Logo

हिमालयकृतं शिवस्तोत्रम्

हिमालयकृतं शिवस्तोत्रम्

हिमालयकृतं शिवस्तोत्रम् हिंदी अर्थ सहित

हिमालय उवाच

त्वं ब्रह्मा सृष्टिकर्ता च त्वं विष्णुः परिपालकः ।
त्वं शिवः शिवदोऽनन्तः सर्वसंहारकारकः ॥ १ ॥
त्वमीश्वरो गुणातीतो ज्योतीरूपः सनातनः ।
प्रकृतिः प्रकृतीशश्च प्राकृतः प्रकृतेः परः ॥ २ ॥
नानारूपविधाता त्वं भक्तानां ध्यानहेतवे ।
येषु रूपेषु यत्प्रीतिस्तत्तद्रूपं बिभर्षि च ॥ ३॥
सूर्यस्त्वं सृष्टिजनक आधारः सर्वतेजसाम् ।
सोमस्त्वं शस्य पाता च सततं शीतरश्मिना ॥ ४॥
वायुस्त्वं वरुणस्त्वं च त्वमग्निः सर्वदाहकः ।
इन्द्रस्त्वं देवराजश्च कालो मृत्युर्यमस्तथा ॥ ५ ॥
मृत्युञ्जयो मृत्युमृत्युः कालकालो यमान्तकः ।
वेदस्त्वं वेदकर्ता च वेदवेदाङ्गपारगः ॥ ६ ॥
विदुषां जनकस्त्वं च विद्वांश्च विदुषां गुरुः ।
मन्त्रस्त्वं हि जपस्त्वं हि तपस्त्वं तत्फलप्रदः ॥ ७ ॥
वाक् त्वं वागधिदेवी त्वं तत्कर्ता तद्‌गुरुः स्वयम् ।
अहो सरस्वतीबीजं कस्त्वां स्तोतुमिहेश्वरः ॥ ८ ॥
इत्येवमुक्त्वा शैलेन्द्रस्तस्थौ धृत्वा पदाम्बुजम् ।
तत्रोवास तमाबोध्य चावरुह्य वृषाच्छिवः ॥ ९ ॥
स्तोत्रमेतन्महापुण्यं त्रिसंध्यं यः पन्नरः ।
मुच्यते सर्वपापेभ्यो भयेभ्यश्च भवार्णवे ॥ १० ॥
अपुत्रो लभते पुत्रं मासमेकं पठेद् यदि ।
भार्याहीनो लभेद् भार्यां सुशीलां सुमनोहराम् ॥ ११ ॥
चिरकालगतं वस्तु लभते सहसा ध्रुवम् ।
राज्यभ्रष्टो लभेद् राज्यं शङ्करस्य प्रसादतः ॥ १२ ॥
कारागारे श्मशाने च शत्रुग्रस्तेऽतिसङ्कटे
गभीरे ऽतिजलाकीर्णे भग्नपोते विषादने ॥ १३॥
रणमध्ये महाभीते हिंत्रजन्तुसमन्विते ।
सर्वतो मुच्यते स्तुत्वा शङ्करस्य प्रसादतः ॥ १४॥

॥ इति श्रीब्रह्मवैवर्तमहापुराणे हिमालयकृतं शिवस्तोत्रं सम्पूर्णम् ॥

भावार्थ - 

हिमालय ने कहा-

 [ हे परम शिव ! ]

