हे चन्द्रचूड मदनान्तक शूलपाणे
स्थाणो गिरीश गिरिजेश महेश शम्भो ।
भूतेश भीतभयसूदन मामनाथं
संसारदुःखगहनाज्जगदीश रक्ष ॥ १॥
हे पार्वतीहृदयवल्लभ चन्द्रमौले
भूताधिप प्रमथनाथ गिरीशचाप ।
हे वामदेव भव रुद्र पिनाकपाणे
संसारदुःखगहनाज्जगदीश रक्ष ॥ २॥
हे नीलकण्ठ वृषभध्वज पञ्चवक्त्र
लोकेश शेषवलय प्रमथेश शर्व ।
हे धूर्जटे पशुपते गिरिजापते मां
संसारदुःखगहनाज्जगदीश रक्ष ॥ ३॥
हे विश्वनाथ शिव शङ्कर देवदेव
गङ्गाधर प्रमथनायक नन्दिकेश ।
बाणेश्वरान्धकरिपो हर लोकनाथ
संसारदुःखगहनाज्जगदीश रक्ष ॥ ४॥
वाराणसीपुरपते मणिकर्णिकेश
वीरेश दक्षमखकाल विभो गणेश ।
सर्वज्ञ सर्वहृदयैकनिवास नाथ
संसारदुःखगहनाज्जगदीश रक्ष ॥ ५॥
श्रीमन्महेश्वर कृपामय हे दयालो
हे व्योमकेश शितिकण्ठ गणाधिनाथ ।
भस्माङ्गराग नृकपालकलापमाल
संसारदुःखगहनाज्जगदीश रक्ष ॥ ६॥
कैलासशैलविनिवास वृषाकपे हे
मृत्युञ्जय त्रिनयन त्रिजगन्निवास ।
नारायणप्रिय मदापह शक्तिनाथ
संसारदुःखगहनाज्जगदीश रक्ष ॥ ७॥
विश्वेश विश्वभवनाशक विश्वरूप
विश्वात्मक त्रिभुवनैकगुणाधिकेश ।
हे विश्वनाथ करुणामय दीनबन्धो
संसारदुःखगहनाज्जगदीश रक्ष ॥ ८॥
गौरीविलासभवनाय महेश्वराय
पञ्चाननाय शरणागतकल्पकाय ।
शर्वाय सर्वजगतामधिपाय तस्मै
दारिद्र्यदुःखदहनाय नमः शिवाय ॥ ९॥
इति श्रीमत्परमहंसपरिव्राजकाचार्यस्य श्रीगोविन्दभगवत्पूज्यपादशिष्यस्य श्रीमच्छङ्करभगवतः कृतौ शिवनामावल्यष्टकं सम्पूर्णम् ॥
हे चन्द्रचूड़! (चन्द्रमा को सिर पर धारण करनेवाले), हे मदनान्तक! (कामदेव को भस्म कर देनेवाले), हे शूलपाणे! हे स्थाणो! (सदैव स्थिर रहनेवाले), हे गिरीश एवं गिरिजापति! हे महेश, हे शम्भो, हे भूतेश! हे जरा-मृत्यु आदि से भयभीत की रक्षा करनेवाले! हे जगदीश्वर शिव! कृपया संसार के गहन दुःखों से मेरी रक्षा कीजिए॥ १ ॥
हे माता पार्वती के हृदयेश्वर! हे चन्द्रमौले! हे भूताधिप! हे प्रमथगणों (रुण्ड, मुण्ड, तुण्ड) के स्वामी! हे गिरिजा के पालनकर्ता! हे वामदेव! हे भव! हे रुद्र! हे पिनाकपाणे! हे जगदीश्वर शिव! कृपया संसार के गहन दुःखों से मेरी रक्षा कीजिए॥ २ ॥
हे नीलकण्ठ! हे वृषकेतु! हे पंचमुख! हे लोकेश! हे शेषनाग को कंकणरूप में धारण करनेवाले! हे प्रमथगणों के स्वामी! हे शर्व! हे धूर्जटे! हे पशुपते! हे गिरिजापते! हे जगदीश्वर शिव! कृपया संसार के गहन दुःखों से मेरी रक्षा कीजिए॥ ३ ॥
हे विश्वनाथ! हे शिव! हे शंकर! हे देवाधिदेव! हे गंगा को धारण करनेवाले! हे प्रमथगणों के नायक! हे नन्दीश्वर! हे बाणेश्वर! हे अन्धकासुर के संहारक! हे हर! हे लोकनाथ! हे जगदीश्वर शिव! कृपया संसार के गहन दुःखों से मेरी रक्षा कीजिए॥ ४ ॥
हे वाराणसी नगरी के स्वामी! हे मणिकर्णिकेश! हे वीरेश! हे दक्षयज्ञ के विध्वंसक! हे विभो! हे गणेश! हे सर्वज्ञ! हे सर्वान्तरात्मन्! हे नाथ! हे जगदीश्वर शिव! कृपया संसार के गहन दुःखों से मेरी रक्षा कीजिए॥ ५ ॥
हे श्रीमान् महेश्वर! हे कृपामय! हे दयालु! हे व्योमकेश! (जिनके केश आकाश हैं), हे नीलकण्ठ! हे गणाधिपति! हे भस्म को अंगराग रूप में धारण करनेवाले! हे मनुष्यों के कपालों की माला पहननेवाले! हे जगदीश्वर शिव! कृपया संसार के गहन दुःखों से मेरी रक्षा कीजिए॥ ६ ॥
हे कैलास शिखर पर निवास करनेवाले! हे वृषवाहन! हे मृत्युंजय! हे त्रिनयन! हे तीनों लोकों में व्यापक! हे नारायणप्रिय! हे अहंकार का विनाश करनेवाले! हे शक्तिनाथ! हे जगदीश्वर शिव! कृपया संसार के गहन दुःखों से मेरी रक्षा कीजिए॥ ७ ॥
हे विश्वेश! हे जन्म-मरण के चक्र को मिटानेवाले! हे विश्वरूप! हे विश्वात्मन्! हे त्रिभुवन के समस्त गुणों से युक्त! हे विश्वबंधो! हे करुणामय! हे दीनबंधो! हे जगदीश्वर शिव! कृपया संसार के गहन दुःखों से मेरी रक्षा कीजिए॥ ८ ॥
भगवती पार्वती के प्रेम के आधार महेश्वर को, पंचानन को, शरणागतों की रक्षा करनेवाले शर्व और शम्भु को, सम्पूर्ण जगत् के स्वामी और दारिद्र्य एवं दुःख का भस्म करनेवाले भगवान शिव को मैं नमस्कार करता हूँ॥ ९ ॥
॥ श्री मच्छंकराचार्य विरचित शिवनामावल्यष्टक सम्पूर्ण हुआ ॥
राधाकृष्ण प्राण मोर युगल-किशोर ।
जीवने मरणे गति आर नाहि मोर ॥
ओ शंकर मेरे,
कब होंगे दर्शन तेरे,
ओ शंकरा मेरे शिव शंकरा,
बालक मैं तू पिता है,
ओ शेरावाली माँ,
क्या खेल रचाया है,