सतगुरु मैं तेरी पतंग,
बाबा मैं तेरी पतंग,
हवा विच उडदी जावांगी,
हवा विच उडदी जावांगी ।
साईयां डोर हाथों छोड़ी ना,
मैं कट्टी जावांगी ॥
तेरे चरना दी धूलि साईं माथे उते लावां,
करा मंगल साईंनाथ गुण तेरे गावां।
साईं भक्ति पतंग वाली डोर, अम्बरा विच उडदी फिरा ॥
बड़ी मुश्किल दे नाल मिलेय मेनू तेरा दवारा है ।
मेनू इको तेरा आसरा नाले तेरा ही सहारा है ।
हुन तेरे ही भरोसे, हवा विच उडदी जावांगी,
साईंया डोर हाथों छोड़ी ना, मैं कट्टी जावांगी ॥
ऐना चरना कमला नालो मेनू दूर हटावी ना ।
इस झूठे जग दे अन्दर मेरा पेचा लाई ना ।
जे कट गयी ता सतगुरु, फेर मैं लुट्टी जावांगी,
साईंया डोर हाथों छोड़ी ना, मैं कट्टी जावांगी ॥
अज्ज मलेया बूहा आके मैं तेरे द्वार दा ।
हाथ रख दे एक वारि तूं मेरे सर ते प्यार दा ।
फिर जनम मरण दे गेडे तो मैं बच्दी जावांगी,
साईंया डोर हाथों छोड़ी ना, मैं कट्टी जावांगी ॥
नए साल 2025 की शुरूआत होने जा रही है। इस नए साल के साथ हमारी उत्सुकता भी बढ़ जाती है कि इस साल कौन-कौन सी महत्वपूर्ण घटनाएं होने वाली हैं। इन्हीं घटनाओं में से एक है सूर्य ग्रहण, जो धार्मिक और वैज्ञानिक दोनों दृष्टिकोण से हमारे जीवन में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।
एक बच्चे की शिक्षा यात्रा की शुरुआत एक महत्वपूर्ण मील का पत्थर होता है जो उसके भविष्य को आकार देता है। यह संस्कार भारतीय परंपरा में विशेष महत्व रखता है, जहां ज्योतिष के अनुसार ग्रह-नक्षत्रों की स्थिति और शुभ योगों का ध्यान रखा जाता है ताकि बच्चे की शिक्षा और जीवन में सफलता के लिए सकारात्मक ऊर्जा का संचार हो।
हिंदू धर्म में 16 संस्कारों का विशेष महत्व है, और उनमें नौवां संस्कार है कर्णवेध। यह संस्कार बच्चे के कान छिदवाने का समय होता है, जो सामान्यतः 1 से 5 वर्ष की उम्र में किया जाता है।
हिंदू धर्म की समृद्ध परंपरा में "सोलह संस्कार" का महत्वपूर्ण स्थान है, जो जीवन के हर महत्वपूर्ण पड़ाव को दिशा देते हैं। इन संस्कारों में से एक है अन्नप्राशन, जब बच्चा पहली बार ठोस आहार का स्वाद लेता है।