 आप ही सृष्टिकर्ता ब्रह्मा हैं।

 आप ही जगत्के पालक विष्णु हैं।

 आप ही सबका संहार करनेवाले अनन्त हैं

 और आप ही कल्याणकारी शिव हैं ॥ १ ॥

आप गुणातीत ईश्वर, सनातन ज्योतिःस्वरूप हैं।

 प्रकृति और प्रकृतिके ईश्वर हैं।

 प्राकृत पदार्थ होते हुए भी प्रकृतिसे परे हैं ॥ २ ॥

भक्तोंके ध्यान करनेके लिये आप अनेक रूप धारण करते हैं।

 जिन रूपोंमें जिसकी प्रीति है, उसके लिये आप वही रूप धारण कर लेते हैं ॥ ३ ॥

आप ही सृष्टिके जन्मदाता सूर्य हैं।

 समस्त तेजोंके आधार हैं।

 आप ही शीतल किरणोंसे सदा शस्योंका पालन करनेवाले सोम हैं ॥ ४ ॥

आप ही वायु, वरुण और सर्वदाहक अग्नि हैं।

 आप ही देवराज इन्द्र, काल, मृत्यु तथा यम हैं ॥ ५ ॥

मृत्युंजय होनेके कारण मृत्युकी भी मृत्यु,

 कालके भी काल तथा यमके भी यम हैं।

 वेद, वेदकर्ता तथा वेद-वेदांगोंके पारंगत विद्वान् भी आप ही हैं ॥ ६ ॥

आप ही विद्वानोंके जनक, विद्वान् तथा विद्वानोंके गुरु हैं।

 आप ही मन्त्र, जप, तप और उनके फलदाता हैं ॥ ७ ॥

आप ही वाक् और आप ही वाणीकी अधिष्ठात्री देवी हैं।

 आप ही उसके स्रष्टा और गुरु हैं।

 अहो ! सरस्वतीबीजस्वरूप आपकी स्तुति यहाँ कौन कर सकता है ॥ ८ ॥

ऐसा कहकर गिरिराज हिमालय

 उन (भगवान् शिवजी) - के चरणकमलोंको पकड़कर खड़े रहे।

 भगवान् शिवने वृषभसे उतरकर

 शैलराजको प्रबोध देकर वहाँ निवास किया ॥ ९ ॥

जो मनुष्य तीनों संध्याओंके समय इस परम पुण्यमय स्तोत्रका पाठ करता है,

 वह भवसागरमें रहकर भी समस्त पापों तथा भयोंसे मुक्त हो जाता है ॥ १० ॥

पुत्रहीन मनुष्य यदि एक मासतक इसका पाठ करे

 तो पुत्र पाता है।

 भार्याहीनको सुशीला तथा परम मनोहारिणी भार्या प्राप्त होती है ॥ ११ ॥

वह चिरकालसे खोयी हुई वस्तुको सहसा तथा अवश्य पा लेता है।

 राज्यभ्रष्ट पुरुष भगवान्शंकरके प्रसादसे

 पुनः राज्यको प्राप्त कर लेता है ॥ १२ ॥

कारागार, श्मशान और शत्रु संकटमें पड़नेपर

 तथा अत्यन्त जलसे भरे गम्भीर जलाशयमें नाव टूट जानेपर,

 विष खा लेनेपर, महाभयंकर संग्रामके बीच फँस जानेपर

 तथा हिंसक जन्तुओंसे घिर जानेपर

 इस स्तुतिका पाठ करके

 मनुष्य भगवान् शंकरकी कृपासे

 समस्त भयोंसे मुक्त हो जाता है ॥ १३-१४ ॥

॥ इस प्रकार श्रीब्रह्मवैवर्तमहापुराणमें हिमालयकृत शिवस्तोत्र सम्पूर्ण हुआ ॥

........................................................................................................
मासिक शिवरात्रि मंत्र

कई साधक मासिक शिवरात्रि पर भगवान शिव के निमित्त व्रत भी रखते हैं। यह तिथि भोलेनाथ की कृपा प्राप्ति के लिए काफी उत्तम मानी जाती है।

कब है सोमवती अमावस्या

अमावस्या तिथि प्रत्येक माह के कृष्ण पक्ष की अंतिम तिथि होती है। इस तिथि का विशेष महत्व माना गया है। इस दिन स्नान-दान करने से पितरों की आत्मा को शांति प्राप्त होती है।

सतगुरु मैं तेरी पतंग(Satguru Main Teri Patang)

सतगुरु मैं तेरी पतंग,
बाबा मैं तेरी पतंग,

सतगुरु मेरे कलम हाथ तेरे(Satguru Mere Kalam Hath Tere)

सतगुरु मेरे कलम हाथ तेरे,
के सोहने सोहने लेख लिख दे,

HomeBook PoojaBook PoojaTempleTempleKundliKundliPanchangPanchang