणापहाय |
चराचरायाथ विचारदाय कुमारनाथाय नमः शिवाय ||
ममेश भूतेश महेश्वरोऽसि कामेश वागीश बलेश धीश |
क्रोधेश मोहेश परापरेश नमोऽस्तु मोक्षेश गुहाशयेश ||
शिव उवाच:
ये च सायं तथा प्रातस्त्वनकृतेन स्तवेन माम् ।
स्तीष्यन्ति परया भक्त्या श्रृणु तेषां च यत्फलम् ॥ ९ ॥
न व्याधिर्न च दारिद्र्यं न च चैवेष्टवियोजनम् ।
भुक्त्वा भोगान दुर्लभांश्च मभ यास्यन्ति सह्य ते ॥ १० ॥

|| इति श्रीस्कन्दमहापुराणे कुमारिकाखण्डे शिवस्तुति: सम्पूर्णा ||

भावार्थ - 

समस्त प्रकार के रोग-शोक से रहित, सबके मनों में निवास करने वाले, समस्त देवता जिनकी पूजा करते हैं, जो अपने भक्तों पर सदा कृपादृष्टि रखते हैं, समस्त चराचर की उत्पत्ति-पालन-विनाश का जो कारण हैं, जिन्होंने काम का संहार किया, जो मायारूपी गहन वन के आश्रय हैं, पुरातन सिद्धरूप, कालरूप, स्वाभाविक ऐश्वर्य व समृद्धि से युक्त, जिनकी महिमा अपरिमित है, काल की कला का भी अतिक्रमण करने वाले, सबको शरण देने वाले, निर्गुण ब्रह्मस्वरूप, अत्यन्त गुणी गणों द्वारा जिनका अनुसरण किया जाता है, समस्त भुवनों पर जिनका अधिकार है, जो सबके धाता और कर्ता हैं, जिनके अनन्त रूप हैं, जिनका कोप दुष्टों के लिए असह्य है, जिनके स्वरूप को समझ पाना असम्भव है, वृषभराज जिनका वाहन हैं, जो स्वयं महौषधिरूप होने के कारण समस्त व्याधियों के नाशक हैं, तत्त्व का निर्णय करने वाली शक्ति जिनके द्वारा प्राप्त होती है, परम कल्याणस्वरूप कुमारनाथ हैं, समस्त भोगों-वाणी-बल-बुद्धि के अधिपति, क्रोध और मोह पर शासन करने वाले, हृदय मध्य निवास करने वाले परापर के स्वामी और मुक्तिदाता परम स्वरूप आपको नमस्कार है |

स्कन्द मुनि की भक्ति से प्रसन्न होकर भगवान् शिव ने कहा कि हे मुनि! जो लोग सायंकाल और प्रातःकाल श्रद्धाभक्ति पूर्वक तुम्हारे द्वारा कही गई इस स्तुति से मेरा स्तवन करेंगे उन्हें अभीष्ट फल की प्राप्ति होगी तथा हर प्रकार की व्याधि और दारिद्रय से मुक्ति प्राप्त होगी | उनका कभी अपने प्रियजनों से वियोग नहीं होगा और संसार में दुर्लभ भोगों का भोग करते हुए अन्त में परमधाम को प्राप्त करेंगा |

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