भार्गव उवाच —
त्वं भाभिराभिरभिभूय तमस्समस्तं
मस्तं नयस्यभिमतानि निशाचराणाम् ।
देदीप्यसे दिवमणे गगने हिताय
लोकत्रयस्य जगदीश्वर तन्नमस्ते ॥ १॥
लोकेऽतिवेलमतिवेलमहामहोभि
निर्भासि कौ च गगनेऽखिललोकनेत्रः ।
विद्राविताखिलतमास्सुतमो हिमांशो
पीयूषपूरपरिपूरित तन्नमस्ते ॥ २॥
त्वं पावने पथि सदा गतिरस्युपास्यः
कस्त्वां विना भुवनजीवन जीवतीह ।
स्तब्धप्रभञ्जनविवर्धितसर्वजन्तो
संतोषिताहिकुल सर्वग वै नमस्ते ॥ ३॥
विश्वैकपावक नतावक पावकैक
शक्ते ऋते मृतवतामृतदिव्यकार्यम् ।
प्राणिष्यदो जगदहो जगदन्तरात्मन्
त्वं पावकः प्रतिपदं शमदो नमस्ते ॥ ४॥
पानीयरूप परमेश जगत्पवित्र
चित्रातिचित्रसुचरित्रकरोऽसि नूनम् ।
विश्वं पवित्रममलं किल विश्वनाथ
पानीयगाहनत एतदतो नतोऽस्मि ॥ ५॥
आकाशरूप बहिरन्तरुतावकाश
दानाद् विकस्वरमिहेश्वर विश्श्वमेतत् ।
त्वत्तस्सदा सदय संशवसिति स्वभावात्
संकोचमेति भवतोऽस्मि नतस्ततस्त्वाम् ॥ ६॥
विश्वम्भरात्मक बिभर्षि विभोऽत्र विश्वं
को विश्वनाथ भवतोऽन्यतमस्तमोऽरिः ।
स त्वं विनाशय तमो मम चाहिभूष
स्तव्यात् परः परपरं प्रणतस्ततस्त्वाम् ॥ ७॥
आत्मस्वरूप तव रूपपरम्पराभिः
आभिस्ततं हर चराचररूपमेतत् ।
सर्वान्तरात्मनिलय प्रतिरूपरूप
नित्यं नतोऽस्मि परमात्मजनोऽष्टमूर्ते ॥ ८॥
इत्यष्टमूर्तिभिरिमाभिरबन्धवन्धो
युक्तः करोषि खलु विश्वजनीनमूर्ते ।
एतत्ततं सुविततं प्रणतप्रणीत
सर्वार्थसार्थपरमार्थ ततो नतोऽस्मि ॥ ९॥
॥ इति श्रीशिवमहापुराणे रुद्रसंहितायां मूर्त्यष्टकस्तोत्रं सम्पूर्णम् ॥
भार्गवने कहा—
हे सूर्यरूप भगवान! आप त्रिलोक के हित के लिए आकाश में प्रकाशित होते हैं, अपनी किरणों से अंधकार को नष्ट करते हैं और रात्रिचर असुरों की गति को रोकते हैं। हे जगदीश्वर! आपको नमस्कार है।
हे चन्द्रस्वरूप शिव! आप अमृत से परिपूर्ण हैं, समस्त प्राणियों की दृष्टि हैं, अपने प्रकाश से समस्त अंधकारों को दूर करते हैं। आपको प्रणाम है।
हे पावन पथ के अधिष्ठाता! आप सदा साधकों के आश्रय हैं। आपके बिना कोई जीव जीवित नहीं रह सकता। आप समस्त जीवों के पोषक और सर्पों को संतुष्ट करनेवाले हैं। आपको नमन है।
हे अग्निस्वरूप! आप ही शरणागतों के रक्षक हैं। आपके बिना मृतकों का अंतिम कार्य संभव नहीं। आप प्राणदायक और शांति देने वाले हैं। मैं आपको प्रणाम करता हूँ।
हे जलस्वरूप परमेश्वर! आप संसार को पवित्र करने वाले हैं। विविध सुचरित्रों के करता हैं। जल में स्नान से संसार को शुद्ध करनेवाले विश्वनाथ! आपको नमस्कार है।
हे आकाशस्वरूप ईश्वर! आपके कारण ही यह जगत् बाहर और भीतर श्वास लेता है, जीवित रहता है और समय पर संकुचित होकर लीन भी होता है। हे दयालु प्रभो! मैं आपको प्रणाम करता हूँ।
हे विश्वरक्षक प्रभो! आप ही संसार का पोषण करते हैं। मेरे अज्ञानरूपी अंधकार को नष्ट कीजिए। नागों के भूषण धारण करनेवाले परात्पर शिव! आपको बारंबार प्रणाम है।
हे आत्मस्वरूप प्रभो! यह सम्पूर्ण चराचर विश्व आपकी विविध मूर्तियों से व्याप्त है। आप सभी के हृदय में निवास करते हैं। हे अष्टमूर्ते! मैं सदा आपको प्रणाम करता हूँ।
हे मुक्त पुरुषों के स्वामी! आप इन आठ रूपों से युक्त होकर समस्त संसार को विस्तार देते हैं। आप प्रणतजनों के सम्पूर्ण अभिलाषाओं के आधार हैं। आपको सादर नमस्कार है।
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कई जन्मों से बुला रही हूँ,
कोई तो रिश्ता जरूर होगा,
कैलाश के निवासी नमो बार बार हूँ,
आये शरण तिहारी प्रभु तार तार तू,
कैलाश शिखर से उतर कर,
मेरे घर आए है भोले शंकर ॥
कैसे भूलूंगा दादी मैं तेरा उपकार,
ऋणी रहेगा तेरा,